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भगवई
भगवती वृत्ति
मघवा - मघा महामेघास्ते यस्य वशे सन्त्यसौ मघवा ।
१. स्वाभाविक
वीससा- (विस्रसा ) - स्वभाव | संस्कृत शब्द-कोश में यह वृद्धावस्था के अर्थ में मिलता है। आगम के व्याख्या-साहित्य में विस्रसा का अर्थ 'स्वभाव' और वैस्रसिक का अर्थ 'स्वाभाविक' प्राप्त है।
पाकशासनः – पाको नाम बलवान् रिपुस्तं यः शास्ति - निराकरोत्यौ
पाकशासनः ।
शतक्रतुः मतं कतुनां प्रतिमानामभिग्रहविशेषाणां श्रमणोपासकपञ्चमप्रतिमारूपाणां वा कार्तिकश्रेष्ठभवापेक्षया यस्वासी शतक्रतुः।
सहस्राक्षः सहस्रमक्षणां यस्यासौ सहस्राक्षः । इन्द्रस्य किल मन्त्रिणां पञ्चशतानि सन्ति तदीयानां चाणामिन्द्रप्रयोजनव्यापतत्तयेन्द्रसम्बन्धित्वेन
विचक्षणात्तस्य सत्यमिति
पुरन्दरः - असुरादिपुराणां दारणात् पुरन्दरः ।'
भाष्य
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३. निर्मल वस्त्र धारण करने वाला
अरयंबरवत्थधर - 'अरज' का अर्थ है – निर्मल। यहां 'अम्बर' का अर्थ है 'आकाश'। ये दोनों वस्त्र के विशेषण हैं। इसका अर्थ है 'निर्मल और स्वच्छता के कारण आकाश तुल्य वस्त्र धारण करने वाला'। यह वृत्ति की व्याख्या है। पहला विशेषण अरजस् है । फिर स्वच्छता की दृष्टि से आकाश तुल्य बतलाने की अपेक्षा क्या है? इसलिए अम्बर का अर्थ 'आकाश की भांति नील आभा वाला' अथवा 'आकाश की भांति सूक्ष्मता के कारण अदृश्य' किया जा सकता है।
४. हीन पुण्य चतुर्दशी को जन्मा हुआ
हीणपुण्णचाउद्दस — यह आक्रोश-सूचकवाणी का प्रयोग है। वृत्तिकार के अनुसार जन्म के लिए चतुर्दशी पुण्यतिथि मानी जाती है। “तू चतुर्दशी को जन्मा हुआ नहीं है" यह आक्रोशपूर्ण अपशब्द है। जयाचार्य ने इसका अर्थ अमावस का जन्म हुआ किया है।" चातुदर्श का एक अर्थ राक्षस है। उस अर्थ
१. भ. वृ. ३ / १०६ ।
२. भ. जो. १/५८ / २१
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हीणपुण्य चउद्दशी नो ऊपनो, काली बूली अमावस जायो । जेह भणी भुझ एहवा, एहवे रूप करी युक्त तायो ॥
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२. मधवापुरन्दर
एक श्लोक में इन्द्र के नी पर्यायवाची नाम दिए गए हैं। वृत्ति में कुछ शब्दों के निरुक्त प्राप्त हैं। वे अन्यत्र प्राप्त निरुक्तों से भिन्न हैं। वृत्तिकार ने दशाश्रुतस्कन्ध की चूर्णि का आधार लिया है। द्रष्टव्य निरुक्त कोश, वे वे शब्द।
श.३ उ.२ सू.१०६, ११०
अन्य निरुक्त
मघवा - धनवान्, हविष्मान् (सायणभाष्ये) माते पूज्यते इति मघवान् ( शब्दकल्पद्रुमे ) पाकशासनः - पाकं तन्नामकं दैत्यं शास्ति (वाचस्पतिकोश)
शतक्रतुःशतकर्मा (सायणभाष्ये)
-शतं क्रतवो ( यज्ञाः) यस्य (वाचस्पतिकोश) सहस्राक्षः --- अनन्तयालः- ( सायणमाप्ये) -हम् अक्षीणि यस्य सः (यावरपत्तिकोश )
पुरन्दरः- शत्रूणां पुरां दारयिता (सायणभाष्ये)
---शत्रूणां पुरः दारयति - नाशयति ( वाचस्पतिकोश)
११०. तए णं ते सामाणियपरिसोववण्णगा देवा ततः ते सामानिकपरिषदुपपन्नकाः देवाः चमरेणं असुरिंदेणं असुररण्णा एवं वृत्ता चमरेण असुरेन्द्रेण असुरराजेन एवमुक्ताः समाणा तुवित्तमादिया गंदिया पीइमना सन्तः हृष्टतुष्टचित्तानन्दिताः नन्दिताः प्रीतिपरमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया मनसः परमसौमनस्थिताः हर्षवशविसर्पद्
को स्वीकृत करने पर प्रस्तुत वाक्यांश का अनुवाद इस प्रकार हो सकता है - " हीनपुण्य राक्षस"।"
५. बड़े धैर्य के साथ (अल्पोत्सुक)
वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'अल्प' किया है का अर्थ 'त्वरा' या 'उतावलापन' है। जो अनुत्सुक हो, जिसमें उतावलापन या त्वरा न हो उसे अनुत्सुक या अनीत्सुक्य कया जा सकता है।"
शब्द-विमर्श
अपत्थियपत्थए- अप्रार्थित की प्रार्थना करने वाला। श्रीमज्जयाचार्य ने इसका अर्थ 'मरण वांछक' किया है।
देशी शब्द है।
दुरंतपंतलक्खणे - जिसका अंत इसका अर्थ है- 'अमनोज्ञ' या 'अवांछनीय' ।
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दुःखद
११०, असुरेन्द्र असर के द्वारा ऐसा कहने प वे सामानिक परिषद में उदेवष्टतुष्टचित्त वाले आनन्दित नन्दित प्रीतिपूर्ण मन वाले और परम
सोमनस्य युक्त हो गए है। हर्ष से उनका हृदय फूल
३. आप्टे चातुर्दशम् -- A demon ( चतुर्दश्यां दृश्यते इति ) । ४. भ. जो. १/५८/२०
कुण रे एह अपत्थिय- पत्थए, मरणवांछक विपरीत।
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