________________
भगवई
३६३
श.७: उ.६:सू.१०३-१०६
भाष्य
दण्डक
इहगत
नारक
१. सूत्र १०३-१०५
प्रस्तुत आलापक में वर्तमान जीवन तथा भावी जीव की उपपद्यमान और उपपन्न-इन दोनों अवस्थाओं में होने वाली वेदना का विमर्श किया गया है देखें यंत्र।
वेदनावाद के विस्तृत विवेचन के लिए देखें भ०१/६०-१०० का भाष्य।
देवों के तेरह दण्डक
उपपद्यमान उपपन्न स्यात् महावेदना स्यात् महावेदना | एकान्त दुःखवेदन स्यात् अल्पवेदना स्यात् अल्पवेदना कदाचित् सुखवेदन
एकान्त सुखवेदन कदाचित् दुखःवेदन विमात्रा से वेदन कदाचित् सुखवेदन कदाचित् दुःखवेदन
शेष सभी दण्डक
१०६. जीवाणं भंते ! किं आभोगनिव्वत्तियाउया? जीवाः भदन्त ! किम् आभोगनिवर्तितायुष्काः? १०६. 'भन्ते ! क्या जीव ज्ञात अवस्था में आयुष्य का बंध अणाभोगनिव्वत्तियाउया ? अनाभोगनिवर्तितायुष्काः?
करते हैं ? अथवा अज्ञात अवस्था में आयुष्य का बंध
करते है। गोयमा ! नो आभोगनिव्वत्तियाउया, अणा- गौतम! नो आभोगनिर्वर्तितायुष्काः, अना- गौतम ! जीव ज्ञात अवस्था में आयुष्य का बंध नहीं भोगनिव्वत्तियाउया । एवं नेरइया वि, एवं भोगनिर्वर्तितायुष्काः। एवं नैरयिकाः अपि, एवं करते, अज्ञात अवस्था में आयुष्य का बंध करते हैं। जाव वेमाणिया ॥ यावद् वैमानिकाः।
इसी प्रकार नैरयिक यावत् वैमानिक की वक्तव्यता।
भाष्य
का बंध करता है।
४. एक जीव एक साथ एक आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है।" ५. आयुष्य बंध के साथ जाति आदि छह विषयों का निर्धारण होता
१. सूत्र १०६
आयुष्य के विषय में कुछ नियमों का निर्देश पूर्व शतकों में हो चुका है। उदाहरणस्वरूप -
१. परलोक में जाने वाला जीव आयुष्य का बंध करके जाता है।'
२. आयुष्य का बंध पूर्व जन्म-भावी जन्म की अपेक्षा पूर्व अर्थात् वर्तमान में होता है।
३. जीव को जिस योनि में उत्पन्न होना है, उसी से संबद्ध आयुष्य
प्रस्तुत सूत्र में 'आयुष्य का बंध अज्ञात अवस्था में होता है' इस नियम का निर्देश है। आयुष्य का बंध कब होता है, इसकी जानकारी उसे नहीं होती, जिसके आयुष्य-बंध हो रहा है, हो चुका है अथवा होगा।
कक्कस-अक्कसवेयणीय-पदं
कर्कश-अकर्कश-वेदनीय-पदम् कर्कश-अकर्कश-वेदनीय-पद १०७. अत्थि णं भंते ! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा अस्ति भदन्त! जीवानां कर्कशवेदनीयानि १०७. 'भन्ते ! क्या जीवों के कर्कशवेदनीय कर्म होते हैं? कम्मा कज्जति? कर्माणि क्रियन्ते?
हां, होते हैं। हंता अत्थि॥
हन्त अस्ति।
१०८. कहण्णं भंते ! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कथं भदन्त! जीवानां कर्कशवेदनीयानि कर्माणि १०८. भन्ते ! जीवों के कर्कशवेदनीय कर्म किस कारण से कम्मा कज्जंति? क्रियन्ते?
होते हैं? गोयमा ! पाणाइवाएणं जाव मिच्छादसण- गौतम ! प्राणातिपातेन यावत् मिथ्यादर्शन- गौतम! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य से होते सल्लेणं-एवं खलु गोयमा! जीवाणं कक्कस- शल्येन–एवं खलु गौतम! जीवानां कर्कश- हैं। गौतम ! इस प्रकार जीवों के कर्कश वेदनीय कर्म -वेयणिज्जा कम्मा कज्जंति ॥ वेदनीयानि कर्माणि क्रियन्ते।
होते हैं।
१०६. भन्ते ! क्या नैरयिकों के कर्कशवेदनीय कर्म होते
१०६. अत्थि णं भंते ! नेरइयाणं कक्कसवेय-
णिज्जा कम्मा कज्जति? १.भ.५/५६ २. वही, ५/६०। ३. वही, ५/६२।
अस्ति भदन्त ! नैरयिकाणां कर्कशवेदनीयानि कर्माणि क्रियन्ते?
४. वही, ५/५। ५. वही, ६/१५११
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org