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श.७: उ.६:सू.११७-१२४
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भगवई
पर्वग-जिसके मध्य में गांठे हों, जैसे इक्षु आदि।
दाद, कुष्ठ, सेंहुआ, (दुद्दु-किडिभ-सिब्म)-आयुर्वेद में कुष्ठ हरित-दूब आदि।
के अठारह प्रकार बतलाए गए हैं। उनमें सिध्म और किटिभ-ये दोनों औषधि-धान्य (शाली आदि)
कफवातज बतलाए गए हैं। दद्रु भी कुष्ट का एक प्रकार है। उसे कफपित्तज प्रवाल-पल्लवांकुर।
बतलाया गया है। तृण वनस्पतिकाय-बादर वनस्पति।
छवि-त्वचा। डूंगर (डोंगर)-छोटी पहाड़ी । यह देशी शब्द है।
चित्रल-चितकबरा। टीले (उत्थल)–बालु के टीले
टोलगति–टोल का अर्थ है--टिड्डा। टिड्डे की तरह टेढ़ी-मेढ़ी पठार (भट्ठी)-पठार भूमि (धूलरहित मार्ग)
गति। वृत्ति में इसका अर्थ किया है-ऊंट जैसी गति वाला। विकल्प में अर्थ भूमि निर्झर (सलिलबिल)-भूमि से नीचे से ऊपर की ओर किया है-अप्रशस्त आकार वाला। निकलती जलधारा, जलोच्छ्वास।
उक्कुडअद्विग-जिसकी हड्डियां यथास्थान निविष्ट नहीं है। विरावेहिति-विराय (विरात)-यह देशी धातु है। यहाँ इसका विज्झडिय-यह देशी पद है। इसका अर्थ है-'मिश्रित', 'व्याप्त'। अर्थ है-विलीन।
उग्गुंडिय-यह देशी पद है। इसका अर्थ है 'धूल से भरा हुआ'।
असुहदुक्खभागी-दुःखानुबन्धी दुःखभागी। सू. ११८
रलि-बंधी मुट्ठी वाला हाथ। तत्तकवेल्लयब्भूया, तत्तसमजोतिभूया-द्रष्टव्य भ० ३/४८ निगोद-कुटुम्ब । का भाष्य।
चलणी-चरण-प्रमाण कर्दम ।' जीवाजीवाभिगम वृत्ति में इसका सू० १२० अर्थ 'चरणमात्रस्पर्शी कर्दम' किया गया है।
रहपह-रथ के दोनों चक्कों की दूरी जितना मार्ग।
अक्खसोयपमाणमेत्तं पहिये की धूरी के प्रवेश-छिद्र जितना।" सू. ११६
अनादेयवचन-जिसका वचन दूसरों के द्वारा आदेय, ग्राह्य अथवा सू० १२१ मान्य न हो वह 'अनादेयवचन' कहलाता है।
प्रस्तुत सूत्र में 'मांसाहार' और 'कुणिमाहार' दोनों का प्रयोग प्रत्यायात-जन्म। 'पच्चायाय' के संस्कृत रूप दो हो सकते हैं- हुआ है। कुणिम का अर्थ है-शव। मांसाहार के साथ शव-मृतशरीर खाने प्रत्यायात और प्रत्याजात । वृत्तिकार ने प्रत्याजात का अर्थ 'जन्म' किया का भी उल्लेख है। इससे ज्ञात होता है कि मांसाहार और शव का आहार दानों
एक कोटि के नहीं हैं। मांसाहार की अपेक्षा शव के आहार में अधिक क्रूरता की नियोग-विधि, अवश्य करणीय।'
मनोवृत्ति होती है। दग्ध (झाम)-'झाम' देशी पद है। इसका अर्थ है-—'दग्ध।'
फुट्टसिरा-फटे हुए अथवा विदीर्ण सिर वाले । वृत्तिकार ने सू० १२२ इसका अर्थ 'विकीर्ण बाल वाला' किया है।'
___ सू० ११७ में बतलाया गया है कि चतुष्पदों का विध्वंस हो जाएगा। कच्छुकसराभिभूय-कच्छु' और 'कसर' दोनों खुजली के प्रकार वह प्रायिक वचन है। प्रस्तुत सूत्र में बचे हुए चतुष्पदों का उल्लेख है। हैं। वृत्तिकार ने कच्छू का अर्थ 'पामा' और कसर का अर्थ 'खशर' किया है।
शब्द-विमर्श के लिए द्रष्टव्य भ०३/२०९-२२० का भाष्य ।
१२४. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।
१२४. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते वह ऐसा ही है।
१. भ. वृ.६/११८-चलनप्रमाणः कर्दमश्चलनीत्युच्यते । २.जीवा. व. प. २४२ चलणीति वा, चलनी-चरणमात्रस्पीकर्दमः । ३. भ.वृ.७/११६-प्रत्याजातन्तु जन्म। 8. अभिधान चिन्तामणि, ६/१५६-नियोगे विधिसंप्रेषो। ५. भ. वृ. ७/११६- 'फुट्टसिर'त्ति विकीर्णशिरोजा इत्यर्थः । ६. वही, ७/११६-कच्छूकसराभिभूया कच्छू:--पामा तथा कशरेश्च-खशरैरभिभूताः
व्याप्ता येते तथा।
७. शार्ङ्गधरसंहिता पूर्वखण्ड, रोग गणना प्रकरण, पृ. १४८ । ८. भ. वृ. ७/११६-टोलेत्यादि, टोलगतयः-उष्ट्रादिसमप्रचाराः पाठान्तरेण टोलाकृतयः-- ____ अप्रशस्ताकाराः । ६. वही, ७/१२०--रथपथः-शकटचक्रद्वयामितो मार्गः । १०. वही, ७/१२०- अक्षश्रोतः-चक्रधुरः प्रवेशरन्धं तदेव प्रमाणमक्षश्रोतः प्रमाणं तेन
मात्रा परिमाणमवगाहतो यस्य तत् ।
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