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________________ भगवई ४२१ भाष्य-विषयानुक्रम उस्सण्ण ७/१८१ ऊर्ध्व मृदंग के आकार वाला ५/२५४-२५७ ऋ ऋद्धि ३/२२२-२३० एक पदार्थ से हजारों पदार्थ निर्माण करने की क्षमता ५/११२,११३ एक पुद्गल पर दृष्टि टिका, नेत्रों को अनिमेष बना (एगपोग्गलनिविट्ठदिट्ठी अणिमिसणयणे) ३/१०५ एकत: पताक ३/१६४-१७१ एक युवती का................गाड़ी की नाभि (जुवती जुवाणे चक्कस्स वा नाभी) ३/४ एक समय में एक ही क्रिया ७/६७ एकहस्तिका ७/१७७ एकान्त दण्ड ७/२७-२८ एकान्त पण्डित ७/२७-२८ एकान्त बाल ७/२७-२८ एगन्तसो खयं (केवल क्षय)३/३३ एजन ३/१४३-१४८ एमहिड्ढिए ३/४ एवंभूत अनेवंभूत वेदना का वेदन ५/११६-१२१ एषित ७/२५ कर्म का बन्ध किसके होता है ६/३५-५१ कर्म का सादि-अनादित्व ६/२७-२६ कर्म के करण ६/१५२-१५४ कर्म-प्रकृति-बन्ध ६/१६२ कर्म-प्रकृति-बन्ध-विवेचन ६/३३,३४ कर्म-बन्ध के हेतु और निमित्त ६/२०-२३ कल (धान्य) ६/१२६-१३१ कलई पर चमड़े की पट्टी बांधी ७/१७६ कवेल्लक ३/४८,७/११८ कानन ५/१८२-१६० कान्तार-भक्त ५/१३६-१४६ काल की अपेक्षा सप्रदेश-अप्रदेश ६/५४-६३ काल के प्रभाव से ७/११७ काल-चक्र ६/१३३,१३४ कालोदायी की जिज्ञासा ७/२१८-२२० काहला (खरमुही) ५/६४ कितनी महान ऋद्धिवाला (केमहिड्डिए) ३/४ कुटुम्बजागरिका ३/३३ कुणिमाहार ७/१२१ कुमारग्रह ३/२५८ कुलत्थ ६/१२६-१३१ कुशल आचार्य ७/१७५ कुस ६/१३५ 'कुस-विकुस'-विसुद्ध ६/१३५ कुसुंभग ६/१२६-१३१ कूट ५/१८२-१६० कूटागारशाला (कूडागारसाला)३/२६७/१५८,१५६ कृष्ण कन्द ७/६६ केलूट ७/६६ केवल क्षय ३/३३ केवलि-उपासक ५/६४-६६ केवलि-श्रावक ५/६४-६६ केवली ७/१४६-१४६ केवली के मन का अस्तित्व ५/१००-१०२ कोट्ट क्रिया ३/३४ कोद्दव ६/१२६-१३१ कोसग ६/१२६-१३१ कोद्दाल ६/१३५ कोलस्थिग (कोलट्ठिग) ६/१७१-१७३ कोष्ठ (कोट्ठ) ६/१२६-१३१ क्रिया ३/१३४-१३६ - की सघनता और विरलता का निरूपण ५/१२८-१३२ - और वेदना ३/१४०-१४२ क्रीतकृत ५/१३६-१४६ क्षार जल वाले मेघ ७/११७ ऐर्यापथिकी, साम्परायिकी क्रिया किस के हो ७/२०,२१,१२५,१२६ एरण्ड फल ७/१०-१५ औ औपमिक काल ६/१३३,१३४ औषधि ७/११७ कंगु ६/१२६-१३१ कक्खागयसेयं पिव ३/११४ कक्षा-कोथ ३/२५८ कच्छुकसराभिभूय ७/११६ कठिन मल (मइल्लिय) ६/२०-२३ कडुच्छ्य ५/१८२-१६० कण्णायत ५/१३४,१३५ कन्दर्प ३/२५७ कन्दराग्रह ३/२६८ कपिहसित ३/२५३ करण ६/५-१४ कर्कश ५/१३८ - अकर्कश वेदनीय कर्म ७/१०७-११२ कर्दम राग से रंगा हुआ ६१-४ कर्म आत्म कृत ६/२४-२६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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