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भगवई
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श.८ : उ.८: सू. ३०७-३०९
बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्य-गतिए बंधी बध्नाति भन्त्स्यति, अस्त्येककः बन्धी बंधइ न बंधिस्सइ, एवं तं चेव सव्वं जाव बध्नाति न भन्त्स्यति, एवं तच्चैव सर्वं अत्थेगतिए न बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। यावत् अस्त्येककः न बन्धी न बध्नाति न
भन्त्स्य ति।
गहणागरिसं पडुच्च अत्थेगतिए बंधी ग्रहणाकर्षं प्रतीत्य अस्त्येककः बन्धी बंधइ बंधिस्सइ, एवं जाव अत्थे-गतिए न बध्नाति भन्त्स्यति, एवं यावत् अस्त्येककः बंधी बंधइ बंधिस्सइ, नो चेव णं न बंधी न बन्धी बध्नाति भन्त्स्यति, नो चैव न बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिएन बंधीन बन्धी बध्नातिन भन्त्स्यति, अस्त्येककःन बंधइ बंधि-स्सइ, अत्थेगतिए न बंधी न बन्धी न बध्नाति भन्त्स्यति, अस्त्येककः न बंधइ न बंधिस्सइ॥
बन्धी न बध्नाति न भन्त्स्यति।
बंध किया, करता है और करेगा। किसी जीव ने बंध किया, करता है और नहीं करेगा, इस प्रकार सर्व वक्तव्य है यावत् किसी जीव ने बंध नहीं किया, नहीं करता है और नहीं करेगा। ग्रहणाकर्ष की अपेक्षा किसी जीव ने बंध किया, करता है और करेगा, इस प्रकार यावत् किसी जीव ने बंध नहीं किया, करता है और करेगा, किसी जीव ने बंध नहीं किया, करता है और नहीं करेगा, किसी जीव ने बंध नहीं किया, नहीं करता है और करेगा, किसी जीव ने बंध नहीं किया, नहीं करता है और नहीं करेगा।
३०७. तं भंते ! किं सादीयं सपज्ज-वसियं बंधइ? सादीयं अपज्जवसियं बंधइ? अणादीयं सपज्जवसियं बंधइ? अणादीयं अपज्जवसियं बंधइ? गोयमा ! सादीयं सपज्जवसियं बंधइ, नो सादीयं अपज्जवसियं बंधइ, नो अणादीयं सपज्जवसियं बंधइ, नो अणादीयं अपज्जवसियं बंधइ॥
तद् भदन्त ! किं सादिकं सपर्यवसितं ३०७. भंते ! क्या उस ऐपिथिक कर्म का बध्नाति ? सादिकम् अपर्यवसितं बध्नाति? बंध सादि-सपर्यवसित होता है? सादि अनादिकं सपर्यवसितं बध्नाति? अपर्यवसित होता है ? अनादि सपर्यवसित अनादिकम् अपर्यवसितंबध्नाति?
होता है? अनादि अपर्यवसित होता है? गौतम ! सादिकं सपर्यवसितं बध्नाति, नो गौतम! वह सादि-सपर्यवसित होता है, सादिकम् अपर्यवसितं बध्नाति, नो । सादि-अपर्यवसित नहीं होता। अनादि अनादिकं सपर्यवसितं बध्नाति, सपर्यवसित नहीं होता, अनादि नोअनादिकम् अपर्यवसितं बध्नाति।
अपर्यवसित नहीं होता।
३०८. तं भंते! किं देसेणं देसं बंधइ ? दे- सेणं सव्वं बंधइ? सव्वेणं देसं बंधइ? सव्वेणं सव्वं बंधइ?
तद् भदन्त ! किं देशेन देशं बध्नाति ? देशेन सर्वं बध्नाति? सर्वेण देशं बध्नाति , सर्वेण सर्वं बध्नाति?
३०८. भंते! क्या देश के द्वारा देश का बंध होता है? देश के द्वारा सर्व का बंध होता है? सर्व के द्वारा देश का बंध होता है? सर्व के द्वारा सर्व का बंध होता है ? गौतम! देश के द्वारा देश का बंध नहीं होता, देश के द्वारा सर्व का बंध नहीं होता, सर्व के द्वारा देश का बंध नहीं होता, सर्व के द्वारा सर्व का बंध होता है।
गोयमा! नो देसेणं देसं बंधइ, नो देसेणं सव्वं बंधइ, नो सव्वेणं देसं बंधइ, स- वेणं सव्वं बंधइ॥
गौतम ! नो देशेन देशं बध्नाति, नो देशेन सर्वं बध्नाति, नो सर्वेण देशं बध्नाति, सर्वेण सर्वं बध्नाति
संपराइयबंध-पदं
साम्परायिकबन्ध-पदम् ३०९. संपराइयं णं भंते! कम्मं किं नेर- साम्परायिकं भदन्त! कर्म किं नैरयिकः इओ बंधइ ?तिरिक्खजोणिओ? बंधइ बध्नाति? तिर्यग्योनिकः बध्नाति यावत् जाव देवी बंधइ?
देवी बध्नाति? गोयमा! नेरइओ वि बंधइ, तिरि- गौतम ' नैरयिकः अपि बध्नाति, तिर्यगक्खजोणिओ वि बंधइ, तिरिक्ख- योनिकः अपि बध्नाति, तिर्यग्योनिका अपि जोणिणी वि बंधइ, मणुस्सो वि बंधइ, बध्नाति, मनुष्यः अपि बध्नाति, मानुषी मणुस्सी वि बंधइ, देवो वि बंधइ, देवी वि अपि बध्नाति. देवः अपि बध्नाति, देवी बंधइ॥
अपि बध्नाति।
सांपरायिक बंध पद ३०९. भंते! सांपरायिक कर्म का बंध क्या, नैरयिक करता है? तिर्यक्योनिक करता है? यावत् देवी करती है? गौतम् ! नैरयिक भी बंध करता है, तिर्यक्- योनिक भी बंध करता है, तिर्यक्योनिक स्त्री भी बंध करती है, मनुष्य भी बंध करता है, मनुष्य-स्त्री भी बंध करती है, देवता भी बंध करता है, देवी भी बंध करती है।
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