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________________ भगवई श.८ : उ.८ : सू. ३१०.३१४ १२२ ३१०. तं भंते ! किं इत्थी बंधइ? पुरिसो तद् भदन्त! किं स्त्री बध्नाति ? पुरुषः बंधइ? तहेव जाव नोइत्थी नोपुरिसो बध्नाति ? तथैव यावत् नो स्त्री नो पुरुषः नो नोनपुंसगो बंधइ? नपुंसकः बध्नाति? गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ गौतम! स्त्री अपि बध्नाति, पुरुषः अपि जाव नपुंसगा वि बंधंति, अहवा एते य । बध्नाति यावत् नपुंसकाः अपि बध्नन्ति, अवगयवेदो बंधइ, अहवा एते य अथवा एते च अपगतवेदश्च बध्नाति, अवगयवेदाय बंधंति॥ अथवा एते च अपगतवेदाश्च बध्नन्ति। ३१०. भते! क्या स्त्री बंध करती है ? पुरुष बंध करता है उसी प्रकार यावत नो-स्त्री, नो-पुरुष, नो-नपुंसक बंध करता है? गौतम! स्त्री भी बंध करती है, पुरुष भी बंध करता है, यावत् नपुंसक भी बंध करते हैं, अथवा ये स्त्री आदि और वेद रहित (एक वचन) बंध करता है। अथवा ये स्त्री आदि और वेद रहित बंध करते हैं। ३११. जइ भंते! अवगयवेदो य बंधइ, यदि भदन्त ! अपगतवेदश्च बध्नाति, अवगयवेदा य बंधंति तं भंते! किं अपगतवेदाश्च बध्नन्ति तद् भदन्त! किं इत्थीपच्छाकडो बंधइ? पुरिस- स्त्री-पश्चात्कृतः बध्नाति? पुरुषपश्चात्पच्छाकडो बंधइ? एवं जहेव कृतः बध्नाति? एवं यथैव ईपिथिकबन्ध- इरियावहियबंधगस्स तहेव निरवसेसं । कस्य तथैव निरवशेषं यावत् अथवा जाव अहवा इत्थी-पच्छाकडा य स्त्रीपश्चात्कृताश्च पुरुषपश्चात्कृताश्च पुरिसपच्छाकडा य नपुंसगपच्छाकडा नपुंसकपश्चात्कृताश्च बध्नन्ति। य बंधति॥ ३११. भंते! यदि वेद रहित बंध करता है, वेद रहित बंध करते हैं तो क्या भंते। स्त्री पश्चात्कृत बंध करती है? पुरुष पश्चात्कृत बंध करता है? इस प्रकार जैसे ऐयापथिक बंध की वक्तव्यता है वैसे ही निरवशेष रूप में वक्तव्य है यावत् अथवा स्त्री पश्चात्कृत, पुरुष पश्चात्कृत, नपुंसक पश्चात् कृत बंध करते हैं। ३१२. तं भंते! किं १. बंधी बंधइ बंधिस्सइ? २. बंधी बंधइ न बंधिस्सइ? ३. बंधी न बंधइ बंधिस्सइ? ४. बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ? तद् भदन्त ! किम् ? १. बन्धी बध्नाति भन्त्स्यति? २. बन्धी बध्नाति न भन्त्स्यति? ३. बन्धी न बध्नाति भन्त्स्यति? ४. बन्धी न बध्नाति न भन्त्स्यति? ३१२. भंते! १. क्या जीव ने उस सांप रायिक कर्म का बंध किया, करता है और करेगा? २. बंध किया, करता है और नहीं करेगा? ३. बंध किया, नहीं करता है और करेगा? ४. बंध किया, नहीं करता है और नहीं करेगा? गौतम! १. किसी जीव ने बंध किया, करता है और करेगा। २. किसी जीव ने बंध किया, करता है और नहीं करेगा ३. किसी जीव ने बंध किया, नहीं करता है और करेगा ४. किसी जीव ने बंध किया, नहीं करता है और नहीं करेगा। गोयमा! १. अत्थेगतिए बंधी बंधइ गौतम! १. अस्त्येककः बन्धी बध्नाति बंधिस्सइ २. अत्थेगतिए बंधी बंधइ न भन्त्स्यति २. अस्त्येककः बन्धी बध्नातिन बंधिस्सइ ३. अत्थेगतिए बंधी न बंधइ भन्त्स्यति ३. अस्त्येककः बन्धी न बध्नाति बंधिस्सइ ४. अत्थेगतिए बंधी न बंधइन भन्त्स्यति ४. अस्त्येककः बन्धी न बध्नाति बंधिस्सइ॥ नभन्स्यति। ३१३. तं भंते ! किं सादीयं सपज्ज-वसियं बंधइ? पुच्छा तहेव। तद् भदन्त ! किं सादिकं सपर्यवसितं बध्नाति? पृच्छा तथैव। गोयमा! सादीयं वा सपज्जवसियं बंधइ, अणादीयं वा सपज्जवसियं बंधइ, अणादीयं वा अपज्जवसियं बंधइ, नो चेव णं सादीयं अपज्जवसियं बंधई। गौतम! सादिकं वा सपर्यवसितं बध्नाति, अनादिकं वा सपर्यवसितं बध्नाति, अनादिकं वा अपर्यवसितं बध्नाति, नो चैव सादिकम् अपर्यवसितं बध्नाति। ३१३. भंते! क्या सांपरायिक कर्म का बंध सादि सपर्यवसित होता है? पूर्ववत् पृच्छा। गौतम! वह सादि-सपर्यवसित होता है, अनादि सपर्यवसित होता है, अनादिअपर्यवसित होता है, सादि-अपर्यवसित नहीं होता। ३१४. तं भंते! किं देसेणं देसं बंधइ? तद् भदन्त ! किं देशेन देशं बध्नाति? ३१४. भंते! क्या देश के द्वारा देश का बंध होता है? ऐपिथिक बंध की भांति वक्तव्यता यावत् सर्व के द्वारा सर्व का बंध होता है। एवं जहेव इरियावहियबंधगस्स जाव सव्वेणं सव्वं बंधइ। एवं यथैव ईर्यापथिकबन्धकस्य यावत् सर्वेण सर्वं बध्नाति। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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