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भगवई
अपेक्षा से 'न बंधी' यह विकल्प समीचीन है। उपशांत अवस्था होने पर ऐर्यापथिक कर्म बांधता है, यह विकल्प भी सही है किन्तु अनंतर समयों में नहीं बांधेगा, यह विकल्प सम्यक् नहीं है क्योंकि बंध एक समय का नहीं होता। जो निर्ग्रथ उपशांत मोह अवस्था (ग्यारहवें गुणस्थान) में रहकर काल-धर्म को प्राप्त होता है, उसके ऐर्यापथिक
अतीत
भवाकर्ष की १. बांधा था अपेक्षा
२. बांधा था ३. बांधा था
ग्रहणाकर्ष की अपेक्षा
४. बांधा था
१४वें गुणस्थानवर्ती जीव नहीं बांधता की अपेक्षा
५. नहीं बांधा था उपशम श्रेणी की अपेक्षा बांधता है
६. नहीं बांधा था उपशम श्रेणी की अपेक्षा ७. नहीं बांधा था उपशम श्रेणी की अपेक्षा
१२. बांधा था
३. बांधा था
श्रेणी
उपशम श्रेणी की अपेक्षा
उपशम श्रेणी की अपेक्षा उपशम श्रेणी की अपेक्षा
८. नहीं बांधा था अभव्य जीव की अपेक्षा नहीं बांधता १. बांधा था उपशम या क्षपक श्रेणी की बांधता है। अपेक्षा
१३वें गुणस्थानवर्ती जीव बांधता है की अपेक्षा
४. बांधा था
द्रष्टव्य- भवाकर्ष और ग्रहणाकर्ष का यंत्र
वर्तमान
श्रेणी
बांधता है
उपशम श्रेणी की अपेक्षा
बांधता है नहीं बांधता
क्षपक श्रेणी की अपेक्षा क्षपक श्रेणी की अपेक्षा
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१३ वे गुणस्थान के अंतिम नहीं बांधता समय जीव की अपेक्षा
५. नहीं बांधा था (आयुष्य के पूर्वभाग की बांधता है
अपेक्षा) उपशम क्षपक श्रेणी न करने के कारण
६. नहीं बांधा था (शून्य) किसी जीव में
नहीं
७. नहीं बांधा था भव्य जीव की अपेक्षा ८. नहीं बांधा था अभव्य की अपेक्षा
१. देसेणं-जीव का एक भाग ।
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बांधता है नहीं बांधता
उपशम श्रेणी से गिरने की नहीं बांधता अपेक्षा
देस - बद्ध्यमान कर्म का एक भाग ।
२. देसेणं - जीव का एक भाग । सव्वं बद्ध्यमान सर्व कर्म- पुद्गल ।
३. सव्वेणं-जीव के सब प्रदेश ।
प्रस्तुत अलापक में प्रयुक्त देसेण देस सव्वेणं सव्वं- ये शब्द बंध सापेक्ष हैं। बंध के संदर्भ में
नहीं बांधता
नहीं बांधता नहीं बांधता
श. ८ : उ ८ : सू. ३१४
कर्म का बंध मात्र एक समय का होता है, वह छठे भंग का हेतु नहीं बनता । सयोगी केवली चरम समय में ऐर्यापथिक कर्म का बंध करता है। उसके अनंतर ऐर्यापथिक कर्म का बंध नहीं करता। इस विवक्षा में 'न बंधी' यह विकल्प नहीं होता। वह पूर्व समय में बंध करता है इसलिए द्वितीय भंग समुचित है, छठा भंग शून्य है।
अनागत
श्रेणी
उपशम श्रेणी की अपेक्षा
बांधेगा नहीं बांधेगा उपशम श्रेणी की अपेक्षा बांधेगा उपशम या क्षपक श्रेणी की अपेक्षा १४ वे गुणस्थानवर्ती जीव नहीं बांधेगा १४वें गुणस्थानवर्ती जीव की अपेक्षा की अपेक्षा उपशम या क्षपक श्रेणी
उपशम श्रेणी की अपेक्षा बांधेगा
की अपेक्षा
"
क्षपक श्रेणी की अपेक्षा क्षपक श्रेणी की अपेक्षा
| सास्वादन सम्यकदृष्टि की अपेक्षा
अभव्य की अपेक्षा उपशम या क्षपक श्रेणी की बांधेगा अपेक्षा
१३ वें गुणस्थान में एक समय शेष रहता है उसकी अपेक्षा
१४ वे गुणस्थान की अपेक्षा
नहीं बांधेगा बांधेगा
उपशम या क्षपक श्रेणी की अपेक्षा नहीं बांधेगा अभव्य की अपेक्षा
उपशम या क्षपक श्रेणी की बांधेगा अपेक्षा
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उपशम या क्षपक श्रेणी की अपेक्षा
नहीं बांधेगा शैलेशी अवस्था की
अपेक्षा
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नहीं बांधेगा उपशम श्रेणी की अपेक्षा
नहीं बांधेगा शैलेशी अवस्था की अपेक्षा उपशम या क्षपक श्रेणी की अपेक्षा
किसी जीव की अपेक्षा से नहीं बांधेगा किसी जीव की अपेक्षा से नहीं नहीं बांधेगा भव्य जीव की अपेक्षा नहीं बांधेगा अभव्य की अपेक्षा
भव्य जीव की अपेक्षा अभव्य की अपेक्षा
देसंबद्धयमान कर्म का एक भाग । ४. सव्वेणं-जीव के सर्व प्रदेश ।
सव्वं बद्ध्यमान सर्व कर्म पुद्गल । इनमें सव्वेणं सव्वे का भंग सम्मत है।
द्रष्टव्य भगवती १ / ३१८-३३३ का भाष्य |
मनुष्य और मानुषी को छोड़कर शेष सब सांपरायिक कर्म का
बंध करते हैं। मनुष्य और मानुषी सकषाय अवस्था में सांपरायिक कर्म
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