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________________ श. ७: उ. ६ : सू. १७७-१८२ १. आच्छादन 'उपस्तृत' का अर्थ है आच्छादित । २. वज्रतुल्य हैतुल्या १७८. तए णं से कूणिए राया महाशिलाकंटगं संगाम संगामेमाणे नव मल्लई, नव लेच्छईकासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो हय-महिय पवरवीर घाइय-विवडिवविधद्धयपडाने किच्छपाणगए दिसोदिसिं पडिसेहित्या || वइरपडिरूवग में वइर का अर्थ है - वज्र, पडिरूवग का अर्थ गोयमा ! महासिलाकंटए णं संगामे वट्टमाणे जे तत्थ आसे वा हत्थी वा जोहे वा सारही वा तणेण वा कट्टेण वा पत्तेन वा सक्कराए वा अभिहम्मति, सब्बे से जाणेड़ महासिलाए अहं अभिहए। से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वच्चइमहासिलाकंटए संगामे ॥ १८०. महासिलाकंटए णं भंते ! संगामे वट्टमाणे कति जणसयसाहस्सीओ वहियाओ ? गोयमा! चउरासीइं जणसयसाहस्सीओ वहियाओ || १८१. ते णं भंते ! मणुया निस्सीला निग्गुणा निम्मेरा निव्वाणपोसोक्वासा रुद्रा परिकुविया समरवहिया अणुवसंता कालमासे कालं किच्चा कहिं गया ? कहिं उदवण्णा ? १७६. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ - महासिला- तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - महाशिला - कंटए संगामे ? कण्टकः संग्रामः ? गौतम! महाशिलाकण्टके संग्रामे वर्तमाने यो यत्र अश्वो वा हस्ती वा योधो वा सारथी वा तृणेन वा काष्ठेन वा पत्रेण वा शर्करा वा अभिहन्यते सर्वः स जानाति महाशिलया अहम् अभिहतः । तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते -महाशिलाकण्टकः संग्रामः । गोयमा! उसणं नरम-तिरिक्धजोगिएसु उबवण्णा ॥ शब्द-विमर्श ३८८ भाष्य रहमुसलसंगाम-पदं १८२. नायमेयं अरहवा, सुवमेवं अरया, विष्णा १. भ. वृ. ७/१७७ - एगहत्थिणा वित्ति - एकेनापि गजेन । Jain Education International ३. एकहस्तिका वृत्तिकार ने हस्ति का अर्थ हाथी किया है किंतु महाशिलाकण्टक संग्राम के प्रकरण में यह विमर्शनीय है। महाशिलाकण्टक संग्राम में फेंका हुआ एक बालू का कण भी शिला जैसी चोट करता है। इसलिए यहां हस्ति का अर्थ 'हस्तिका' नामक उपकरण है, जिसके द्वारा कंकड़ आदि फेंके जाते हैं। * ततः सकृषिक राजा महाशिलाकण्टकं संग्राम संग्रामयन् नव 'मल्लाई' नव 'तेच्छई'काशी- कौशलकान् अष्टादश अपि गणराजान् हत मधित घातितप्रवरवीर- विपतित-चिह्न ध्वजपताकान् कृच्छ्रप्राणगतान् दिशोदिशं प्रत्यसीषिधत् । महाशिलाकण्टके भदन्त ! संग्रामे वर्तमाने कति जनशतसाहस्त्र्यः हताः ? गौतम ! चतुरशीतिः जनशतसाहस्र्यः हताः । ते भदन्त ! मनुजाः निश्शीला निर्गुणाः निमर्यादा निष्पत्याख्यानपोषधीः रुष्टाः परिकुपिताः समरहताः अनुपशान्ताः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गताः ? कुत्र उपपन्नाः ? गौतम ! 'उस्सणं' नरक- तिर्यग्योनिकेषु उपपन्नाः । उस्सण्ण - प्रायः | यह देशी शब्द है । भ. ७/१६० का भाष्य भी द्रष्टव्य है। भाष्य रथमुसलसंग्राम-पदम् ज्ञातमेतत् अर्हता, श्रुतमेतद् अर्हता, वि भगवई For Private & Personal Use Only १७८. राजा कृणिक ने महाशिलाकंटक संग्राम लड़ते हुए नौ मल्ल और नौ लिच्छवी - काशी- कौशल के अट्ठारह गणराजों को हत-प्रहत कर दिया, मथ डाला, प्रवर योद्धाओं को मार डाला, चिह्न-ध्वजापताका को गिरा दिया, उनके प्राण संकट में पड़ गए, उन्हें पीछे की ओर ढकेल दिया। १७६. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कि वह महाशिलाकण्टक संग्राम है ? गीतम महाशिलाकंटक संग्राम चल रहा था। यहां विद्यमान अश्व, हाथी, योद्धा अथवा सारथी पर तृण, काष्ठ, पत्र अथवा शर्करा (कंकर) का प्रहार किया तब वे सब अनुभव करते कि उन पर महाशिला से प्रहार किया जा रहा है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है महाशिलाकंटक संग्राम है। १८० भन्ते महाशिलाकण्टक संग्राम में कितने लाख मनुष्य मारे गए ? गौतम ! चौरासी लाख मनुष्य मारे गए। १८१ भन्ते । उस संग्राम में मारे जाने वाले मनुष्य शील, गुण, मर्यादा, प्रत्याख्यान और पौषघोपवास से रहित, रुष्ट और परिकुपित थे। उनका क्रोध उपशान्त नहीं था। वे मृत्यु के समय में मर कर कहां गए? कहाँ उत्पन्न हुए? गौतम ! वे प्रायः नरक और तिर्यक् योनि में उपपन्न हुए। २. आप्टे हस्तिका - A kind of stringed instrument रथमुसलसंग्राम-पद १८२. यह अर्हत् के द्वारा ज्ञात हैं, यह अर्हत् के द्वारा www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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