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भगवई
श.८ : उ. ६ : सू. २६४-२६९
१०२ एवं एसो वि जहा पढमो दंडओ तहा एवं एषोऽपि यथा प्रथमः दंडकः तथा भाणियव्यो जाव वेमाणिया, नवरं- भणितव्यः यावत् वैमानिकाः, मणुस्सा जहा जीवा॥
नवरं-मनुष्याः यथा जीवाः।
यह भी प्रथम दण्डक की भांति वक्तव्य है यावत् वैमानिक, इतना विशेष है-मनुष्य जीव की भांति वक्तव्य हैं।
२६५. जीवा णं भंते! ओरालिय-सरीरेहितो कतिकिरिया? गोयमा! तिकिरिया वि,चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि, अकिरिया वि॥
२६५. भन्ते! जीव औदारिकशरीरों से कितनी क्रिया वाले हैं? गौतम ! तीन क्रिया वाले भी, चार क्रिया वाले भी, पांच क्रिया वाले भी और अक्रिय
गौतम ! त्रिक्रियाः अपि, चतुष्क्रियाः अपि, पञ्चक्रियाः अपि. अक्रियाः अपि।
२६६. नेरइया णं भंते! ओरालिय-सरीरे- हिंतो कतिकिरिया? गोयमा! तिकिरिया वि.चउकिरिया वि. पंचकिरिया वि। एवं जाव वेमाणिया, नवरं-मणुस्सा जहा जीवा।।
नैरयिकाः भदन्त ! औदारिकशरीरात कति- क्रियाः? गौतम । त्रिक्रियाः अपि, चतुष्क्रियाः अपि. पञ्चक्रियाः अपि। एवं यावत वैमानिकाः, नवरं- मनुष्याः यथा जीवाः।
२६६. भन्ते! नैरयिक औदारिकशरीरों से कितनी क्रिया वाले हैं? गौतम! तीन क्रिया वाले भी. चार क्रिया वाले भी और पांच क्रिया वाले भी है, यावत वैमानिक, इतना विशेष है-मनुष्य जीव की भांति वक्तव्य हैं।
२६७. जीवे णं भंते! वेउब्वियसरीराओ जीवः भदन्त ! वैक्रियशरीरात कतिक्रियः? कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय गौतम ' स्यात् त्रिक्रियः, स्यात चतुष्क्रियः, चउकिरिए, सिय अकिरिए।
स्यात अक्रियः।
२६७. भन्ते! जीव वैक्रियशरीर से कितनी क्रिया वाला है ? गौतम! स्यात् तीन क्रिया वाला, स्यात् चार क्रिया वाला, स्यात् अक्रिय।
२६८. नेरइए णं भंते ! वेउब्वियसरीराओ नैरयिकः भदन्त! वैक्रियशरीरात् कतिकिरिए?
कतिक्रियः? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए। एवं जाव वेमाणिए, नवरं-मणुस्से एवं यावत् वैमानिकः, नवरं-मनुष्यः यथा जहा जीवे । एवं जहा ओरालियसरीरेणं । जीवः। एवं यथा औदारिकशरीरेण चत्वारः चत्तारि दंडगा भणिया तहा वेउब्विय- दण्डकाः भणिताः तथा वैक्रियशरीरेण अपि सरीरेण वि चत्तारि दंडगा भाणियब्बा, चत्वारः दण्डकाः भणितव्याः, नवरंनवरं- पंचमकिरिया न भण्णइ, सेसं तं। पञ्चमक्रिया न भण्यते, शेषं तच्चैवम्। एवं चेव। एवं जहा वेउब्वियं तहा आहारगं । यथा वैक्रियं तथा आहारकमपि, पि, तेयगं पि कम्मगं पि भाणियब्वं- तेजस्कमपि. कर्मकमपि भणितव्यम्एक्केक्के चत्तारि दंडगा भाणियव्वा एकैकस्मिन चत्वारः दण्डकाः भणितव्याः जाव
यावत
२६८. भन्ते! नैरयिक वैक्रियशरीर से कितनी क्रिया वाला है? गौतम! स्यात् तीन क्रिया वाला, स्यात् चार क्रिया वाला यावत् वैमानिक, इतना विशेष है-मनुष्य जीव की भांति वक्तव्य है। जैसे औदारिकशरीर से चार दण्डक कहे गए हैं वैसे वैक्रियशरीर से भी चार दण्डक वक्तव्य हैं, इतना विशेष है-पांची क्रिया का निर्देश नहीं है, शेष सब पूर्ववत्। जैसे वैक्रियशरीर की वक्तव्यता है वैसे ही आहारकशरीर, तैजसशरीर और कर्मशरीर भी वक्तव्य हैं। प्रत्येक शरीर के चार-चार दण्डक वक्तव्य हैं यावत्
२६९. वेमाणिया णं भंते! कम्मग- वैमानिकाः भदन्त ! कर्मकशरीरेभ्यः कति- २६९. भन्ने! वैमानिक कर्मशरीरों से सरीरेहिंतो कतिकिरिया ? क्रियाः?
कितनी क्रिया वाले हैं? गोयमा! तिकिरिया वि, चउकिरिया गौतम ! त्रिक्रियाः अपि, चतुष्क्रियाः अपि। गौतम! तीन क्रियावाले भी हैं, चार क्रिया वि॥
वाले भी हैं।
भाष्य १.सूत्र २५८-२६९
किया गया है। तीन क्रियाएं शरीर के आधार पर भी हो सकती है प्रस्तुत आलापक में औदारिक आदि शरीर तथा औदारिक किन्तु चार और पांच क्रियाएं जीव युक्त शरीर सापेक्ष होती है। प्रज्ञापना आदि शरीर युक्त जीव-इन दोनों की अपेक्षा से क्रिया का विचार में जीव की अपेक्षा क्रिया और शरीर की अपेक्षा क्रिया-ये दोनों सूत्र
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