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________________ श.७ : उ.७ : सू.१५०-१५५ ३७८ भगवई समनस्क पञ्चेन्द्रिय के लिए 'प्रभु' शब्द का प्रयोग किया गया है। पर भी ज्ञान और क्रिया की असमर्थता में होने वाला। प्रभु अकाम-निकरण और प्रकाम-निकरण दोनों प्रकार की वेदनाओं का संवेदन प्रस्तुत प्रकरण में काम का अर्थ है 'ज्ञान'। ऐतरेय उपनिषद में करता है। अकाम-निकरण संवेदन ज्ञानशक्ति की विकलता के कारण करता है प्रज्ञान के सोलह पर्यायवाची नाम बतलाए गए हैं। उनमें एक है-काम।' काम ओर प्रकाम-निकरण संवेदन ज्ञानशक्ति एवं क्रियात्मक सामर्थ्य की विकलता का 'अभिलाषा' अर्थ प्रसिद्ध है, किंतु प्रस्तुत संदर्भ में वह संगत नहीं है। यहां के कारण होता है। 'ज्ञान' अर्थ संगत है। इस आधार पर अकाम-निकरण का अर्थ 'अज्ञानहेतुक' और प्रकाम-निकरण का अर्थ 'प्रज्ञानहेतुक' होता है। शब्द-विमर्श अभयदेवसूरि ने अकाम का अर्थ 'अनिच्छा' एवं प्रकाम का अर्थ अकाम निकरण-(१) अनाभोग-प्रत्यय अज्ञान अवस्था में होने ‘प्रकृष्ट इच्छा' किया है। वाला। मग्गओ-यह देशी शब्द है। इसका अर्थ है-पीठ पीछे । मराठी (२) ज्ञान की साधन-सामग्री के अभाव में होने वाला। में 'मागे' का अर्थ है--- पीछे । प्रकाम निकरण–प्रज्ञानहेतुक, मानसिक ज्ञान का विकास होने प्रभु-समनस्क होने के कारण जानने में समर्थ । १५५. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॥ तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति । १५५. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते वह ऐसा ही है। सेम के पोधे से जोड़ा। जब भी पौधे को पानी की जरूरत पड़ती, तब वह यन्त्र पर एक विशिष्ट पौधे विजली के संदेश उसी तरह प्रयोग करते हैं जैसे स्नायु-कोशिकाओं में पशु-पक्षी करते हैं। प्रक्रिया द्वारा संकेत देता। यह संकेत देखकर पोधे को एक विशेष विधि से पानी दिया जाता। देखा जानवरों में संदेश-तरंगे बहुत तेजी से मस्तिष्क और शरीर के बीच आती-जाती है, जबकि पौधों में गया कि पहले दो मिनटों तक पौधे ने पानी लिया; किंतु फिर उसने पानी के प्रति अनिच्छा व्यक्त संदेश बिल्कुल कछुआ चाल से चलते हैं। की । इसके धण्टे भर बाद पौधे ने पुनः पानी का संकेत दिया। ब्रिटिश वैज्ञानिकों की टीम अभी भी यह मालम करने की कोशिश कर रही है कि ऐसी कौन "अब तक तो यही सोचा जाता था कि पेड-पौधों में कोई संवेदन-तंत्र नहीं होता, क्योंकि सी कोशिकाएं है जो इन विद्युत-संदेशों को पैदा करती हैं और किस तरह से पोधे पर लगने वाली चोट जानवरों की तरह उनमें कोई स्नायु (नव) नहीं होते, लेकिन पूर्वी इंग्लैण्ड स्थित नार्विक रिसर्च पार्क से यह संदेश स्वतः पैदा हो जाते हैं।" में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक जब टमाटर के पत्ते को कीड़े काटते हैं, तो पत्ता तुरन्त विजली १ऐतरेय उपनिषद, ३/२ संज्ञानं आज्ञानं विज्ञानं प्रज्ञानं मेधा दृष्टिः धृतिः मतिः मनीषा जुतिः के चेतावनी संदेश पूरे पौधे में भेज देता है। वाकी के साबुत पत्तों को यह संदेश प्राप्त होते ही वे ऐसे स्मृतिः संकल्पः ऋतुः असुः कामः वशः सर्वाण्येवैतानि प्रज्ञानस्य नामधेयानि भवंति।। सुरक्षात्मक रसायन बनाना शुरू कर देते हैं, जिन्हें पचाना मुश्किल हो जाता है। २. भ. वृ.७/१५१,१५३-अकामेन-अनिच्छया निकरणं क्रियाया इष्टार्थप्राप्तिलक्षणाया अभावो यह अध्ययन ईस्ट एग्लिया विश्वविद्यालय और जान इन्स सेंटर के वैज्ञानिकों ने न्यूजीलैंड यत्र वेदने तत्तथा। के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किया है। प्रकामः-ईप्सितार्थाप्राप्तितः प्रवर्द्धमानतया प्रकृष्टोऽभिलाषः। स एव निकरणं कारणं जान इन्स सेंटर में कोशिका विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो० कीथ राबटर्स का कहना है कि यत्र वेदने तत्तथा। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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