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भगवई
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श.३ : उ.२ : सू.८१-८६
कुमारदेववत्तव्वया जाव दिव्वाइं भोगभोगाई कुमारदेववक्तव्यता यावद् दिव्यान् भोग्यभोगान् भुंजमाणा विहरंति ॥
भुञ्जानाः विहरन्ति।
प्रकार असुरकुमार देवों की वक्तव्यता है, यावत् वे दिव्य भोगार्ह भोगों का भोग करते हुए रहते हैं।
भाष्य
१. सूत्र ८१
रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है।'
एक हजार योजन ऊपर और एक हजार योजन नीचे छोड़कर शेष एक लाख अठहत्तर हजार योजन में असुरकुमारों के आवास हैं।
८२. अत्थि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं अहे अस्ति भदन्त! असुरकुमाराणां देवानां अधः ५२. भन्ते! क्या असुरकुमार देवों की गति का विषय नीचे गतिविसए? गतिविषयः?
लोक में हैं? हंता अत्थि ॥
हन्त अस्ति।
५३. केवतियण्णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं कियान् भदन्त! असुरकुमारा देवानाम् अधः ८३. भन्ते! असुरकुमार देवों की गति का विषय नीचे अहे गतिविसए पण्णते? गतिविषयः प्रज्ञप्तः?
लोक में कितना प्रज्ञप्त है? गोयमा! जाव अहेसत्तमाए पुढवीए । तच्चं गौतम! यावद् अधःसप्तम्याः पृथिव्याः। तृतीयां गौतम! उनकी गति का विषय अधःसप्तमी पृथ्वी तक पुण पुढविं गया य गमिस्संति य ॥ पुनः पृथिवीं गताः च गमिष्यन्ति च। है। तीसरी पृथ्वी तक वे गए हैं और जाएंगे।
निय
८४. किंपत्तियण्णं भंते! असुरकुमारा देवा तच्चं किंप्रत्ययितं भदन्त! असुरकुमाराः देवाः तृतीयां पुढविं गया य गमिस्संति य?
पृथिवीं गताः च गमिष्यन्ति च? गोयमा! पुब्बवेरियस्स वा वेदणउदीरणयाए, गौतम! पूर्ववैरिकस्य वा वेदनोदीरणया, पूर्व- पुव्वसंगतियस्स वा वेदणउवसामणयाए–एवं सांगतिकस्य वा वेदनोपशामनया-एवं खलु खलु असुरकुमारा देवा तच्चं पुढविं गया य असुरकुमाराः देवाः तृतीयां पृथिवीं गताः च गमिस्संति य॥
गमिष्यन्ति च।
८४.' भन्ते! असुरकुमार देव तीसरी पृथ्वी तक गए हैं
और जाएंगे, इसका प्रत्यय क्या है? गौतम! पूर्व जन्म के वैरी की वेदना की उदीरणा करने के लिए अथवा पूर्वजन्म के मित्र की वेदना का उपशमन करने के लिए-इन दो प्रत्ययों से असुरकुमार देव तीसरी पृथ्वी तक गए हैं और जाएंगे।
भाष्य १. सूत्र ८४
यह सिद्धान्त फलित होता है। आचार्य भिक्षु ने इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया
थानारकीय जीवों की वेदना की उदीरणा सभी असुरकुमार नहीं करते,
"मित्री तूं मित्रीपणो चलियो जावै, संक्लिष्ट परिणाम वाले असुरकुमार ही प्रथम तीन नरकभूमियों में जाकर वहां के नारकीय जीवों को दुःख देते हैं। ये परमाधार्मिक श्रेणी के असुरकुमार
वैरी सूं वैरीपणो चलियो जावै। होते हैं। प्रस्तुत सूत्र में सामान्यतः वेदना देने की बात नहीं है। यहां केवल पूर्व
अपना किया हुआ कर्म अपने को भोगना होता है, दूसरा व्यक्ति बैरी को दुःख देने के लिए तीसरी नरक तक जाने की व्यवस्था बतलाई है।
उसको उत्तेजित या उपशान्त करने में निमित्त बन सकता है। असुरकुमार अपने पूर्व मित्रों की वेदना का उपशमन करने के लिए भी वहां
प्रस्तुत सूत्र में निमित्त के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है। जाते हैं। वैर या मैत्री दोनों का अनुबन्ध चलता रहता है-प्रस्तुत प्रकरण से
८५. अत्थि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं तिरियं गतिविसए पण्णत्ते? हंता अस्थि ।।
अस्ति भदन्त! असुरकुमाराणां देवानां तिर्यग् ८५. भन्ते! क्या असुरकुमार देवों की गति का विषय गतिविषयः प्रज्ञप्तः?
तिरछे लोक में प्रज्ञप्त है? हन्त अस्ति।
८६. केवतियण्णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं तिरियं गतिविसए पण्णत्ते? गोयमा! जाव असंखेज्जा दीव-समुद्दा, नंदिसरवरं पुण दीवं गया य गमिस्संति य॥
कियान्! भदन्त! असुरकुमाराणां देवानां तिर्यग् ८६.'भन्ते! तिरछे लोक में असुरकुमार देवों की गति का गतिविषयः प्रज्ञप्तः?
विषय कितना प्रज्ञप्त है? गौतम! यावद् असंख्येयाः द्वीप-समुद्राः नन्दी- गौतम! उनकी गति का विषय असंख्य द्वीप-समुद्रों श्वरवरं पुनः द्वीपं गताः च गमिष्यन्ति च। तक है। नन्दीश्वरवर द्वीप तक वे गए हैं और जाएंगे।
१ (क) सर्वार्थसिद्धि, ३/५/२०६/३। (ख) ति. प. २/३४। ३४६।
२. अनुकम्पा. ११/४५।
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