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________________ भगवई श.३ : उ.२ : सू.६३-६५ ४२ ततो पडिनियत्तिता इहमागच्छंति। जइ णं प्रतिनिवृत्य इह आगच्छन्ति। यदि ताः अप्सरसः ताओ अच्छराओ आढायंति परियाणंति, पभू आद्रियन्ते परिजानन्ति, प्रभवः ते असुरणं ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं कुमाराः देवाः ताभिः अप्सरोभिः सार्द्ध दिव्यान् दिव्वाइं भोगभोगाइं मुंजमाणा विहरित्तए। अह भोग्यभोगान् भुजानाः विहर्तुम्। अथ ताः णं ताओ अच्छराओ नो आदति, नो अप्सरसः न आद्रियन्ते, न परिजानन्ति, न परियाणंति, नो णं पभू ते असुरकुमारा देवा प्रभवः ते असुरकुमाराः देवाः ताभिः अप्सरोभिः ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं सार्द्ध दिव्यान् भोग्योनान् भुञ्जानाः विहर्तुम्। भुंजमाणा विहरित्तए। एवं खलु गोयमा! एवं खलु गौतम! असुरकुमाराः देवाः सौधर्मं असुरकुमारा देवा सोहम्मं कप्पं गया य गमि- कल्पं गताश्च गमिष्यन्ति च। संति य॥ से लौट कर अपने असुरकुमार आवासों में आ जाते हैं। यदि वे अप्सराएं उनका आदर करती हैं और उन्हें स्वीकार करती हैं, तो वे असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य भोगार्ह भोग भोगने में समर्थ हैं। यदि वे अप्सराएं उनका आदर नहीं करती हैं और उन्हें स्वीकार नहीं करती हैं, तो वे असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य भोगार्ह भोग भोगने में समर्थ नहीं है। गौतम! इस प्रकार असुरकुमार देव सौधर्म कल्प में गए हैं और जाएंगे। ६४. केवइयकालस्स णं भंते! असुरकुमारा देवा कियत्कालेन भदन्त! असुरकुमाराः देवाः ६४. 'भन्ते! असुरकुमार देव कितने समय से ऊर्ध्वलोक उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मं कप्पं गया य ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति यावत् सौधर्मं कल्पं गताश्च में जाते हैं यावत् सौधर्म कल्प तक गए हैं और जाएंगे? गमिस्संति य? गमिष्यन्ति च? गोयमा! अर्णताहि ओसप्पिणीहिं, अणंताहि गौतम! अनन्ताभिः अवसर्पिणीभिः अनन्ताभिः गौतम! अनन्त अवसर्पिणी और अनन्त उत्सर्पिणी के उस्सप्पिणीहिं समतिक्कंताहिं अत्थि णं एस उत्सर्पिणीभिः समतिक्रान्ताभिः अस्ति एष भावः ____ व्यतीत होने पर लोक में आश्चर्यभूत यह भाव उत्पन्न भावे लोयच्छेरयभूए समुप्पज्जइ, जंणं असुर- लोके आश्चर्यकभूतः समुत्पद्यते यद् असुर- होता है कि असुरकुमार देव ऊर्ध्वलोक में यावत् सौधर्म कुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कुमाराः देवाः ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति यावत् सौधर्मः कल्प तक जाते हैं। कप्पो॥ कल्पः । भाष्य १. सूत्र ६४ ठाणं में दस आश्चर्य बतलाए गए हैं। उनमें असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के उत्पात का-सौधर्म कल्प में जाने का उल्लेख है। ये आश्चर्य इसलिए माने जाते हैं कि अनन्त काल से घटित होते हैं। ६५. किं निस्साए णं भंते! असुरकुमारा देवा किं निश्रित्य भदन्त! असुरकुमाराः देवाः ६५.' भन्ते! असुरकुमार देव किसकी निश्रा (आश्रय) से उड्ढं उपयंति जाव सोहम्मो कप्पो? ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति यावत् सौधर्मः कल्पः? ऊर्ध्वलोक में, यावत् सौधर्म कल्प तक जाते हैं? गोयमा! से जहानामए इहं सबरा इ वा बब्बरा गौतम! तद् यथानाम इह शबरा इति वा, बर्बरा गौतम ! जैसे कोई शबर, बर्बर, टंकण, चुचुक, पल्हव इ वा टंकणा इ वा चुचुया इ वा पल्हा इ वा इति वा टंकणा इति वा चुचुका इति वा पल्हा या पुलिन्द एक महान् अरण्य, गर्त, दुर्ग, दरी, विषम पुलिंदा इ वा एगं महं रणं वा गड्ढं वा दुग्गं इति वा पुलिन्दा इति वा एकं महत् अरण्यं वा अथवा पर्वत की निश्रा से एक विशाल अश्वसेना, वा दरिं वा विसमं वा पव्वयं वा नीसाए गर्त वा दुर्गं वा दरी वा विषमं वा पर्वतं वा हस्तिसेना, पदातिसेना अथवा धनुष्यबल को आन्दोलित सुमहल्लमवि आसबलं वा हत्थिबलं वा निश्रित्य सुमहदपि अश्वबलं वा हस्तिबलं वा कर देते हैं, इसी प्रकार असुरकुमार देव भी अर्हत्, जोहबलं वा धणुबलं वा आगलेंति, एवामेव योद्धबलं वा धनुर्बलं वा आकलयन्ति एवमेव अर्हत् चैत्य अथवा भावितात्मा अणगार की निश्रा से असुरकुमारा वि देवा नण्णत्थ अरहंते वा असुरकुमारा अपि देवाः नान्यत्र अर्हतो वा ऊर्ध्वलोक में यावत् सौधर्म कल्प तक जाते हैं। उनकी अरहंतचेतियाणि वाअणगारे वा भाविअप्पणो अर्हच्चैत्यानि वा अनगारान् वा भावितात्मनः निश्रा के बिना वे ऊर्ध्वलोक में नहीं जा सकते। निस्साए उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो॥ निश्रित्य ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति यावत् सौधर्मः कल्पः । भाष्य १. सूत्र ६५ प्रस्तुत सूत्र में निश्रा के तीन कारकों का उल्लेख हैं-१. अर्हत् २. अर्हत्-चैत्य ३. भावितात्मा अनगार। अर्हत् का अर्थ है तीर्थकर अथवा अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी। अर्हत-चैत्य के दो अर्थ हो सकते १.ठाणं, १०/१६०। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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