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________________ श.७: उ.६:सू.२०६-२११ ३६६ भगवई मासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु कृत्वा अन्यतरेषु देवलोकेषु देवत्वेन उपपत्तारो देवत्ताए उववत्तारो भवंति ॥ भवन्ति। प्राप्त कर किसी भी देवलोक में देव के रूप में उपपन्न हुए हैं। २०७. वरुणे णं भंते ! नागनत्तुए कालमासे कालं वरुणः भदन्त ! नागनप्तृकः कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? कृत्वा कुत्र गतः ? कुत्र उपपन्नः ? गोयमा ! सोहम्मे कप्पे, अरुणाभे विमाणे गौतम ! सौधर्मे कल्पे, अरुणाभे विमाने देव- देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगतियाणं त्वेन उपपन्नः। तत्र अस्त्येककेषां देवानां देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता। चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। तत्र तत्थ णं वरुणस्स वि देवस्स चत्तारि पलि- वरुणस्य अपि देवस्य चत्वारि पल्योपमानि ओवमाइं ठिती पण्णत्ता॥ स्थितिः प्रज्ञप्ता। २०७. भन्ते ! नागनतृक वरुण कालमास में काल को प्राप्त कर कहां गया है ? कहां उपपन्न हुआ है ? गौतम ! वह सौधर्म कल्प में अरुणाभ विमान में देवरूप में उपपन्न हुआ है। वहां कुछ देवों की स्थिति चार पल्योपम की प्रज्ञप्त है। वहां नागनाप्तृक वरुण देव की स्थिति भी चार पल्योपम की प्रज्ञप्त है। २०८. भन्ते ! वह वरुण देव आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा? २०८. से णं भंते ! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ स भदन्त ! वरुणः देव तस्माद् देवलोकात् आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अणंतरं आयुःक्षयेण, भवक्षयेण, स्थितिक्षयेण अनन्तरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहिं उव- च्यवं च्युत्वा कुत्र गमिष्यति? कुत्र उपपत्स्यते? वज्जिहिति? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झि- गौतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति बुज्झिहिति' हिति मुच्चिहिति परिणिवाहिति सब्बदुक्खाणं मोक्ष्यति परिनिर्वास्यति सर्वदुक्खानाम् अन्तं अंतं करेहिति ॥ करिष्यति। गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होगा, सब दुःखों का अन्त करेगा। २०६. वरुणस्स णं भंते! नागनत्तुयस्स पियबाल- वरुणस्य भदन्त ! नागनप्तृकस्य प्रियबाल- २०६. भन्ते ! नागनप्तृक वरुण का प्रिय बालसखा वयंसए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए ? वयस्य कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गतः? कुत्र कालमास में काल को प्राप्त कर कहां गया है ? कहां कहिं उववन्ने? उपपन्नः? उपपन्न हुआ है ? गोयमा ! सुकुले पच्चायाते ॥ गौतम ! सुकुले प्रत्यायातः। गौतम ! वह अच्छे मनुष्यकुल में उत्पन्न हुआ है। पत्स्य ते? २१०. से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता स भदन्त ! तस्माद् अनन्तरं उद्वर्त्य कुत्र २१०, भन्ते ! वह उस जन्म के अनन्तर उद्वर्तन कर कहां कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गमिष्यति? कुत्र उपपत्स्यते? जाएगा? कहां उपपन्न होगा? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं गोतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति यावद् अन्तं गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों काहिति ॥ करिष्यति। का अन्त करेगा। २११. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॥ तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति। २११. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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