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________________ भगवई ४०१ श.७: उ.१०:सू.२२३-२२७ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-अस्थि वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमणं भंते ! जीवाणं पावा कम्मा पावफल- वादीद्-अस्ति भदन्त! जीवानां पापानि विवागसंजुत्ता कज्जति? कर्माणि पापफलविपाकसंयुक्तानि क्रियन्ते? हंता अत्थि ॥ हन्त अस्ति। कर इस प्रकार बोला-भन्ते ! क्या जीवों के पापकर्म पापफलविपाकसंयुक्त होते हैं ? हां, होते हैं। २२४. कहण्णं भंते ! जीवाणं पावा कम्मा पाव- कथं भदन्त! जीवानां पापानि कर्माणि पाप- २२४. भन्ते ! जीवों के पापकर्म पापफलविपाकसंयुक्त फलविवागसंजुत्ता कज्जति? फलविपाकसंयुक्तानि क्रियन्ते? कैसे होते हैं ? कालोदाई ! से जहानामए केइ पुरिसे मणुण्णं कालोदायिन् ! तद् यथानाम कोऽपि पुरुषः कालोदायी ! जैसे कोई पुरुष मनोज्ञ स्थालीपाकथालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाकुलं विससंमिस्सं मनोज्ञं स्थालीपाकशुद्धम् अष्टादशव्यंजनाकुलं शुद्ध (हंडिया में पका हुआ) अठारह प्रकार के व्यञ्जनों भोयणं मुंजेज्जा, तस्स णं भोयणस्स आवाए विषसम्मिश्रं भोजनं भुञ्जीत, तस्य भोजनस्य से युक्त विषमिश्रित भोजन करता है, उस भोजन का भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे- आपातः भद्रकः भवति, ततः पश्चात् परिण- आपात भद्र होता है-खाते समय वह सरस लगता है, परिणममाणे दुरूवत्ताए, दुवण्णत्ताए, दुगंधत्ताए मत्-परिणमत् 'दूरुवत्ताए' दुर्वर्णतया, दुर्गन्ध- उसके पश्चात् जैसे-जैसे उसका परिणमन होता है, जाव दुक्खत्ताए-नो सुहत्ताए भुज्जो-भुज्जो तया यावद्दुःखतया-नो सुखतया भूयो-भूयः वैसे-वैसे वह दुरूप, दुर्वर्ण, दुर्गन्ध यावत् दुःखरूप परिणमति । एवामेव कालोदाई ! जीवाणं परिणमति। एवमेव कालोदायिन् ! जीवानां में-न सुखरूप में बार-बार परिणत होता है। कालोपाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, तस्स णं प्राणातिपातः यावन् मिथ्यादर्शनशल्यं, तस्य दायी इसी प्रकार जीवों के अठारह पाप होते हैंआवाए भद्दए भवइ, तओ पच्छा विपरिण- आपातः भद्रकः भवति, ततः पश्चाद् विपरिण- प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य। उस पापवर्ग का ममाणे-विपरिणममाणे दुरूवत्ताएदुवण्णत्ताए मन्-विपरिणमन् 'दुरूवत्ताए' दुर्वर्णतया दुर्ग- आपातभद्र होता है-करते समय वह अच्छा लगता दुगंधत्ताए जाव दुक्खत्ताए-नो सुहत्ताए न्धतया यावत् दुःखतया–नो सुखतया भूयो- है, उसके पश्चात् जैसे-जैसे उसका विपरिणमन होता भुज्जो-भुज्जो परिणमति । एवं खलु कालो- ___ भूयः परिणमति । एवं खलु कालोदायिन् ! है, वैसे-वैसे वह दुरूप, दुर्वर्ण, दुर्गन्ध यावत् दुःखरूप दाई! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवाग- जीवानां पापानि कर्माणि पापफलविपाक- में न सुखरूप में बार-बार परिणत होता है । कालोसंजुत्ता कज्जति। सुंयुक्तानि क्रियन्ते। दायी ! इसी प्रकार जीवों के पापकर्म पापफलविपाक संयुक्त होते हैं। २२५. अत्थि णं भंते! जीवाणं कल्लाणा कम्मा अस्ति भदन्त ! जीवानां कल्याणानि कर्माणि २२५. भन्ते ! क्या जीवों के कल्याणकर्म कल्याणफलकल्लाणफलविवागसंजुत्ता कज्जंति? कल्याणफलविपाकानि क्रियन्ते? विपाक संयुक्त होते हैं ? हंता अस्थि ।। हन्त अस्ति। हां, होते हैं। २२६. कहण्णं भंते ! जीवाणं कल्लाणा कम्मा कथं भदन्त ! जीवानां कल्याणानि कर्माणि २२६. भन्ते! जीवों के कल्याण कर्म कल्याणफलविपाक कल्लाणफलविवागसंजुता कज्जति? कल्याणफलविपाकसंयुक्तानि क्रियन्ते? संयुक्त कैसे होते हैं ? कालोदाई ! से जहानामए केइ पुरिसे मणुण्णं कालोदायिन् ! तद् यथानाम कोऽपि पुरुषः कालोदायी! जैसे कोई मनुष्य मनोज्ञ स्थालीपाक शुद्ध थालीपागसुद्धं अट्टारसवंजणाकुलं ओसहमिस्सं मनोज्ञं स्थालीपाकशुद्धं अष्टादशव्यञ्जनाकुलं अठारह प्रकार के व्यञ्जनों से युक्त औषधमिश्रित भोयणं भुजेज्जा, तस्स णं भोयणस्स आवाए औषधमिश्रं भोजनं भुञ्जीत, तस्य भोजनस्य भोजन करता है, उस भोजन का आपात भद्र नहीं नो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे- आपातः नो भद्रकः भवति, ततः पश्चात् होता-खाते समय वह नीरस लगता है, उसके पश्चात् परिणममाणे सुरूवत्ताए सुवण्णत्ताए जाव परिणमत्-परिणमत् सुरूपतया सुवर्णतया जैसे-जैसे उसका परिणमन होता है, वैसे-वैसे वह सुहत्ताए-नो दुक्खत्ताए भुज्जो-भुज्जो यावत् सुखतया-नो दुःखतया भूयो-भूयः सुरूप, सुवर्ण यावत् सुखरूप में-न दुःखरूप में परिणमति । एवमेव कोलादाई! जीवाणं परिणमति एवमेव कालोदायिन् ! जीवानां बार-बार परिणत होता है। कालोदायी ! इसी प्रकार पाणाइवायवे रमणे जाव परिग्गहवेरमणे प्राणातिपातविरमणं यावत् परिग्रहविरमणं जीवों के प्रातणातिपापविरमण यावत् परिग्रहविरमणकोहविवेगे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे, तस्स क्रोधविवेकः यावन् मिथ्यादर्शनशल्यविवेकः, क्रोध- विवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक होते हैं। णं आवाए नो भद्दए भवइ, तओ पच्छा तस्य आपातः नो भद्रकः भवति, ततः पश्चात् उस विरमण और विवेक का आपात भद्र नहीं होतापरिणममाणेपरिणममाणे सुरूवत्ताए सुवण्ण- परिणमन्-परिणमन् सुरूपतया सुवर्णतया प्रारम्भ में वह नीरस लगता है, उसके पश्चात् जैसे-जैसे ताए जाव सुहत्ताए-नो दुक्खत्ताए भुज्जो- यावत् सुखतया-नो दुःखतया परिणमति। उसका परिणमन होता है वैसे-वैसे वह सुरूप, सुवर्ण भुज्जो परिणमइ। एवं खलु कालोदाई ! जीवाणं एवं खलु कालोदायिन् ! जीवानां कल्याणानि यावत् सुखरूप में न दुःखरूप में बार-बार परिणत कल्लाणा कम्मा कल्लाणफलविवागसंजुत्ता कर्माणि कल्याणफलविपाकसंयुक्तानि क्रि- होता है। कालोदायी ! इसी प्रकार जीवों के कल्याणकर्म कज्जति॥ यन्ते? कल्याणफलविपाकसंयुक्त होते हैं। २२७. दो भंते! पुरिसा सरिसया सरित्तया द्वौ भदन्त! पुरुषौ सदृशकौ सदृक्त्वचौ स- २२७. भन्ते! दो पुरुष जो एक जैसे समान त्वचा वाले, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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