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________________ श. ३ : उ.२ : सू. ८६-६० 2 ८७. किंपत्तियष्णं भंते असुरकुमारा देवा नंदिस्सरवरं दीवं गया य गमिस्संति य? गोयमा! जे इमे अरहंत भगवंतो एएसि णं जम्मणमहेसु वा निक्खमणमहेसु वा, नाणुपायमहिमासु वा परिनिव्वाणमहिमासु वा - एवं खलु असुरकुमारा देवा नंदिस्सरवरं दीवं गया य गमिस्संति य ॥ १. सूत्र ८६, ८७ प्रस्तुत सूत्रों में नन्दीश्वर द्वीप तक जाने के चार हेतु बतलाए गए है— जन्म महोत्सव, अभिनिष्क्रमण महोत्सव, ज्ञानोत्पाद-महोत्सव और परि निर्वाण महोत्सव | यहां गर्भ महोत्सव का उल्लेख नहीं है। किं प्रत्यायितं भवन्त असुरकुमाराः देवाः नन्दीश्वरवरं द्वीपं गताश्च गमिष्यन्ति च ? गीतम। ये इमे अर्हन्तः भगवन्तः, एतेयं जन्ममहेषु वा, निष्क्रमणमहेषु वा ज्ञानोत्पादमहिमासु वा परिनिर्वाणमहिमासु वा एवं खलु असुरकुमाराः देवाः नन्दीश्वरवरं द्वीपं गताश्च गमिष्यन्ति च । जंबुद्दीवपण्णत्ती में भगवान् ऋषभ के दो महाथजन्ममहोत्सव और निर्वाण महोत्सव का उल्लेख मिलता है।' ठाणं में पदमप्रभ तीर्थकर के पांच विशेष प्रसंगों का उल्लेख है। चित्रा नक्षत्र में उनका गर्भ मे आगमन, उसी नक्षत्र में जन्म, उसी नक्षत्र में दीक्षा, उसी नक्षत्र में केवलज्ञान ४० भाष्य १. जंबु ५ वां वक्षस्कार २ / ८६ १२० । २. ठाणं ५/८४-६७। ३. जबुद्दीवपणती संगहो, १३/६३ ८८. अत्थि णं भंते असुरकुमाराण देवाणं उद्धं अस्ति भदन्त ! असुरकुमाराणं देवानाम् उर्ध्वं गतिविसिए? गतिविषयः ? हन्त ! अस्ति । हंता अत्थि ॥ Jain Education International ६. केवतियणं भंते! असुरकुमाराणं देवानं कियान् भदन्त । असुरकुमाराणां देवानाम् उर्ध्वं उड् गतिविस? गतिविषयः ? गोयमा ! जाव अच्चुतो कम्पो सोहम्मं पुण गीतम! यावद् अच्युतः कल्पः सौधर्म पुनः कप्पं गया य गमिस्संति य ॥ कल्पं गताश्च गमिष्यन्ति च । J की उत्पत्ति और उसी नक्षत्र में परिनिर्वाण हुआ था। इसी प्रकार कुछ अन्य तीर्थंकरों के भी पांच-पांच विशेष प्रसंग बतलाए गए हैं। पर यहां महोत्सव मनाने की बात उल्लिखित नहीं है। भगवई १४ / २४ में भी चार महोत्सवों का उल्लेख मिलता है। देवों द्वारा जन्म महोत्सव आदि को मनाने की बात दिगम्बर साहित्य में भी मिलती है।' बौद्ध साहित्य में भी बुद्ध के जन्म के अवसर पर देवों के आने और उनके जन्म को मनाने की बात मिलती है। भगवती सूत्र में इस विषय का प्रवेश उत्तरकाल में हुआ प्रतीत होता है। नन्दीश्वर द्वीप की जानकारी के लिए जीवाजीवाभिगने (३/८८०६२४) द्रष्टव्य है। ६०. किंपत्तियन्नं भंते! असुरकुमारा देवा किं प्रत्ययितं भदन्त असुरकुमाराः देवाः सोहम्मं कप्पं गया य गमिस्संति य? सौधर्म कल्पं गताश्च गमिष्यन्ति च। गोयमा ! तेसि णं देवाणं भवपच्चइए वेराणु गौतम! तेषां देवानां भवप्रत्ययिकः वैरानुबन्धः, बंधे, ते णं देवा विकुव्वेमाणा परियारेमाणा ते देवाः विकुर्वाणाः परिचारयन्तो वा आत्मवा आयर देवे वित्ताति अढालहुसगाई रक्षान् देवान् वित्रासयन्ति यथा लघुस्यानि रयणाई गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमंति॥ रत्नानि गृहीत्वा आदाय एकान्तमन्तम् अवक्रामन्ति । भगवई ८७. मन्ते! असुरकुमार देव नन्दीश्वरवर द्वीप तक गए हैं और जाएंगे, इसका प्रत्यय क्या है? गीतम! जो ये अर्हत् भगवान हैं, इनके जन्मोत्सव, अभिनिष्क्रमण-उत्सव, केवल ज्ञानोत्पत्ति-उत्सव अथवा परिनिर्वाण-उत्सव के अवसर पर इन चार प्रत्ययों से असुरकुमार देव नन्दीश्वरवर द्वीप तक गए हैं और जाएंगे। For Private & Personal Use Only ८८. भन्ते ! क्या असुरकुमार देवों की गति का विषय ऊर्ध्वलोक में है ? हां, है । ८६. भन्ते! ऊर्ध्वलोक में असुरकुमार देवों की गति का विषय कितना है ? गौतम! अर्ध्वलोक में असुरकुमार देवों की गति का विषय अच्युत कल्प तक है। सौधर्म कल्प तक वे गए हैं और जाएंगे। ६०. भन्ते! असुरकुमार देव सौधर्म कल्प में गए हैं और जाएंगे - इसका प्रत्यय क्या है? गौतम! असुरकुमार देवों का सौधर्म कल्पवासी देवों के साथ भवप्रात्यधिक वैरानुबन्ध होता है वे असुरकुमार देव (सौधर्म कल्पवासी देवों को डराने के लिए) विशाल शरीर का निर्माण करते हैं, अन्य देवियों के साथ भोग करना चाहते हैं, आत्मरक्षक देवों को संत्रस्त करते हैं, छोटे, रत्नों को चुराकर स्वयं एकान्त स्थान में चले जाते हैं। गभावयारकाले जम्मणकाले तहेव णिक्खमणे । केवलणापणे परिणिव्वाणम्मि समयम्मि ॥ ४. जातक, अविदूरेनिदान, हिन्दी अनुवाद ( प्रथम खण्ड) पृ. ६६, ६७ । www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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