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भगवई
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श.३ : उ.१ : सू.७४-७६
गोयमा! सत्त सागरोवमाणि ठिती पण्णत्ता॥ गौतम! सप्त सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता।
गौतम! सात सागरोपम की स्थिति प्रज्ञप्त है।
७५. से णं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं स भदन्त। तस्माद् देवलोकाद् आयुःक्षयेण ७५. भन्ते! वह आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय होने
भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता भवक्षयेण स्थितिक्षयेण अनन्तरं च्यवं च्युत्वा के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा? कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? कुत्र गमिष्यति? कुत्र उपपत्स्यते?
कहां उपपन्न होगा? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झि- गौतम! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति 'बुज्झिहिति', गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त हिति मुच्चिहिति परिणिवाहिति सव्वदुक्खाणं मोक्ष्यति परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानाम् अन्तं और परिनिर्वृत होगा, सब दुःखों का अन्त करेगा। अंतं करेहिति ॥
करिष्यति।
७६. सेवं भंते! सेवं भंते!
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त!
७६. भन्ते! वह ऐसा ही है, भन्ते! वह ऐसा ही है।
संगहणी गाहा
छट्ठट्ठममासो, अद्धमासो वासाइं अट्ठ छम्मासा। तीसग-कुरुदत्ताणं, तव-भत्तपरिण्ण-परियाओ ॥११॥
संग्रहणी गाथा षष्ठाष्टममासोऽर्द्धमासो वर्षाणि अष्ट षण्मासाः। तिष्यक-कुरुदत्तयोः, तप:-भक्तपरिज्ञा-पर्यायः ॥११॥
संग्रहणी गाथा तिष्यक मुनि की तपस्या निरन्तर दो-दो दिन का उपवास, अनशन एक महीने का और दीक्षापर्याय आठ वर्ष का था। कुरुदत्त मुनि की तपस्या निरन्तर तीन-तीन दिन का उपवास, अनशन पन्द्रह दिन का और दीक्षा पर्याय छह महीने का था। विमानों की ऊंचाई, इन्द्रों का परस्पर एक दूसरे के पास प्रकट होना, दर्शन, वार्तालाप, करणीय, विवादोत्पत्ति तथा सनत्कुमार की भव्यता आदि विषयों का वर्णन इस उद्देशक में हुआ है।
उच्चत्त विमाणाणं, पाउब्भव पेच्छणा य संलावे। किच्च-विवादुप्पत्ती, सणंकुमारे य भवियत्तं ॥२॥
उच्चत्वं विमानानां, प्रादुर्भवः प्रेक्षणा च संलापः। कृत्य-विवादोत्पत्तिः, सनत्कुमारे च भव्यत्वम् ॥२॥
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