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भगवई
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श.३ : उ.१ : सू.२२-२४
२२. एवं सणंकुमारे वि, नवरं-चत्तारि केवल- एवं सनत्कुमारेऽपि, नवरं-चतुरः केवल-
कप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अदुत्तरं च णं तिरिय- कल्पान् जम्बूद्वीपान् द्वीपान, 'अदुत्तरं' च मसंखेजे।
तिर्यक् असंख्येयान्।
२२ इसी प्रकार सनत्कुमार के संबंध में ज्ञातव्य है केवल इतना अन्तर है-वह चार सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीपों को आकीर्ण कर सकता है। और दूसरी बात वह तिरछे लोक के असंख्य द्वीप समुद्रों को आकीर्ण कर सकता
एवं सामाणिय-तावत्तीसग-लोगपाल-अग्ग- एवं सामानिक-तावत्त्रिंशक-लोकपाल-अग्रमहिसीणं। असंखेज्जे दीव-समुद्दे सब्वे विकु- महिषीणाम्। असंख्येयान् द्वीप-समुद्रान् सर्वान् वंति, सणंकुमाराओ आरद्धा उवरिल्ला विकुर्वन्ति, सनत्कुमाराद् आरब्धाः उपरितनाः लोगपाला सव्वे वि असंखेज्जे दीव-समुद्दे लोकपालाः सर्वेऽपिअसंख्येयान् द्वीप-समुद्रान् विकुब्वंति॥
विकुर्वन्ति।
इसी प्रकार सामानिक, तावत्त्रिंशक, लोकपाल और पटरानियां' ये सब ज्ञातव्य हैं। ये सब असंख्येय द्वीपसमुद्रों में विक्रिया करते हैं। सनत्कुमार से लेकर ऊपर के सभी लोकपाल असंख्य द्वीपसमूद्रों में विक्रिया करते हैं।
भाष्य
१. पटरानियां
सौधर्म और ईशान-इन दो कल्पों में ही देवियां उत्पन्न होती हैं। सनत्कुमार तीसरा कल्प है। उसमें अग्रमहिषी का उल्लेख प्रासंगिक नहीं है। वृत्तिकार ने इस विषय में विमर्श किया है। उनके अनुसार सौधर्म कल्प में उत्पन्न देवियां सनत्कुमार कल्प में जाती हैं और सनत्कुमार वासी देवों के उपभोग में आती हैं। इस अपेक्षा से सनत्कुमार में अग्रमहिषियों का उल्लेख किया गया है।'
वृत्तिकार ने यद्यपि पाठ की संगति बिठाने का प्रयत्न किया है, फिर भी यह विषय विमर्शनीय रह जाता है। यहां देवियों का उल्लेख नहीं है, अग्रमहिषी
का उल्लेख है। इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता कि आदर्शों में 'अग्गमहिसीणं' पाठ प्रवाह रूप में आ गया। पूर्ववर्ती ईशान का आलापक यहां अनुकृत हो गया। वास्तव में प्रस्तुत सूत्र में ‘एवं सामाणियतावत्तीसगलोगपालाणं' पाठ होना चाहिए। पण्णवणा में अग्रमहिषी का वर्जन करने वाला पाठ उपलब्ध है। इससे हमारी संभावना और अधिक पुष्ट हो जाती है। जयाचार्य ने वृत्तिकार का अभिमत उद्धृत किया है तथा अपनी ओर से टिप्पणी की है-अग्रमहिषी का उल्लेख एक सामान्य सूत्र के रूप में हुआ है। अग्रवर्ती विशेष सूत्रों में उसका उल्लेख नहीं है।
२३. एवं माहिंदे वि, नवरं-सातिरेगे चत्तारि केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे।
एवं माहेन्द्रेऽपि, नवरं-सातिरेकान् चतुरः केवलकल्पान् जम्बूद्वीपान् द्वीपान्।
एवं बंभलोए वि, नवरं-अट्ठ केवलकप्पे।
एवं ब्रह्मलोकेऽपि, नवरम्-अष्टकेवलकल्पान्।
२३. इसी प्रकार माहेन्द्र देवलोक के संबंध में ज्ञातव्य है। केवल इतना अन्तर है कि कुछ अधिक चार सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीपों से अधिक क्षेत्र आकीर्ण कर सकता है। इसी प्रकार ब्रह्मलोक के संबंध में ज्ञातव्य है, केवल इतना अंतर है कि वह आठ सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीपों को आकीर्ण कर सकता है। इसी प्रकार लान्तक-कुछ अधिक आठ।
महाशुक्र-सोलह, सहस्रार-कुछ अधिक सोलह।
एवं लंतए वि, नवरं-सातिरेगे अट्ठ केवल- एवं लान्तकेऽपि, नवरं-सातिरेकान् अष्ट कप्पे।
केवलकल्पान्। महासुक्के सोलस केवलकप्पे। सहस्सारे सा- महाशुक्रे षोडश केवलकल्पान् । सहस्रारे तिरेगे सोलस।
सातिरेकान् षोडश। एवं पाणए वि, नवरं-बत्तीसं केवलकप्पे। एवं प्राणतेऽपि, नवरं-द्वात्रिंशत् केवल
कल्पान्। एवं अच्चुए वि, नवरं सातिरेगे बत्तीसं एवं अच्युतेऽपि, नवरं-सातिरेकान द्वात्रिंशत् केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अण्णं तं चेव ॥ केवलकल्पान् जम्बूद्वीपान् द्वीपान् अन्यत्
तच्चैव।
प्राणत-बत्तीस।
अच्युत-कुछ अधिक बत्तीस, सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीपों को आकीर्ण कर सकता है। शेष सब उसी प्रकार है।
२४. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति तच्चे गोयमे
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति तृतीयः
२४. भंते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है। इस
१. भ. वृ.३/३२-'अग्गमहिसीणं' ति यद्यपि सनत्कुमारे स्त्रीणामुत्पत्तिनास्ति तथाऽपि याः सौधर्मो त्पन्नाः समयाधिकपल्योपमादिदशपलयोपमान्तस्थितयोऽपरिगृहीतदेव्यस्ताः सनत्कुमारदेवानां भोगाय संपद्यन्ते इतिकृत्वाऽग्रमहिष्य, इत्युक्तमिति।
२. पण्ण, २/५२- सेसं जहा सक्करस अग्गमहिसीवज्ज। ३. भ. जो. १/४६/३७-४१।
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