SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अट्ठमो उद्देसो : आठवां उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद मोक्ख-पदं मोक्ष-पदम् मोक्ष-पद १५६. छउमत्थे णं भंते ! मणूसे तीयमणंतं सासयं छद्मस्थाः भदन्त ! मनुष्याः अतीतम् अनन्तं १५६. 'भन्ते ! क्या छद्मस्थ मनुष्य निरन्तर गतिशील अनन्त समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, शाश्वतं समयं केवलेन संयमेन, केवलेन अतीत समय में केवल संयम, केवल संवर, केवल केवलेणं बंभचेरवासेणं, केवलाहिं पवयण- संवरेण, केवलेन ब्रह्मचर्यवासेन, केवलाभिः ब्रह्मचर्यवास, केवल प्रवचनमाता की आराधना के द्वारा मायाहिं सिन्झिसु? बुझिसु? मुच्चिसु? परि- प्रवचनमातृभिः असैत्सुः? "बुझिसु'? अ- सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत हुए? सब दुःखों णिब्वाइंसु? सव्वदुक्खाणं अंतं करिंसु? मुक्षत? परिनिरवासिषु? सर्वदुक्खानाम् का अन्त किया? अन्तम् अकार्षुः? गोयमा! नो इणढे समढे जाव गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः यावत्- गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। १५७. से नूणं भंते! उप्पण्णणाण-दंसणधरे अरहा तन् नूनं भदन्त ! उत्पन्नज्ञान-दर्शनधरः १५७. भन्ते ! क्या उत्पन्न-ज्ञान-दर्शन के धारक अर्हत् जिणे केवली अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया? अर्हन् जिनः केवली अलमस्तु इति वक्तव्यं जिन और केवली को ‘अलमस्तु' ऐसा कहा जा सकता स्यात् ? हंता गोयमा ! उप्पण्णणाण-दसणधरे अरहा हन्त गौतम ! उत्पन्नज्ञान-दर्शनधरः अर्हन् हां, गौतम! उत्पन्न-ज्ञान-दर्शन के धारक, अर्हत, जिन जिणे केवली अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया ॥ जिनः केवली अलमस्तु इति वक्तव्यं स्यात्। और केवली को 'अलमस्तु' ऐसा कहा जा सकता है। भाष्य १. सूत्र १५६,१५७ द्रष्टव्य भ. १/२००-२१० का भाष्य। तुलना भ. १/२००-२१० तथा ५/११५ । हत्थि-कुंथु-जीव-समाणत्त-पदं हस्ति-कुन्थु-जीव-समानत्व-पदम् हस्ति और कुन्थु के जीव की समानता का पद १५८. से नूणं भंते ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे तन् नूनं भदन्त ! हस्तिनः च कुन्थोः च समः १५८. 'भन्ते ! हाथी का जीव और कुन्थु का जीव एक चेव जीवे ? चैव जीवः ? समान है? हंता गोयमा ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव हन्त गौतम! हस्तिनः च कुन्थोः च समः चैव हां, गौतम ! हाथी का जीव और कुंथु का जीव दोनों जीवे। जीवः। समान है। से नूणं भंते ! हत्थीओ कुंथू अप्पकम्मतराए तन् नूनं भदन्त ! हस्तिनः कुन्थुः अल्पकर्म- भन्ते क्या ! हाथी की अपेक्षा कुन्थु अल्पतर कर्म, चेव अप्पकिरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव तरकः चैव अल्पक्रियातरकः चैव अल्पास्रव- अल्पतर क्रिया, अल्पतर आश्रव, अल्पतर आहार, एवं अप्पाहारतराए चेव अप्पनीहारतराए चेव तरकः चैव एवम् अल्पाहारतरकः चैव अल्प- अल्पतर नीहार, अल्पतर उच्छ्वास, अल्पतरे निःश्वास, अप्पुस्सासतराए चेव अप्पनीसासतराए चेव नीहारतरकः चैव अल्पोच्छ्वासतरकः चैव अल्पतर ऋद्धि, अल्पतर महिमा और अल्पतर द्युति अप्पिढितराए चेव अप्पमहतराए चेव अप्प- अल्पनिःश्वासतरकः चैव अल्पर्धितरकः चैव वाला है? ज्जुइतराए चेव? अल्पमहस्तरकः चैव अल्पद्युतितरकः चैव? Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy