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________________ श. ८ : उ. ५ : सू. २४३,२४४ भगवई सद्दालपुत्र बारहव्रती श्रावक था और वह कुम्भकार का बहुत बड़ा व्यवसाय करता था। वह व्यवसाय अंगारकर्म के अंतर्गत आता है। सहाल ने उसका वर्जन क्यों नहीं किया? यह प्रश्न समय-समय पर चर्चित होता रहा है। सेन प्रश्नोत्तर में बताया गया है कि पंद्रह कर्मादान का निषेध आधुनिक उत्तरकालीन है। उत्सर्गमार्ग में श्रावक पंद्रह कर्मादान के व्यवसाय का वर्जन करे। अपवाद मार्ग में इनका वर्जन नहीं किया जाता।' आचार्य भिक्षु का अभिमत यह है-श्रावक मर्यादा के उपरांत पंद्रह कर्मादान का प्रयोग न करे।' २४३. कतिविहा णं भंते! देवलोगा कतिविधाः भदन्त ! देवलोकाः प्रज्ञप्ताः? पण्णत्ता? गोयमा! चउव्विहा देवलोगा पण्णत्ता, तं गौतम! चतुर्विधाः देवलोकाः प्रज्ञप्ताः, जहा-भवणवासी, वाणमंतरा जोइसिया, तद्यथा-भवनवासिनः, वानमन्तराः, वेमाणिया॥ ज्योतिष्काः, वैमानिकाः। २४३. भन्ते! देवलोक कितने प्रकार के प्रज्ञप्त है? गौतम ! देवलोक चार प्रकार के प्रज्ञप्त है, जैसे-भवनवासी, वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक। २४४. सेवं भंते! सेवं भंते! ति॥ तदेवं भदन्त । तदेवं भदन्त ! इति। २४४. भन्ते ! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है। १. सेन प्रश्नोनर उल्लास ?, प्रश्न १०४-नथा भगवत्यां श्राद्धानां पञ्चदश कर्मादाननिषध प्राक्ने नत्सवनं कल्पते न वा इति प्रश्नोत्रोत्तरम-श्रान्द्रानां पञ्चदश-कर्मादाननिषध आधुनिका जयः। अचवादपदे तु, परिहारशक्ती शकटानादीनामिव नानि कल्पन्नपीति। २. बारह व्रत चौपाई, दाल ८.१६ ए पनरे कर्म तणो विसतार. मरजादा बांध कर परिहार। पनरेइ रह्या सावध व्यापार करे आजीविका चनावण हार।। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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