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श.७: उ.६:सू.११६-१२३
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भगवई
नत्तुपरिवाल-पणयबहुला, गंगा-सिंधूओ महा- सम्यक्त्वपरिभ्रष्टाः, उत्कर्षेण रत्निप्रमाणनदीओ, वेयड्ढं च पव्वयं निस्साए बावत्तरि मात्राः, षोडशविंशतिवर्षपरमायुषः, पुत्रनप्तृनिओदा बीयं बीयमेत्ता बिलवासिणो भवि- परिवार-प्रणयबहुलाः, गङ्गा-सिंधू महानद्यौ, स्संति॥
वैताढ्यं च पर्वतं निश्रित्य द्विसप्ततिः निगोदाः बीजं बीजमात्राः बिलवासिनः भविष्यन्ति।
स्खलित और विहल गति वाले, निरुत्साह, सत्त्व से रहित, चेष्टा-शून्य, तेज-शून्य, बार-बार सर्दी-गर्मी, रूक्ष
और कठोर वायु से व्याप्त होने वाली मलिन धूलि और रजकणों से भरे हुए प्रत्येक अंग वाले होंगे। उनका क्रोध, मान, माया और लोभ प्रबल होगा। उनका दुःख दुःखानुबन्धी होगा। वे प्रायः धर्म-संज्ञा से शून्य और सम्यक्त्व-रहित होंगे। उनका शरीर रत्नि (बंधी मुट्ठी वाला हाथ) जितना होगा। उनकी उत्कृष्ट आयु सोलह अथवा बीस वर्ष की होगी। वे पुत्र-पौत्र आदि में बहुत स्नेह रखने वाले होंगे। वे गंगा, सिंधु दो महानदियों तथा वैताढ्य पर्वत के परिपार्श्व में होने वाले कुछ बिलों अथवा गुफाओं के आश्रय में रहेंगे। उनके बहत्तर कुटुम्ब आगामी मनुष्य-जाति के लिए बीज और बीजमात्र बचेंगे।
१२०. ते णं भंते ! मणुया कं आहारं आहारे- ते भदन्त! मनुजाः कम् आहारम् आहा- १२०. भन्ते ! वे मनुष्य किसका आहार करेंगे? हिंति?
रिष्यन्ति? गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं गंगा- गौतम! तस्मिन् काले तस्मिन् समये गङ्गा- गौतम ! उस काल और उस समय गंगा और सिंधु-दो सिंधूओ महानदीओ रहपहवित्थराओ अक्ख- सिन्धू महानद्यौ रथपथविस्तरे अक्षस्रोत- महानदियों का विस्तार रथ के पथ जितना होगा। उनमें सोयप्पमाणमेत्तं जलं वोज्झिहिंति, से विय प्रमाणमात्रं जलं वक्ष्यतः,तद् अपि च जलं पहिये की धुरी के प्रवेश-छिद्र जितना जल बहेगा। वह णं जले बहुमच्छकच्छभाइण्णे, णो चेव णं बहुमत्स्यकच्छपाकीर्णम्, नो चैव अब्बहुलं जल अनेक मछलियों और कछुओं से आकीर्ण होगा। आउबहुले भविस्सति। तए णं ते मणुया सूरु- भविष्यति। ततः ते मनुजाः सूरोद्गमनमुहूर्ते उसमें जल की मात्रा कम होगी। वे मनुष्य सूर्य के ग्गमणमुहुत्तंसि य सूरत्थमणमुहुत्तंसिय बिले- च सूरास्तमनमुहूर्तेच बिलेभ्यः निर्धाविष्यन्ति, उदयकाल और अस्तकाल के समय अपने-अपने बिलों हिंतो निद्धाहिति, निद्धाइत्ता मच्छ-कच्छभे निर्धाव्य मत्स्यकच्छपान् स्थलानि गाहिष्यन्ति, से निकलेंगे, निकल कर मछलियों और कछुओं को थलाई गाहेहिंति, गाहेत्ता सीतातवतत्तएहिं गाहित्वा शीतातपतप्तैः मत्स्यकच्छपैः एक- स्थल पर लाएंगे, ला कर उन्हें सर्दी के दाह और गर्मी मच्छ-कच्छएहिं एक्कवीसं वाससहस्साइं वित्तिं विंशति वर्षसहस्राणि वृत्तिं कल्पमानाः विहरि- के ताप में पकाएंगे। इक्कीस हजार वर्ष तक इस कप्पेमाणा विहरिस्संति ॥ ष्यन्ति।
प्रकार जीविका का निर्वाह करेंगे।
१२१. ते णं भंते! मणुया निस्सीला निग्गुणा ते भदन्त ! मनुजाः निश्शीलाः निर्गुणाः निर्मेराः १२१. भन्ते! वे शील-रहित, गुण-रहित, मर्यादा-रहित, निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा, उस्स- निष्प्रत्याख्यानपौषधोपवासाः, 'उस्सण्णं' पौषघोपवास- और प्रत्याख्यान-रहित तथा प्रायः ण्णं मंसाहारा मच्छाहारा खोद्दाहारा कुणिमा- मांसाहाराः मत्स्याहाराः क्षौद्राहाराः 'कुणिमा'- मांस-मछली खाने वाले, क्षुद्र-भोजी तथा शवों को खाने हारा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति? हाराः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यन्ति? वाले मनुष्य कालमास में काल कर कहां जायेंगे ? कहां कहिं उववज्जिहिंति? कुत्र उपपत्स्यन्ते?
उत्पन्न होंगे। गोयमा! उस्सण्णं नरग-तिरिक्खजोणिएसु गौतम! 'उस्सणं' नरक-तिर्यग्योनिकेषुः उप- गौतम! वे प्रायः नरक और तिर्यञ्च-योनि में उत्पन्न उववज्जिहिंति ॥ पत्स्यन्ते।
होंगे।
१२२. ते णं भंते! सीहा, वग्धा, वगा, दीविया, ते भदन्त ! सिंहाः, व्याघ्राः, वृकाः, द्वीपिनः, १२२. भन्ते ! वे शील-रहित सिंह, व्याघ्र, भेड़िया, चीता
अच्छा, तरच्छा, परस्सरा निस्सीला तहेव जाव ऋक्षाः, तरक्षाः, पराशराः निश्शीलाः तथैव (चितिदार तेंदुआ) रीछ, तेंदुआ (लक्कडबग्घा या कहिं उववज्जिहिंति? यावत् कुत्र उपपत्स्यन्ते?
hynea), अष्टापद (भालू की प्रजाति का जानवर या wombat) यावत् कालमास में काल कर कहां
उत्पन्न होंगे? गोयमा ! उस्सण्णं नरग-तिरिक्खजोणिएसु गौतम! 'उस्सण्णं' नरक-तिर्यग्योनिकेषु उप- गौतम ! वे प्रायः नरक और तिर्यञ्च-योनि में उत्पन्न उववज्जिहिंति ॥ पत्स्यन्ते।
होंगे।
१२३. ते णं भंते ! ढंका, कंका, विलका, मदुगा, ते भदन्त! 'ढंका', कड्काः , विलकाः, मद्- १२३. भन्ते ! वे शील-रहित ढंक (द्रोण-काक या बडे
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