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भगवई
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श.७:उ.६:सू.१८८-१९१
भाष्य १. सूत्र १८८
संचालित था जो शत्रु सेना का क्षय, वध और प्रमर्दन करता था। प्रस्तुत सूत्र में स्वतःचालित रथ और स्वतःचालित शस्त्र का उल्लेख
इसकी तुलना आधुनिक स्वचालित शस्त्रास्त्रों से की जा सकती है। है। ये दोनों असुरेन्द्र चमर के द्वारा निर्मित थे। रथ स्वतःचालित था। इसके प्रतिपादक तीन पद हैं—वह अश्वरहित (अणासए), सारथिरहित (असारहिए) .
शब्द-विमर्श और आरोहक---योद्धारहित (अणारोहए) था। इसी प्रकार ‘मुसल' भी स्वतः संवर्त (संवट्ट)-प्रलय।
१८६. रहमुसले णं भंते ! संगामे वट्टमाणे कति रथमुसले भदन्त ! संग्रामे वर्तमाने कति १८६. भन्ते ! रथमुसलसंग्राम में कितने लाख मनुष्य मारे जणसयसाहस्सीओ वहियाओ?
जनशतसाहस्रयः हताः? गोयमा! छण्णउतिं जणसयसाहस्सीओ गौतम ! षण्णवतिः जनशतसाहस्यः हताः। गौतम ! छियानवें लाख मनुष्य मारे गए। वहियाओ॥
१६०. ते णं भंते! मणुया निस्सीला निग्गुणा ते भदन्त ! मनुजाः निश्शीलाः निर्गुणाः नि- १६०. भन्ते ! उस संग्राम में मारे जाने वाले मनुष्य शील, निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा रुट्ठा मर्यादाः निष्प्रत्याख्यानपोषधोपवासाः रुष्टाः गुण, मर्यादा, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास से रहित, परिकुविया समरवहिया अणुवसंता कालमासे परिकुपिताः समरहताः अनुपशान्ताःकालमासे रुष्ट और परिकुपित थे। उनका क्रोध उपशान्त नहीं कालं किच्चा कहिं गया ? कहिं उववन्ना? कालं कृत्वा कुत्र गताः ? कुत्र उपपन्नाः ? था। वे मृत्यु के समय में मरकर कहां गए? कहां
उपपन्न हुए? गोयमा! तत्थ णं दससाहस्सीओ एगाए गौतम ! तत्र दशसाहस्यः एकस्याः मत्स्याः गौतम ! उनमें से दस हजार मनुष्य एक मछली की मच्छियाए कुच्छिसि उववन्नाओ। एगे देव- कुक्षौ उपपन्नाः। एकः देवलोकेषूपपन्नः । एकः कुक्षि में उपपन्न हुए। एक देवलोक में उपपन्न हुआ। लोगेसु उववन्ने। एगे सुकुले पच्चायाए। सुकुले प्रत्यायातः । अवशेषाः उस्सणं' एक अच्छे मनुष्य कुल में उत्पन्न हो गया । शेष सब' अवसेसा उस्सण्णं नरग-तिरिक्खजोणिएसु नरक तिर्यग्योनिकेषु उपपन्नाः।
नरक और तिर्यक्-योनि में उपपन्न हुए। उववन्ना ॥
भाष्य १. शेष सब
'शेष सब' किया गया है। द्रष्टव्य भ. ७/१८१ का भाष्य । उस्सण्णं का अर्थ 'प्रायः' है। यहां 'अवसेसा उस्सण्णं' का अर्थ
१६१. कम्हा णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया, कस्माद् भदन्त ! शक्रः देवेन्द्रः देवराजः १६१. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र और असुरेन्द्र असुर
चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स चमरश्च असुरेन्द्रः असुरकुमारराजः कूणिकाय कुमारराज चमर ने राजा कूणिक को साहाय्य किस रण्णो साहेज्जं दलइत्था ? राज्ञे साहाय्यं अदात्?
कारण से दिया? गोयमा ! सक्के देविंदे देवराया पुव्वसंगतिए, गौतम ! शक्रः देवेन्द्रः देवराजः पूर्वसांगतिकः, गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र राजा कूणिक का पूर्व चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया परियाय- चमरः असुरेन्द्रः असुरकुमारराजः पर्याय- जन्म का मित्र था', असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर संगतिए । एवं खलु गोयमा ! सक्के देविंदे सांगतिकः । एवं खलु गौतम ! शक्रः देवेन्द्रः उसका दीक्षा-पर्याय का साथी था। गौतम ! इस प्रकार देवराया, चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया देवराजः, चमरः च असुरेन्द्रः असुरकुमारराजः देवेन्द्र देवराज शक और असुरेन्द्र असुरकुमारराज कूणियस्स रण्णो साहेज्जं दलइत्था ॥ कूणिकाय राज्ञे साहाय्यं अदात् ।
चमर ने राजा कूणिक को साहाय्य दिया ।
भाष्य १. पूर्वजन्म का मित्र (पुव्वसंगतिए)
२. दीक्षा पर्याय का साथी (परियायसंगतिए) कार्तिक सेठ की अवस्था में कूणिक का जीव शक्र का मित्र था, पूरण तापस के जीवन-काल में कूणिक का जीव तापस-पर्याय में था इसलिए शक्र को कूणिक का पूर्वसांगतिक बतलाया गया है।'
और वह पूरण तापस का मित्र था, इसलिए उसे पर्यायसांगतिक कहा गया है। द्रष्टव्य भ. १८/४०-५३।
द्रष्टव्य भ. ३/१०१-१०७।
१. भ. वृ.७/१६१-कार्तिकश्रेष्ठ्यवस्थायां कूणिकजीवो मित्रमभवत्।
२.वही, ७/१६१-पूरणतापसावस्थायां चरमस्यासी तापसपर्यायवर्ती मित्रमासीदिति।
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