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________________ भगवई ३७७ श.७: उ.७: सू.१५०-१५४ पकामनिकरण-वेदना-पदं १५३. अत्थि णं भंते ! पभू वि पकामनिकरणं वेदणं वेदेति? हंता अत्थि॥ प्रकामनिकरण वेदना-पदम् प्रकामनिकरण-वेदना-पद अस्ति भदन्त ! प्रभुः अपि प्रकामनिकरणां १५३. भन्ते ! क्या प्रभु प्रकामनिकरण-प्रज्ञानहेतुक वेदना वेदनां वेदयति? का वेदन करता है? हन्त अस्ति। हाँ, करता है। १५४. कहण्णं भंते ! पभू वि पकामनिकरणं कथं भदन्त । प्रभु अपि प्रकामनिकरणां वेदनां वेदणं वेदेति? वेदयति? गोयमा ! जे णं नो पभू समुद्दस्स पारं गमित्तए, गौतम! यः नो प्रभुः समुद्रस्य पारं गन्तुं, यः जे णं नो पभू समुदस्स पारगयाइं रूवाइं नो प्रभुः समुद्रस्य पारगतानि रूपाणि द्रष्टुं, पासित्तए, जे णं नो पभू देवलोगं गमित्तए, जे यः नो प्रभुः देवलोकं गन्तुं, यः नो प्रभुः देवणं नो पभू देवलोगगयाइं रूवाइं पासित्तए, लोकगतानि रूपाणि द्रष्टुं, एष गौतम! प्रभुः एसणं गोयमा ! पभू वि पकामनिकरणं वेदणं अपि प्रकामनिकरणां वेदनां वेदयति। वेदेति ॥ १५४. भन्ते ! प्रभु भी प्रकामनिकरण वेदना का वेदन कैसे करता है? गौतम! जो समुद्र के उस पार जाने में समर्थ नहीं हैं, जो समुद्र के पारवर्ती रूपों को देखने में समर्थ नहीं है, जो देवलोक में जाने में समर्थ नहीं है, जो देवलोकवर्ती रूपों को देखने में समर्थ नहीं हैं, गौतम! यह प्रभु भी प्रकामनिकरण वेदना का वेदन करता है। भाष्य १. सूत्र १५०-१५४ मन और वचन होता है ? भगवान-नहीं होता, किंतु वे इष्ट और अनिष्ट प्रस्तुत आलापक में अमनस्क और समनस्क श्रेणी के जीवों की वेदना स्पर्श का संवेदन करते हैं। पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीव छह स्थानों का का विमर्श किया गया है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और समूर्च्छिम अनुभव या संवेदन करते हैं।-१. इष्ट-अनिष्ट स्पर्श, २. इष्ट-अनिष्ट गति, पञ्चेन्द्रिय-ये सब असंज्ञी-अमनस्क होते हैं। इनकी अज्ञान-अवस्था को ३. इष्ट अनिष्ट स्थिति, ४. इष्ट-अनिष्ट लावण्य, ५. इष्ट-अनिष्ट यशःकीर्ति,६. अंध आदि चार विशेषणों के द्वारा व्यक्त किया गया है। इन जीवों में मन का इष्ट-अनिष्ट उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार-पराक्रम। ज्ञान नहीं होता, फिर भी संवेदन होता है। संज्ञा-सिद्धान्त के अनुसार इनमें भय, इन संदर्भो से स्पष्ट है कि मन-रहित जीवों में भी संवेदन होता है। क्रोध, लोभ आदि संवेगों से उत्पन्न संवेदन होता है।' इस प्रसंग में प्रो० मर्किल, वोगल तथा क्ली वैक्स्टर द्वारा पौधों पर किए गए गौतम ने पूछा-भन्ते ! पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीवों में 'हम प्रयोग उल्लेखनीय हैं। पेड़-पौधों के संवेदना-तंत्र की घटनाएं भी वैज्ञानिक इष्ट और अनिष्ट स्पर्श का संवेदन कर रहे हैं'-क्या इस प्रकार की संज्ञा, प्रज्ञा, अनुसंधान का विषय बन रही है।' १. ठाणं, १०/१०५-१०७। प्राप्त निष्कर्षों को जब वनस्पति विज्ञानियों के एक सम्मेलन में रखा तब कई वैज्ञानिकों ने इन प्रयोगों २.भ.१६/१४,२०/३-६। में रुचि दिखाई। एक वनस्पति विज्ञानी डा० सिलेम जोन्स ने स्वयं इस प्रयोग को अपने हाथों से ३. वही, १४/६३। किया और संतोषजनक परिणाम प्राप्त किया। एक बार जब जोन्स ने वोगल की प्रयोगशाला में प्रवेश ४. तीर्थंकर, जनवरी ८६ : लेखक डॉ० अवधेश शर्मा किया तब एक पौधे ने कंपन देना एकदम बंद कर दिया। वोगल ने जोन्स से विचार पूछे तब उन्होंने ___ "पेड़-पौधे न केवल अपने आस-पास आने वाले व्यक्तियों के भले-बुरे भावों को पहचान बताया कि इस पौधे की तुलना वे अपने पौधे से कर रहे थे, जो हरा-भरा है। वोगल के उस पौधों लेते हैं, बल्कि वे उन भावनाओं से प्रभावित भी होते हैं। प्रो० वोगल ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया। ने दो सप्ताह तक कोई कंपन अंकित नहीं किया। मशीन काम कर रही थी, फिर कंपन अंकित क्यों कि पौधे उन्हें उखाड़ने या नष्ट करने के विचार मात्र से पूरी तरह आंतकित हो जाते हैं। यह सिद्ध नहीं हुआ? इसका उत्तर देते हुए वोगल ने कहा कि जोन्स ने अपने मन में पौधे के प्रति जो भाव करने के लिए उन्होनें एक मित्र विवियन विले के सहयोग से एक प्रयोग की योजना बनायी । इसके लाये थे और उसके प्रति जो हीनता की भावना व्यक्त की थी, उससे पौधे की भावनाओं को बड़ी ठेस लिए उन्होंने गमलों में लगे दो पौधों को चुना। इन्हें दोनों ने अपने-अपने शयन कक्षों में रखा। दोगल पहुंची थी, इसी कारण कोई बात करने-प्रतिक्रिया व्यक्त करने से उसने इन्कार कर दिया था। ने जो पौधा अपने शयन कक्ष में रखा था, जब भी वे वहां जाते तब पौधे के बारे में अच्छे भाव और पौधों की संवेदनशीलता को न्यूयार्क के प्रसिद्ध वनस्पति-विज्ञानी क्ली वैक्स्टर ने भी सिद्ध शुभ विचार लाते । इधर विले अपने शयन-कक्ष में पौधे के पास जब भी जाते तब पौधे को उखाड़ने कर दिखाया है। उन्होंने कंपन अंकित करने के लिए गेल्वेनो मीटर का इस्तेमाल किया और सुई की या नष्ट करने का विचार करते । दोनों मित्र प्रातःकाल जब उठते, तब उसी प्रकार के विचार करते। जगह पेन का प्रयोग किया। क्ली वैक्स्टर ने पेड़ की एक पत्ती को जुड़ी हालत में ही कॉफी की प्याली ____एक माह बाद देखा गया तो वोगल वाला पौधा अधिक हरा-भरा था और विले वाला पौधा में डाला, लेकिन कोई प्रतिक्रिया अंकित नहीं हुई, उन्होंने पुनः विचार करके कि पत्ती को जला देंगे, पहले की अपेक्षा सूखकर पीला पड़ने लगा था। दोनों को जो खाद-पानी दिया गया था, वह एक ही तरह माचिस की तीली को ज्यों ही हाथ लगाया गेल्वेनोमीटर ने पेड़ के कंपनों को तेजी से अंकित करना का था। संभव है यह मात्र संयोग ही रहा हो; यह सोचकर वोगल तथा विले पहले के भावों के विपरीत आरंभ कर दिया। इस प्रयोग को उन्होंने कई बार दोहराया और ग्राफों को सुरक्षित रख लिया। यही भावनाएं जगाने लगे। महीने भर बाद देखा गया कि वोगल वाला पौधा सूखने लगा तथा विले वाला प्रयोग पच्चीस तरह के भिन्न भिन्न पौधों पर दोहराया गया, जो देश के विभिन्न क्षेत्रों से मंगवाए गए पौधा हरा-भरा रहने लगा। थे। सभी पौधों पर विचारों के होने वाले प्रभावों को अलग-अलग गेल्वेनोमीटर से आंका गया तो वे इन लम्बे प्रयोगों के बाद वोगल ने कुछ और भी प्रयोग किए। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में ही परिणाम सामने आये जो पहले आये थे। इन कंपनों को ध्वनि-तरंगों में रूपान्तरित किया गया। एक पौधे को एक ऐसे यंत्र से जोड़ा जो पौधे की आन्तरिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों को कंपन जब ध्वनियों को सुना गया, तो उनमें से कहीं भय, कहीं प्रसन्नता, कहीं हर्ष, तो कहीं उल्लास की के रूप में अंकित करता था। पीधे को इस यंत्र से जोड़ने के बाद वोगल ने अपनी हथेलियों को ध्वनियां निकली। पौधों के चारों ओर सटाया तथा साथ ही अपने मन में पौधे के प्रति मित्रता के भाव भी जगाने लगे। भयभीत होने, प्रसन्नता व्यक्त करने तथा शत्रु को पहचानने में समर्थ होने के अतिरिक्त वोगल ने देखा कि पोधे के साथ लगे यंत्र ने कागज पर एक ग्राफ खींच दिया है। इस प्रयोग को उन्होंने पेड़-पौधे गर्मी-सर्दी भी महसूस करते हैं। उन्हें प्यास भी लगती है। यह खोज रूस के सुप्रसिद्ध कई बार दोहराया और लगभग एक ही समान ग्राफ प्राप्त किया। प्रोफेसर वोगल ने इन प्रयोगों से वनस्पति-शास्त्री लियोनिडए पनिशकिन तथा कैरो मोनव ने की है। उन्होंने एक विशेष यंत्र को एक Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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