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भगवई
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श.७ : उ.६ :सू.११३-११६
हंता अत्थि ॥
हन्त अस्ति।
हां, होते हैं।
११४. कहण्णं भंते ! जीवाणं सातावेयणिज्जा कथं भदन्त ! जीवानां सातवेदनीयानि कर्माणि ११४. भन्ते ! जीवों के सात वेदनीय कर्म का बंध किस कम्मा कति? क्रियन्ते?
कारण से होता है। गोयमा ! पाणाणुकंपयाए, भूयाणुकंपयाए, गौतम ! प्राणानुकम्पया, भूतानुकम्पया, जीवा- ___गौतम ! प्राणों की अनुकम्पा, भूतों की अनुकम्पा, जीवों जीवाणुकंपयाए, सत्ताणुकंपयाए, बहूणं नुकम्पया, सत्त्वानुकम्पया, बहूनां प्राणानां की अनुकम्पा, सत्त्वों की अनुकम्पा, अनेक प्राण, भूत, पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं अदुक्खणयाए भूतानां जीवानां सत्त्वानाम् अदुक्खनतया जीव और सत्त्वों को दुःखी न बनाना, शोकाकुल न असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणयाए अशोचनतया, अखेदनतया, 'अतिप्पणयाए' करना, न जुराना (शरीर को जीर्ण अथवा खेद खिन्न अपिट्टणयाए अपरियावणयाए एवं खलु 'अपिट्टणयाए' अपरितापनतया-एवं खलु न करना) न रुलाना, न पीटना, न परिताप देनागोयमा ! जीवाणं सातावेयणिज्जा कम्मा गौतम! जीवानां सातवेदनीयानि कर्माणि गौतम! इस प्रकार की अनुकम्पा वृत्ति से जीवों के कजंति। एवं नेरइयाण वि, एवं जाव क्रियन्ते। एवं नैरयिकाणाम् अपि, एवं यावद् सातवेदनीय कर्म का बंध होता है। इसी प्रकार नैरयिक वेमाणियाणं ॥ वैमानिकानाम्।
यावत् वैमानिकों के सात वेदनीय कर्म का बंध होता
११५. अत्थिणं भंते ! जीवाणं असातायणिज्जा अस्ति भदन्त ! जीवानाम् असातावेदनीयानि ११५. भन्ते ! क्या जीवों के असात वेदनीय कर्म होते हैं ? कम्मा कज्जति?
कर्माणि क्रियन्ते? हंता अस्थि ॥ हन्त अस्ति।
हां, होते हैं।
११६. कहण्णं भंते ! जीवाणं असातावेयणिज्जा कथं भदन्त ! जीवानाम् असातावेदनीयानि कम्मा कज्जति?
कर्माणि क्रियन्ते? गोयमा ! परदुक्खणयाए, परसोयणयाए, गौतम! परदुक्खनतया, परशोचनतया, परपरजूरणयाए, परतिप्पणयाए, परपिट्टणयाए, खेदनतया, 'परतिप्पणयाए', 'परपिट्टणयाए', परपरियावणयाए, बहूणं पाणाणं भूयाणं परपरितापनतया, बहूनां प्राणानां भूतानां, जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए, सोयणयाए, जीवानां सत्त्वानां दुक्खनतया, शोचनतया, जूरणयाए, तिप्पणयाए, पिट्टणयाए, परिया- खेदनतया, 'तिप्पणयाए', 'पिट्टणयाए', परिवणयाए एवं खलु गोयमा! जीवाणं असाता- तापनतया एवं खलु गौतम! जीवानाम् वेयणिज्जा कम्मा कज्जंति। एवं नेरइयाण वि, असातावेदनीयानि कर्माणि क्रियन्ते। एवं एवं जाव वेमाणियाणं॥
नैरयिकाणाम् अपि, एवं यावद् वैमानिकानाम्।
११६. भन्ते! जीवों के असातवेदनीय कर्म का बंध किस कारण से होता है ? गौतम! दूसरों को दुःखी बनाना, शोकाकुल बनाना, जुराना (शरीर को जीर्ण और खेद खिन्न करना) रुलाना, पीटना, परिताप देना गौतम ! अनेक प्राण, भूत, जीव
और सत्त्वों को दुःखी बनाना, शोकाकुल करना, जुराना, रूलाना, पीटना, परिताप देना- इस प्रकार की क्रूर वृत्ति से जीवों के असातवेदनीय कर्म का बंध होता है-इसी प्रकार नैरयिक यावत् वैमानिकों के असात वेदनीय कर्मका बंध होता हैं।
भाष्य
१. सूत्र ११३-११६
अनुकम्पा के दो रूप होते हैं-विधेयात्मक और निषेधात्मक । भगवान महावीर ने अहिंसा के संयमस्वरूप को मान्य किया है।' अनुकम्पा अहिंसा का ही एक अवान्तर प्रकार है, इसलिए उसका सीमा-स्तम्भ संयम ही हो सकता है। सूत्रकार ने अनुकम्पा की प्रयोगात्मक व्याख्या में 'दुःख न देना'इसका निर्देश किया है, सुख देना-इसका निर्देश नहीं किया है। सुखात्मक अनुकम्पा समाज की प्रकृति के अनुकूल हो सकती है, किंतु संयम-धर्म की प्रकृति के अनुकूल नहीं हो सकती । मनुष्य आरम्भ में प्रवृत्त होकर दूसरों को दुःख देता है। अनुकम्पा का भाव जागृत होने पर वह आरम्भ का संयम करता है, इसलिए वह दूसरों को दुःख नहीं देता। अनुकम्पा का यह स्वरूप सार्वभौम
है, सार्वकालिक और सार्वदेशिक है और सर्वथा निर्दोष है।
भ.३/१४५ में दुक्खावणयाए-इस प्रकार का पाठ मिलता हैंप्रस्तुत प्रकरण में दुक्खणयाए पाठ है। शब्द-विमर्श के लिए द्रष्टव्य भ. ३/१४५ का भाष्य।
उमास्वाति ने सात वेदनीय कर्म-बंध के अनेक कारण बतलाएं हैं१. भूतानुकम्पा २. व्रती-अनुकम्पा ३. दान ४. सराग संयम आदि-सराग संयम, संयमासंयम, अकाम निर्जरा, बाल तप ५. योग ६. क्षान्ति ७. शौचा
प्रस्तुत आगम (भगवती) में आठ कर्मों के बंध के कारण बतलाए गए हैं। उनमें भी केवल अनुकम्पा का ही उल्लेख है।
शेष कारणों का उल्लेख उमारवाति ने किस आधार पर किया है, यह
१. दसवे. ६/८
अहिंसा निउणं दिट्ठा, सव्वभूएसु संजमो। २. भ.३/१४५
३. त. सू. ६/१३-भूतव्रत्यनुकम्पादनं सरागसंयमादिः क्षान्तिः शौचमिति एतवेद्यस्य। ४. भ. ८/४२२।
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