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श.३ उ.१ सू.२०-२१
२०. भंतेति ! भगवं तच्चे गोयमे वायुभूई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंस, वंदित्ता नमसित्ता एवं वदासी - जइ णं भंते! सक्के देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव एवइयं चणं पभू विकुव्वित्तए, ईसाणे णं भंते ! देविंदे देवराया केमहिड्ढीए ? एवं तहेव, नवरं - साहिए दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अवसेसं तहेव ॥
२१. जइ णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च ण पभू विकु व्वित्तए, एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुरुदत्तपुत्ते नामं अणगारे पगतिभद्दए जाव विणीए अट्टमं अमेणं अभिक्खिणं, पारणाए आयविलपरिग्गरिएणं तवोकम्मेन उद्धं वाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आया
भूमी आयावेमा बहुपडिपुणे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणित्ता, अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेत्ता, तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेता आलोइय-पटिक्कते समाहिपते कालमासे कालं किच्चा ईसाने कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयफिसि देवदूतरिए अंगुलस्स असंखेज्जभागमेतीए ओगाहणाए ईसाणस्स देविंदरस देवरष्णो सामाजियदेवत्ताए उबवण्णे जा तीस वत्तब्वया सच्चेव अपरिसेसा कुरुदत्तपुत्ते वि, नवरं - सातिरेगे दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अवसेसं तं चैव ।
एवं सामाणिय- तावत्तीसग-लोगपाल-अग्गमहिसीणं जाव एस णं गोयमा ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो एगमेगाए अग्गमहिसीए देवीए अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विसु वा विकुव्वति या विकुव्विस्सति वा ॥
१. आतापन- भूमी
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भदन्त ! अयि । भगवान् तृतीयः गौतमः वायुभूतिः अनगारः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीद् – यदि भदन्त ! शक्रः देवेन्द्रः देवराजः महर्द्धिकः यावद् एतावच्च प्रभुः विकर्तुं, ईशानः भदन्त ! देवेन्द्रः देवराजः कियन्महर्द्धिकः ? एवं तथैव, नवरं - साधिको द्वी केवलकल्पी जम्बूडीपी द्वीपो अवशेष
तथैव।
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यदि भदन्त ! ईशानः देवेन्द्रः देवराजः इयन्महर्द्धिकः यावद् एतावच्च प्रभुः विकर्तुम्, एवं खलु देवानुप्रियाणाम् अन्तेवासी कुरुदत्तपुत्रः नाम अनगारः प्रकृतिभद्रकः यावद् विनीतः अष्टमाष्टमेन अनिक्षिप्तेन, पारपके परिगृही ताचाम्लेन तपः कर्मणा ऊर्ध्वं बाहू प्रगृह्य-प्रगृह्य सूराभिमुखः आतापनभूम्यां आतापयन् बहुप्रतिपूर्णान् षण्मासान् श्रामण्यपर्यायं प्राप्य, अर्धमासिक्या संलेखनया आत्मानं जोषित्वा, त्रिंशद् भक्तानि अनशनेन छित्त्वा आलोचितप्रतिक्रान्तः समाधिप्राप्तः कालमा कालं कृत्या ईशाने कल्पे स्वस्मिन् विमाने उपपात सभायाः देवशयनीये देवदुष्पान्तरित अंगुलस्य असंख्येयभागमात्रपा अवगाहनया ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सामानिकदेवत्वेन उपपन्नः । या तिष्यके वक्तव्यता सा चैव अपरिशेषा कुरुदत्तपुत्रेऽपि, नवरं - सातिरेकौ द्वौ केवलकल्पौ जम्बूद्वीपी द्वीपौ, अवशेषं तच्
चैव।
एवं सामानिक तावत्रिंशक- लोकपाल-अप महिषीणां यावद् एष गौतम ! ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य एकैकस्याः अग्रमहिष्याः देव्याः अयमेतद्रूपः विषयः विषयमात्रः उक्तः, नो चेव सम्प्राप्त्या व्यकार्षीद् वा विकरोति वा, विकरिष्यति वा ।
आतापन- भूमी के लिए भ० २ / ६२ का भाष्य द्रष्टव्य है।
भाष्य
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भगवई २०. भन्ते ! इस संबोधन से संबोधित कर तृतीय गौतम भगवान् वायुभूति अनगार श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन नमस्कार करते हैं, वन्दन- नमस्कार कर उन्होंने इस प्रकार कहा - भन्ते ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र महान ऋद्धि वाला है यावत इतनी विक्रिया करने में समर्थ है, तो भन्ते ! देवेन्द्र देवराज ईशान कितनी महान् ऋद्धि वाला है? यह समग्र प्रकरण पूर्ववत् वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है- वह अपनी विक्रिया से कुछ अधिक सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीप द्वीपों को आकीर्ण कर सकता है। शेष वक्तव्यता उसी प्रकार है।
२१. भन्ते ! यदि देवेन्द्र देवराज ईशान इतनी महान् ऋद्धि वाला यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ है, तो आपका अंतेवासी कुरुदत्तपुत्र नामक अनगार जो प्रकृति से भद्र यावत् विनीत था वह निरन्तर तेला-तेला (तीन-तीन दिन के उपवास) और पारणे में आचाम्ल की स्वीकृति रूप तपः - साधना करता था। वह आतापना- भूमी' में दोनों भुजाएं ऊपर उठा कर सूर्य के सामने आतापना लेता था। उसने पूरे छह मास तक श्रामण्य पर्याय का पालन कर पन्द्रह दिन की संलेखना (तपस्या) से अपने आपको कृश बनाया, अनशन के द्वारा तीस भक्तों का छेदन किया, वह आलोचना और प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्ण दशा में काल- मास में काल को प्राप्त हो गया। वह ईशान कल्प में अपने विमान में उपपात सभा के देवदूष्य से आच्छन्न देवशयनीय में अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी अवगाहना से देवेन्द्र देवराज ईशान के सामानिक देवरूप में उत्पन्न हुआ। तिष्यक के संबंध में जो वक्तव्यता है, वही समग्र रूप से कुरुदत्तपुत्र के प्रसंग में ज्ञातव्य है, केवल इतना अन्तर है कि वह कुछ अधिक सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीप द्वीपों को आकीर्ण कर सकता है। शेष वक्तव्यता उसी प्रकार है। इसी प्रकार सामानिक, तावत्त्रिंशक, लोकपाल और पटरानियों के विषय में ज्ञातव्य है यावत् गीत ! देवेन्द्र देवराज ईशान की प्रत्येक पटरानी देवी की विक्रिया-शक्ति का यह इतना विषय केवल विषय की दृष्टि से प्रतिपादित है किसी भी पटरानी ने कियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की न करती है और न करेगी।
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