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________________ श. ७: उ. ६ : सू. ११३-११७ अन्वेषण का विषय है। सिद्धसेनगणि ने इस सूची को और अधिक लम्बा बना दिया है। भगवती का पाठ प्राचीन प्रतीत होता है तत्वार्थ सूत्र का विकास उत्तरकालीन है। अकलंक ने अनुकम्पा की व्याख्या इस प्रकार की है - जिसका चित्त अनुग्रह से भीगा हुआ है तथा पर पीड़ा को अपनी पीड़ा की भांति अनुभव करने के कारण जो अनुकम्पन होता है, उसका नाम अनुकम्पा है। २ उमास्वाति ने असातावेदनीय कर्म-बन्ध के छह हेतु बतलाएं हैं। वे भगवती में निर्दिष्ट हेतुओं के समान ही है। देखें, तालिका दुस्समदुस्समा-पदं ११७. जंबुद्दीवे षणं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए दुस्सम- दुस्समाए समाए उत्तमक पत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! कालो गविस्सा हाहामूए, मंगल्यूए कोलाहलए । समाणभावेण य णं खर-फरस-धुलिमइला दुव्विसहा वाउला भंयकरा वाया सवट्टगा य वाहिंति । इह अभिक्खं धूमाहिति य दिसा समंता रउस्सला रेणु-कलुस -तगपडल-निरालोगा समयवखयाए य णं अहियं चंदा सीयं मोच्छंति । अहियं सूरिया तवइस्संति । अदुत्तरं च णं अभिक्खणं बहवे अरसमेा विरसमेढा खारमेटा खत्तमेहा अग्निमेहा विज्जुमेहा विसमेहा असगिमेहाअपिवणिज्जोदगा, वाहिरोगवेदणोदीरणा--परिणामसलिला, अमणुण्णपाणियगा चंडा - निल-पहयतिक्खधारा - निवायपउरं वासं वासिहिंति, जेणं भार वासे गामागर-नगर-खेड-कब्बड- महंब- दोणमुह- पट्टणासममयं जणवयं, चउप्पयगवेलए, खहयरे य पक्खिसंघे, गामारण्ण-पयारनिरए तसे य पाणे, बहुप्पगारे रुक्ख-गुच्छ - गुम्म-लय- वल्लि-तणपव्वग- हरितो सहि पवालंकुर-मादीए य तन- वणरसइकाइए विद्धसेहिंति, पव्वय - गिरि- डोंगरुत्थल- भट्टिमादीए वेयड्ढगिरिवज्जे विरावेहिंति सलिलबिल- गहू- दुग्ग-विसम निष्णुन्नयाई च गंगा-सिंधुवज्जाई समीकरेहिंति ॥ ३६६ Jain Education International भगवती तत्वार्थ सूत्र १. दुःख दुःख २. शोक शेक २. जूरण (शरीर को जीर्ण अथवा खेद खिन्न करना) ४. अश्रुमोचन ताप आक्रन्दन वध परिवेदन ५. पीटना ६. परिताप देना अकलंक ने असातावेदनीय कर्मबन्ध की सूची में अनेक प्रवृत्तियों की वृद्धि की है।" दुःषम-दुःषमा-पदम् जम्बूद्वीपे भवन्त ! द्वीपे अस्याम् अवसर्पिण्यां दुःषम- दुःषमायां समायाम् उत्तमकाष्ट (कष्ट)प्राप्तायां भरतस्य वर्षस्य कीदृशः आकारभावप्रत्यवतारः भविष्यति ? गौतम ! कालः भविष्यति हाहाभूतः भम्भाभूतः, कोलाहलभूतः । समानुभावेन च खर- परुष-धूलिमलिनाः दुर्विसहाः वातूलाः भंयकराः वाताः संवर्तकाश्च वास्यन्ति । इह अभीक्ष्णं धूमायिष्यन्ति च दिशः समन्ताद् रजस्वलाः रेणु कलुष-तमःपटल निरालोकाः। समयरूक्षतया च अधिकं चन्द्राः शीतं मोक्षयन्ति । अधिकं सूर्याः तापयिष्यन्ति । 