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चउत्थो उद्देसो : चौथा उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
किरिया-पदं २२८. रायगिहे जाव एवं वयासी-कति णं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ?
क्रिया-पदं राजगृहे यावत् एवमवादीत-कति भदन्त! क्रियाः प्रज्ञप्ताः?
गोयमा! पंच किरियाओ पण्णत्ता-ओ, गौतम! पञ्च क्रियाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- तं जहा-काइया, अहिगरणिया, कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पाओसिया, पारियाव-णिया, पाणाइ- पारितापनिकी, प्राणातिपातक्रिया-एवं वायकिरिया-एवं किरियापदं निरवसेसं क्रियापदं निरवशेष भणितव्यं यावत् भाणियव्वं जाव सव्वत्थोवाओ सर्वस्तोकाः मिथ्यादर्शनप्रत्ययाः क्रियाः, मिच्छादसण-वत्तियाओ किरियाओ, अप्रत्याख्यानक्रियाः विशेषाधिकाः, अप्पच्चक्खाणकिरियाओ विसेसा- पारिगहिक्यः क्रियाः विशेषाधिकाः, हियाओ, पारिग्गहियाओ किरियाओ आरम्भिकाः क्रियाः विशेषाधिकाः, विसेसाहियाओ, आरंभियाओ किरि- मायाप्रत्ययाः क्रियाः विशेषाधिकाः। याओ विसेसाहियाओ, मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ।।
क्रिया-पद २२८. 'राजगृह नगर में समवसरण यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते ! क्रियाएं कितनी प्रजप्त हैं? गौतम! क्रियाएं पांच प्रज्ञप्स हैं, जैसेकायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपात क्रिया-इस प्रकार प्रज्ञापना का क्रिया-पद निरवशेष रूप में वक्तव्य है। यावत् मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया सबसे अल्प है। अप्रत्याख्यान क्रिया उससे विशेषाधिक है। पारिग्रहिकी क्रिया उससे विशेषाधिक है। आरंभिकी क्रिया उससे विशेषाधिक है। मायाप्रत्ययिकी क्रिया उससे विशेषाधिक है।
भाष्य १.सूत्र २२८
इन तीनों प्रकार के जीवों में होती है इसलिए वह अप्रत्याख्यान क्रिया प्रस्तुत क्रियापद प्रज्ञापना (बाईसवां पद) से उद्धृत प्रतीत से विशेषाधिक है। आरंभिकी क्रिया मिथ्यादृष्टि, अविरत सम्यगृदृष्टि, होता है। क्रिया की जानकारी के लिए द्रष्टव्य है भगवई (३/१३४. देशविरत और प्रमत्त संयत-इन चारों जीवों में होती है इसलिए वह १३८) का भाष्य। पांच क्रियाओं का अल्प बहुत्व सापेक्ष दृष्टि से है। पारिग्राहिकी क्रिया से विशेषाधिक है। माया-प्रत्यया क्रिया मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया केवल मिध्यादृष्टि जीवों में ही होती है। मिथ्यादृष्टि, अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरत प्रमत्त संयत और अप्रमत्त अप्रत्याख्यान क्रिया मिथ्यादृष्टि और अविरत सम्यग्दृष्टि-इन दोनों संयत-इन पांचों जीवों में होती है इसलिए वह आरंभिकी क्रिया से जीवों में होती है इसलिए वह मिथ्यादृष्टिप्रत्यया से विशेषाधिक है। विशेषाधिक है।' पारिग्रहिकी क्रिया मिथ्यादृष्टि, अविरत सम्यग्दृष्टि और देशविरत२२९. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति॥ तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।। २२२. भंते! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा
१. भ. वृ.८/२२८
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