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श. ८ : उ. ८ : सू. ३१५-३१९
का बंध करते हैं. अकषाय अवस्था में नहीं करते। अपगत वेद वाले व्यक्ति के सांपरायिक कर्म का बंध अल्पकालीन होता है। यथाख्यात चारित्र आने पर ऐर्यापथिक कर्म का बंध प्रारंभ हो जाता है।"
सांपरायिक कर्म का बंध अनादि है इसलिए 'बंधी' यह विकल्प सब जीवों में प्राप्त होगा। ऐर्यापथिकी क्रिया के विषय में जो प्राणी मत कम्मप्पगडी परीसह - समवतार-पदं ३१५. कइ णं भंते! कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ ?
अट्ठ
गोयमा ! कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - नाणावरणिज्जं दंसणावर णिज्जं वेदणिज्जं मोह- णिज्जं आउगं नाम गोयं अंतराइयं ।।
३१६. कइ णं भंते! परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! बावीस परीसहा पण्णत्ता, तं जहा - दिगिछापरीसहे, पिवासापरीसहे सीतपरीसहे उसिणपरीसहे दंसमसगपरीसहे अचेलपरीसहे अरइपरीसहे इत्थिपरीसहे चरियापरीसहे निसीहियापरीसहे सेज्जापरीसहे अक्कोसपरीसहे वहपरीसहे जायणापरीसहे अलाभपरीसहे रोगपरीसहे तणफासपरीसहे जल्लपरीसहे सक्कारपुरक्कारपरीसहे पण्णापरीसहे नाणपरीसहे दंसण-परीसहे ॥
३१७. एए णं भंते! बावीस परीसहा कति कम्मप्पगडीसु समोयरंति ? गोयमा ! चउसु कम्मप्पगडीसु समोयरंति, तं जहा -नाणावर - णिज्जे, वेदणिज्जे, मोहणिज्जे, अंतराइए ।
३१८. नाणावरणिज्जे णं भंते! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ?
गोयमा ! दो परीसहा समोयरंति, तं जहा - पण्णापरीसहे नाणपरीसहे य ॥
३१९. वेदणिज्जे णं भंते! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ?
गोमा ! एक्कारस परीसहा समोयरंति, तं जहा
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भगवई
उपलब्ध है, उसे विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। उसके विषय में समीक्षात्मक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत है। उनके तुलनात्मक अध्ययन के लिए निम्न निर्दिष्ट संदर्भों का अध्ययन आवश्यक है-भगवई ७/ २०-२१,१२५-१२६, १०/११-१४, १८/१५९-१६०, सूयगडो २/ १६, आचारांगभाष्यम् ५ / ७२ ।
कर्मप्रकृतिषु परीषहसमवतार-पदम् कति भदन्त ! कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः ?
गौतम! अष्ट कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा-ज्ञानावरणीयं दर्शनावरणीयं वेदनीयं मोहनीयं आयुष्कं नाम गोत्रम् आन्तरायिकम्।
कति भदन्त ! परीषहाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! द्वाविंशतिः परीषहाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-दिगिंछापरीषहः, पिपासापरीषहः शीतपरीषहः, उष्णपरीषहः, 'दंशमशकपरीषहः, अचेलपरीषहः, अरतिपरीषहः, स्त्रीपरीषहः, चर्यापरीषहः. निषीधिकापरीषहः, शय्यापरीषहः, आक्रोशपरीषहः, वधपरीषहः, याचनापरीषहः, अलाभपरीषहः, रोगपरीषहः, तृणस्पर्शपरीषहः, जल्लपरीषहः, सत्कारपुरस्कारपरीषह : प्रज्ञापरीषहः, ज्ञानपरीषहः, दर्शनपरीषहः ।
एते भदन्त ! द्वाविंशतिः परीषहाः कतिषु कर्मप्रकृतिषु समवतरन्ति ? गौतम! चतसृषु कर्मप्रकृतिषु समवतरन्ति, तद् यथा-ज्ञानावरणीये. वेदनीये. मोहनीये. आन्तरायिके।
ज्ञानावरणीये भदन्त ! कर्मणि कति परीषहाः समवतरन्ति ?
गौतम ! द्वौ परीषहौ समवतरतः, तद् यथाप्रज्ञापरीषहः, ज्ञानपरीषहश्च ।
कर्म प्रकृतियों में परीषह समवतार - पद ३१५. भंते! कर्म प्रकृतियां कितनी प्रज्ञस हैं ?
गौतम! कर्म प्रकृतियां आठ प्रज्ञप्त हैं, जैसे - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अंतराया
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३१६. भंते! परीषह कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम! परीषह बाईस प्रज्ञप्त हैं, जैसेक्षुधापरीषह, पिपासा परीषह, शीत परीषह, उष्ण परीषह, दंशमशक परीषह, अचेल परीषह, अरति परीषह, स्त्री परीषह, चर्या परीषह, निषद्या परीषह, शय्या परीषह आक्रोश परीषह, वध परीषह, याचना परीषह, अलाभ परीषह, रोग परीषह, तृणस्पर्श परीषह, जल्ल (स्वेद जनित मैल) परीषह, सत्कारपुरस्कार परीषह, प्रज्ञा परीषह, ज्ञान परीषह, दर्शन परीषह ।
वेदनीये भदन्त ! कर्मणि कति परीषहाः समवतरन्ति ?
गौतम! एकादश परीषहाः समवतरन्ति तद्
यथा
१. भ. वृ. ८/३१०-अपगतवेदश्च सांपरायिकबंधको वेदत्रये उपशांते क्षीणे वा यावद्यथाख्यातं न प्राप्नोति तावल्लभ्यत इति ।
३१७. भंते! इन बाईस परीषहों का कितनी कर्म प्रकृतियों में समवतार होता है ? गौतम ! चार कर्म प्रकृतियों में समवतार होता है, जैसे- ज्ञानावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, अंतराय ।
३१८. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म में दो परीषहों का समवतार होता है जैसे- प्रज्ञा परीषह, ज्ञान परीषह ।
३१९. भंते! वेदनीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ?
गौतम! वेदनीय कर्म में ग्यारह परीषहों का समवतार होता है, जैसे- प्रारंभ से पांच
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