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________________ भगवई १०९ श.८:५.७ : सू. २८८-२९१ २८८. तए णं ते थेरा भगवंतो ते ते स्थविराः तान् अन्ययूथिकान् २८८. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों अण्णउत्थिए एवं वयासी-नो खलु एवमवादिषु:-नो खलु आर्य! वयं रीयमाणा से इस प्रकार कहा-आर्यो! हम गमन अज्जो! अम्हे रीयं रीयमाणा पुढविं पृथिवीम् आक्रामामः अभिहन्मः करते हुए पृथ्वी को न आक्रांत, अभिहत, पेच्चामो अभिहणामो जाव उहवेमो। यावत् उद्वयामः। वयं आर्य! रीतं यावत् उपद्रुत करते हैं। आर्यो! हम अम्हे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा कायं । रीयमाणाः कायं वा, योगं वा, ऋतं वा शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति, सेवा वा, जोयं वा, रियं वा पडुच्च देसं देसेणं प्रतीत्य देशं देशेन व्रजामः, प्रदेशं प्रदेशेन आदि कार्य तथा संयम की दृष्टि से वयामो, पदेसं पदेसेणं वयामो, तेणं व्रजामः, तेन वयं देशं देशेन व्रजन्तः, प्रदेश गमन करते हुए पृथ्वी के समुचित देश अम्हे देसं देसेणं वय-माणा, पदेसं पदे- प्रदेशेन वजन्तः नो पृथिवीम् आक्रामामः पर, समुचित प्रदेश पर गमन करते हैं। सेणं वयमाणा नो पुढविं पेच्चेमो अभिहन्मः यावत् उद्वयामः, ततः वयं अतः समुचित देश और समुचित अभिहणामो जाव उद्देवेमो, तए णं अम्हे पृथिवीम् आक्रामन्तः अनिभिध्नन्तः यावत् प्रदेश पर गमन करते हुए हम पृथ्वी को पुढविं अपेच्चमाणा अणभि-हणमाणा अनुद्वयन्तः त्रिविधं त्रिविधेन संयत- आक्रांत, अभिहत यावत् उपद्रुत नहीं जाव अणोहवेमाणा तिविहं तिविहेणं । विरत-प्रतिहत -प्रत्याख्यात-पापकर्माणः करते हैं। पृथ्वी को अनाक्रांत, अनभिहत संजय-विरय-पडिहयपच्चक्खाय-पाव. यावत् एकान्तपंडिताश्चापि भवामः। यूयं यावत् अनुपद्रुत करते हुए हम तीन योग कम्मा जाव एगंतपंडिया या वि भवामो। आर्य! आत्मना चैव त्रिविधं त्रिविधेन और तीन करण से संयत, विरत, अतीत तुब्भे णं अज्जो! अप्पणा चेव तिविहं । असंयत-अविरत-प्रतिहत-प्रत्याख्यात- के पापकर्म का प्रतिहनन करने वाले, तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय- पापकर्माणः यावत् एकान्तबालाश्चापि भविष्य के पापकर्म का प्रत्याख्यान करने पच्चक्खायपावकम्मा जाव एगंत-बाला भवथ। वाले यावत् एकान्त पण्डित भी हैं। या वि भवह।। आर्यो! तुम स्वयं तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पापकर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पापकर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले यावत् एकान्त बाल भी हो। २८९. तए णं ते अण्णउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी-केण कारणेणं अज्जो! अम्हे तिविहं तिविहेणं जाव एगंतबाला या वि भवामो? ततः ते अन्ययूथिकाः तान् स्थविरान् २८९. उन अन्ययूथिकों ने भगवान स्थविरों भगवतः एवमवादिषु:-केन कारणेन आर्य! से इस प्रकार कहा-आर्यो! कैसे हम तीन वयं त्रिविधं त्रिविधेन यावत् योग और तीन करण से असंयत यावत् एकान्तबालाश्चापि भवामः ? एकान्त बाल भी हैं? २९०. तए णं ते थेरा भगवंतो ते अण्ण- ततः ते स्थविराः भगवन्तः तान् उत्थिए एवं वयासी-तुब्भे णं अज्जो! अन्ययूथिकान् एवमवादिषुः-यूयम् आर्य! रीयं रीयमाणा पुढविं पेच्चेह जाव उद्द- रीतं रीयमाणाः पृथिवीम् आक्रामथ यावत् वेह, तए णं तुब्भे पुढविं पेच्चमाणा जाव उद्वयथ ततः यूयं पृथिवीम् आक्रामन्तः उद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं जाव यावत् उद्रवन्तः त्रिविधं त्रिविधेन यावत् एगंतबाला या वि भवह॥ एकान्तबालाश्चापि भवथ। २९०. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा-आर्यो! तुम गमन करते हुए पृथ्वी को आक्रांत यावत् उपद्रुत करते हो। पृथ्वी को आक्रांत यावत् उपद्रुत करते हुए तीन योग और तीन करण से असंयत यावत् एकान्त बाल भी हो। गममाणगयं पडुच्च गम्यमानगतं प्रतीत्य२९१. तए णं ते अण्णउत्थिया ते थेरे । ततः ते अन्ययूथिकाः तान् स्थविरान् भगवते एवं वयासी-तुब्भण्णं अज्जो! भगवतः एवमवादिषुः-युष्माकम् आर्य! गम्ममाणे अगते, वीतिक्कमिज्जमाणे गम्यमानः अगतः, व्यतिक्रम्यमाणः अवीतिक्कते, रायगिहं नगरं अव्यतिक्रान्तः, राजगृहं नगरं सम्प्राप्सुकामः संपाविउकामे असंपत्ते॥ असम्प्राप्तः। गम्यमान गत की अपेक्षा २९१. उन अन्ययूथिकों ने भगवान स्थविरों से इस प्रकार कहा-आर्यो! तुम्हारे मत के अनुसार गम्यमान अगत (नहीं गया हुआ) व्यतिक्रम्यमान अव्यतिक्रांत, राजगृह नगर को संप्राप्त करने की कामना करने वाला असंप्राप्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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