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________________ भगवई स्कन्दक और तामलि के प्रायोपगमन अनशन स्वीकार करने की प्रक्रिया में जो अन्तर है, वह इस प्रकार है स्कन्दक तामलि पृथ्वी शिलापट्ट पर डाभ का बिछौना निवर्तनिक मंडल का आलेखन पकासन में निषण्ण X दो नमोस्तु का प्रयोग X महाव्रतों का आरोपण X निर्वतन क्षेत्र का परिमाण है वृत्तिकार ने उसकी स्पष्ट परिभाषा नहीं दी है। उन्होंने एक मतान्तर का भी उल्लेख किया है उसके अनुसार अपने शरीर प्रमाण भूमि को नियर्तन कहा जाता है। आप्टे कोश के अनुसार २० दण्ड अथवा ८० हाथ का एक निवर्तन होता है। कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार चार अरनि (बद्रमुष्टि हाथ) का एक दण्ड, १० दण्ड की एक रज्जु और तीन रज्जु का एक निवर्तन।' लीलावती के अनुसार दस हाथ का एक बांस और २० बांस का एक निवर्तन होता है।" इस प्रकार भिन्न-भिन्न प्रदेशों में निवर्तन का माप भिन्न-भिन्न प्रकार का रहा है। तामलि तापस ने अपने अनशन के लिए एक निवर्तनिक मंडल ( १० हाथ से अधिक भूमि ) की सीमा निर्धारित ३७. तेण कालेन तेण समरणं बलिचंचा रायहाणी अनिंदा अपुरोहिया या वि होत्था ॥ १. इन्द्र और पुरोहित से रिक्त थी प्रस्तुत सूत्र में अनिन्द्र और अपुरोहित दो पदों का उल्लेख है। देवों के इस निकाय बतलाए गए हैं- इन्द्र, सामानिक, त्रयस्त्रिंश, पारिषय, आत्मरक्ष लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक। इनमें पुरोहित का उल्लेख नहीं है। तत्त्वार्थ भाष्यकार ने तावत्रिंशक या त्रायस्त्रिशक को पुरोहित स्थानीय बतलाया है।" वृत्तिकार ने पुरोहित का अर्थ 'शान्तिकर्मकारी' किया है। उनका अभिमत है कि पुरोहित इन्द्र के होता है। इन्द्र के अभाव में पुरोहित नहीं होता। इसलिए अनिन्द्र और अपुरोहित दोनों पदों का उल्लेख किया गया 原 प्रस्तुत प्रसंग में वृत्तिकार का तर्क विमर्शनीय है। यदि इन्द्र के अभाव में पुराहित न हो तो सामानिक आदि कैसे होंगे? अग्रमहिषियां कैसे होगी? यहां पुरोहित इन्द्र का ही एक विशेषण होना चाहिए। वे असुरकुमार देव १. भ. वृ. ३/३६ निवर्त्तनं - क्षेत्रमानविशेषस्तत्परिमाणं निवर्त्तनिकं, निजतनुप्रमाणमित्यन्ये । २. आप्टे निवर्तन - A measure of land (20 rods) Jain Education International २५ दण्ड - A measure of length equal to 4 Hastas ३. कौटिलीय अर्थशास्त्र पृ. ११५, अष्टत्रिंश प्रकरण, बीसवां अध्याय - चतुररनिर्दण्डी.... दश दण्डा रज्जुः । त्रिरज्जुकं निवर्तनम् । ४. लीलावती, परिभाषाप्रकरणम्, श्लोक ७--- तथा कराणां दशकेन वंशः, निवर्तनं विंशतिवंशसंख्यैः ॥ की थी। तस्मिन् काले तस्मिन् समये बलिचञ्चा राजधानी अनिन्द्रा अपुरोहिता चापि आसीत् । ७. निवण्ण वृत्तिकार ने निवरण का संस्कृत रूप 'निष्पन्न' किया है।" किन्तु 'निष्पन्न' का प्राकृत रूप 'निप्पण्ण' या 'निप्फण्ण' होना चाहिए। 'निवण्ण' का संस्कृत रूप 'निपन्न' हो सकता है। इसका अर्थ 'सोया हुआ है। स्कन्दक ने पर्यकासन की मुद्रा में बैठकर अनशन स्वीकार किया था हो सकता है तामलि ने लेटकर अनशन किया हो कायोत्सर्ग तीन मुद्राओं में किया जाता है-बड़े होकर, बैठकर और लेटकर । खड़े होकर अनशन करना संभव नहीं, बैठकर और लेटकर – इन दोनों मुद्राओं में किया जा सकता है। तपस्वियों में कायोत्सर्ग की शयन मुद्रा में अनशन करने की परम्परा रही है। कुण्डिका आदि शब्दों के लिए भ० २ / ३१ का भाष्य द्रष्टव्य है। शब्द-विमर्श भाष्य इन्द्र की अनुपस्थिति को प्रवत वेग के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। वे कह रहे हैं“हमारे यहां कोई इन्द्र नहीं है - अधिपतित्व करने वाला कोई नहीं है, पुरोहित नहीं है — अग्रस्थान पर स्थापित कोई नहीं है । ” इसलिए इन्द्र और पुरोहित ये दो नहीं है। इन्द्र के प्रसंग में पुरोहित की चर्चा करना प्रासंगिक भी नहीं है। ३८वें सूत्र के "इंदाहीणा, इंदाहिडिया, इंदाहीणकन्जा" ये तीन शब्द इसी तथ्य का समर्थन कर रहे हैं। श.३ उ. १ सू. ३५-३७ दिट्ठागड - दिट्ठ- जिनका साक्षात्कार हुआ है। आभट्ट - जिनके साथ वार्त्तालाप हुआ है 'आभट्ट' देशी शब्द है। ३७. उस काल और उस समय बलिचञ्चा राजधानी इन्द्र और पुरोहित से रिक्त थी।' वृत्तिकार ने पुरोहित का अर्थ 'शान्तिकर्मकारी' किया है। किंतु 'पुरोहित' शब्द के अनेक अर्थ होते हैं -- Placed in front (आगे स्थापित) (२) appointed नियुक्त) (२) charged (दायित्व दिया गया) (४) one charged with a business, an agent (दलाल) (५) A familypriest, one who conducts all the ceremonial rites of the family. (परिवार पर पुजारी, वह व्यक्ति जो परिवार के धार्मिक क्रियाकाण्डों का संचालन करता है।) For Private & Personal Use Only ५. भ. पृ. ३/३६ - निवण्णे' त्ति पादपोपगमनं 'निष्पन्नः' उपसंपन्न आश्रित इत्यर्थः । ६. त. सू. ४/४ इन्द्र सामानिकत्रायस्त्रिशपरिषद्यात्मरक्षलो कपालानीक प्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकशः । ७. त. भा. ४/४ - त्रायस्त्रिशा मन्त्रिपुरोहितस्थानीयाः । ८. भ. वृ. ३/३७ - 'अनिंद' त्ति इन्द्राभावात् 'अपुरोहिय' त्ति शान्तिकर्मकारिरहिता अनिन्द्रत्वादेव पुरोहितो हीन्द्रस्य भवति तदभावे तु नासाविति । ६. आप्टे - पुरोहित शब्द। www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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