'अदुत्तरं ' च अभीक्ष्णं बहवः अरसमेषाः विरसमेधाः क्षारमेघाः 'खत्त' मेघाः अग्निमेघाः विद्युन्मेघाः विषमेघाः अशनिमेघाः – अपानीयोदकाः, व्याधिरोगवेदनोदीरणा-परिणामसलिलाः, अमनोज्ञपानीयकाः चण्डानिल-प्रहततीक्ष्णधारा-निपातप्रचुरां वर्षां वर्षिष्यन्ति, येन भारते वर्षे ग्रामाकर-नगर- खेट-कट-मडम्ब-द्रोणमुख-पत्तनाश्रमगतं जनपदं, चतुष्पद-गवेलकान् खेचरांश्च पक्षिसंघान् ग्रामारण्य-प्रचारनिरतान्त्रांश्च प्राणान् बहुप्रकारान् रुक्ष-गुच्छ गुल्म लता वल्लि तृण पर्वक हरितौषधि-प्रवालाङ्कुरादींश्च तृण-वनस्पतिकायिकान् विध्वंसिष्यन्ति, पर्वत- गिरि-'डोंगरो' -त्स्थल-‘भट्ठि’आदीन् वैताढ्यगिरिवर्जान् 'विरावेहिंति' सलिलबिल गर्त्त-दुर्ग-विषमनिम्नोन्नतानि च गङ्गा-सिंधुवर्णानि समीकरष्यन्ति । भगवई १. त. सूः भा. वृ. ६ / १३ - धर्मानुरागः धर्मनिषेवणशीलव्रतपौषधोपवासरतितपो ऽनुष्ठान बालवृद्धतपरिचतानवेदावृत्त्यानुष्ठानधर्माचार्थमातृपितृभक्तिपूजा शुभपरि ३. वही, ६ / ११, पृ० ५२१ । णामश्च सवेद्यस्याश्रवा भवन्तीति । दुःखम- दुःषमा पद ११७. 'भन्ते ! जम्बूद्वीप द्वीप में इस अवसर्पिणी का दुःषम-दुषमा अर पराकाष्ठा पर होगा, तब भरतक्षेत्र के आकार- पर्याय का अवतरण कैसा होगा? For Private & Personal Use Only गौतम! वह काल हाहाकारमय होगा, पशुओं का 'भाँ भाँ' इस प्रकार का आर्त्तस्वर तथा पीड़ित पक्षियों का कोलाहल होगा । उस काल के प्रभाव से खर पुरुष धूलि से मटमैले दुःसह वातुल (बवण्डर) तथा भयंकर प्रलयंकारी हवाएं चलेंगी दिशाएं बार-बार धूमिल रजकणों से व्याप्त तथा धूल भरी आंधियों से अन्धकारमय हो जाएंगी। 'समय' की रूक्षता के कारण चांद अधिक शीतल होगे। सूर्यों का ताप अधिक उपेगा। अरस जल वाले मेघ, विरस जल वाले मेघ, क्षार जल वाले मेघ, खाद के समान रस वाले मेघ, अग्नि की भांति दाहक जल वाले मेघ, विद्युत् निपात करने वाले मेघ, विषयुक्त जल वाले मेघ, ओला वृष्टि वाले मेघइस प्रकार के अनेक मेघ बार-बार बरसेंगें। उनका जल पीने योग्य नहीं होगा। वह व्याधि, रोग, वेदना को उभारने वाला होगा। वह अमनोज्ञ होगा और वर्षा भी प्रचण्ड वायु के आघात से प्रेरित हो मूसलाधार होगी। उस वर्षा के कारण भरत क्षेत्र में गांव, आकर, नगर, खेट, कब्बड, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टण, आश्रम आदि जनपदों, गाय, भेड़ आदि पशुओं, आकाशविहारी पक्षी समूहों, गांव और जंगल में घूमने वाले प्राणियों और बहुत प्रकार के वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बल्लि, तृण, पर्व, हरित, औषधि, प्रवाल- अंकुर आदि तृण वनस्पतिकाय का विध्वंस हो जायेगा वैताढ्य पर्वत को छोड़कर शेष सारे पर्वत, गिरि, डूंगर, टीले, पठार नष्ट हो जायेंगे। गंगा और सिंधु नदी को छोड़ कर शेष सारे भूमि-निर्झर, गढे, दुर्ग, विषम प्रदेश और २.रा.६१२-अनुपाकृतचेतसः परमात्ममिव कुर्वतोऽनुपमनुकम्पा www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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