________________
मूल
किरिया पर्व
१३३. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्या जाव परिसा पडिगया।
१३४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी मंडिअपुत्ते नाम अणगारे पगइभद्दए जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी कइ णं भंते! किरियाओ पण्णत्ताओ ?
-
मंडिअपुत्ता ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - काइया, अहिगरणिआ, पाओसिआ, पारियावणिआ, पाणाइवायकिरिया ||
तइओ उद्देसो तीसरा उद्देशक
:
संस्कृत छाया
Jain Education International
क्रिया-पदम्
तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहं नाम नगरमासीद यावत्परिषत् प्रतिगता ।
तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तेवासी मण्डितपुत्रः नाम अनगारः प्रकृतिभद्रकः यावत् पर्युपासमानः एवमवादीत् - कति भदन्त ! क्रियाः प्रज्ञप्ताः ?
१३५. काइया णं भंते! किरिया कइविहा कायिकी भदन्त ! क्रिया कतिविधा प्रज्ञप्ता? पण्णत्ता ?
मंडअपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहाअणुवरयकायकिरिया य, दुप्पउत्तकायकिरिया य ॥
-
मण्डितपुत्रः पञ्चक्रियाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथाकायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातक्रिया ।
मण्डितपुत्र! द्विधा प्रज्ञप्ता, तद् यथाअनुपरतकायक्रिया च दुष्प्रयुक्तकायक्रिया
च ।
१३६. अहिगरणिआ णं भंते! किरिया कइविहा आधिकरणिकी भदन्त ! क्रिया कतिविधा पण्णत्ता ? प्रज्ञप्ता ? मंडअपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहासंजोयणाहिगरणकिरिया य, निवत्तणाहिगरणकिरिया य ॥
मण्डितपुत्र ! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद् यथासंयोजनाधिकरणक्रिया च निर्वर्तनाधिकरणक्रिया च ।
-
१३७. पाओसिआ णं भंते! किरिया कइविहा प्रादोषिकी भदन्त ! क्रिया कतिविधा प्रज्ञप्ता ? पण्णत्ता ?
मंडिअपुत्ता। दुविहा पण्णत्ता, तं जहाजीवपाओस व अजीवपाओसिजा य
मण्डितपुत्रः द्विविधा प्रज्ञप्ता तद् यथाजीवप्रादोषिकी च अजीवप्रादोषिकी च।
For Private & Personal Use Only
हिन्दी अनुवाद
क्रिया-पद
१३३. उस काल और उस समय राजगृह नाम का नगर था। भगवान् महावीर वहां पधारे। परिषद् आई यावत् धर्म सुनकर वापिस चली गई।
१३४. " उस काल और उस समय श्रमण भगवान् महावीर का अन्तेवासी शिष्य मण्डितपुत्र नामक अनगार भगवान् के पास आया। वह प्रकृति से भद्र था यावत् भगवान् की पर्युपासना करता हुआ इस प्रकार बोला- भंते! कितनी क्रियाएं प्रज्ञप्त हैं?
महितपुत्र पांच क्रियाएं प्रज्ञप्त हैं, जैसे कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी पारितापनिक और प्राणातिपात क्रिया ।
-
१३५. भन्ते ! कायिकी क्रिया कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है?
मण्डितपुत्र ! वह दो प्रकार की प्रज्ञप्त हैं? जैसेअनुपातकायक्रिया विरतिरहित व्यक्ति की काया की प्रवृत्ति और दुष्प्रयुक्तकायक्रिया-इन्द्रिय और मन के विषयों में आसक्त व्यक्ति की काया की प्रवृत्ति ।
१३६. भन्ते ! आधिकरणिकी क्रिया कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है?
-
मण्डितपुत्र ! वह दो प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे संयोजनाधिकरणक्रिया पूर्व निर्मित भागों को जोड़कर शस्त्र-निर्माण करने की क्रिया और निर्वर्तनाधिकरणक्रिया-नए सिरे से शस्त्र-निर्माण करने की क्रिया ।
१३७. भन्ते । प्रादोषिकी क्रिया कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है?
मण्डितपुत्र ! वह दो प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसेजीव-प्रादोषिकी और अजीव प्रादोषिकी।
www.jainelibrary.org