________________
भगवई
१ उच्चतर, उन्नततर
साधारणतया उच्च और उन्नत का प्रयोग ऊंचाई के अर्थ में होता है। यहां दोनों पदों का प्रयोग एक साथ है। वृत्तिकार ने उच्चतर का अर्थ
५५. से कैण मंते! एवं वृच्चइ ? गोयमा से जहानामे करवले सिया देसे उच्चे देखे उन्नते देखे गए, देसे निष्गे से तेणद्वेषणं गोयमा ! सक्करस देविंदस्स देवरणे जाव ईसि निण्णतरा चेव ॥
५६. प णं भंते । सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरणो अंतिय पाउन्मवित्तए? हंता पभू ॥
५७. से भंते! किं आढामाणे पभू? अणाढामाणे पयू? गोवमा! आदामाणे पभू नो अगाडामागे पभू ॥
५८. पभू णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया सक्कस देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउ ब्गवित्तए ? हंता प्रभु ॥
६०. पभू णं भंते! सक्के देविंदे देवराया ईसाणं देविंद देवरायं सपक्खिं सपडिदिसिं समभिलोइत्तए?
हंता पभू ॥
६१. से भंते! किं आढामाणे पभू? अणाढामाणे पभू?
गोयमा ! आढामाणे पभू, नो अणाढामाणे पभू ।
३३
भाष्य
६२. पभू णं भंते! ईसाणे देविदे देवराया सक्कं देविंद देवराव सपविखं सपदिसिं सममिलोइत ?
Jain Education International
'प्रमाण की अपेक्षा से ऊंचा' और उन्नततर का अर्थ 'गुण की अपेक्षा से उन्नत' किया है। वैकल्पिक अर्थ है 'उच्चतर' प्रासाद की अपेक्षा से और 'उन्नततर' प्रासाद की पीठ की अपेक्षा से।'
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्चते? गौतम् तद् यथानाम करतलः स्यात् देशे ! उच्चः देशे उन्नतः । देशे नीचः देशे निम्नः । तत् तेनार्थेन गौतम शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य यावद् ईशन् निम्नतराः चैव ।
५६. से भंते ! किं आढामाणे पभू ? अणाढामाणे सः भदन्त ! किम् आद्रियमाणः प्रभुः ? अनापभू? द्वियमाणः प्रभुः गोयमा! आडामाणे विप, अगाढामाने वि गौतम आद्रियमाणोऽपि प्रभुः अनाद्रियपमू । मापि प्रभुः।
प्रभुः भवन्त! शक: देवेन्द्रः देवराजः ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अन्तिके प्रादुर्भवितुम् हन्त प्रभुः ।
स भदन्त ! किम् आद्रियमाणः प्रभुः ? अनाद्रियमाणः प्रभुः ?
गौतम! आदियमाणः प्रभुः नो अनाद्रियमाणः प्रभुः ।
प्रभुः भदन्त ! ईशानः देवेन्द्रः देवराजः शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अन्तिके प्रादुर्भवितुम् ? हन्त प्रभुः ।
प्रभुः भदन्त ! शक्रः देवेन्द्रः देवराजः ईशानं देवेन्द्रं देवराजं सपक्षं सप्रतिदिशं समभिलोकितुम्?
हन्त प्रभुः।
सः भदन्त ! किम् आद्रियमाणः प्रभुः ? अनायिनागः प्रभुः?
गौतम! आद्रियमाणः प्रभुः, नो अनाद्रियमाणः प्रभुः ।
श.३ उ. १ सू. ५४-६२
:
For Private & Personal Use Only
५५. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है? . गौतम ! जैसे हथेली का एक भाग ऊंचा और उन्नत होता है, एक भाग नीचा और निम्न होता है गोतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है— देवेन्द्र देवराज शक्र के विमान यावत् कुछ निम्न हैं।
५६ भन्ते क्या देवेन्द्र देवराज शक देवेन्द्र देवराज ईशान के पास प्रकट होने में समर्थ है ? हां, यह समर्थ है।
५७. भन्ते ! क्या वह आदर करता हुआ समर्थ है ? अनादर करता हुआ समर्थ है ?
गौतम वह आदर करता हुआ समर्थ है, अनादर करता हुआ समर्थ नहीं है।
५८. भन्ते ! क्या देवेन्द्र देवराज ईशान देवेन्द्र देवराज शक्र के पास प्रकट होने में समर्थ है ? हां, वह समर्थ है।
५६. भन्ते ! क्या वह आदर करता हुआ समर्थ है? अनादर करता हुआ समर्थ है?
गौतम! वह आदर करता हुआ भी समर्थ है, अनादर करता हुआ भी समर्थ है।
प्रभुः भदन्त ईशान देवेन्द्रः देवराजः शक्रं देवेन्द्रं देवराजं सपक्षं सप्रतिदिशं समभि
लोकितुम्?
१. भ. वृ. ३ / २५ - 'उच्चतरा चेव त्ति उच्चत्वं प्रमाणतः 'उन्नततरा चेव' त्ति उन्नतत्वं गुणतः अथवा उच्चत्वं प्रासादापेक्षम्, उन्नतत्वं तु प्रासादपीठापेक्षमिति ।
६० भन्ते ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र देवेन्द्र देवराज ईशान को ठीक सीध में स्थित हो देखने में समर्थ है ?
हां, वह समर्थ है।
६१. भन्ते ! क्या वह आदर करता हुआ समर्थ है? अनादर करता हुआ समर्थ है?
गौतम! वह आदर करता हुआ समर्थ है, करता हुआ समर्थ नहीं है।
अनादर
६२. भन्ते ! क्या देवेन्द्र देवराज ईशान देवेन्द्र देवराज शक्र के ठीक सीध में स्थित हो देखने में समर्थ है ?
www.jainelibrary.org