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पंचमो उद्देसो : पांचवां उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
जोणीसंगह-पदं
योनिसंग्रह-पदम् ६६.रायगिहे जाव एवं वयासी-खहयरपंचिंदिय- राजगृहे यावद् एवमवादीत्-खेचरपञ्चे- तिरिक्खजोणियाणं भंते ! कतिविहे जोणी- न्द्रिय-तिर्यग्योनिकानां भदन्त ! कतिविधः संगहे पण्णते?
योनिसंग्रहः प्रज्ञप्तः? गोयमा! तिविहे जोणीसंगहे पण्णत्ते, तं गौतम! त्रिविधः योनिसंग्रहः प्रज्ञप्तः, तद् जहा-अंडया, पोयया, संमुच्छिमा । एवं जहा यथा-अण्डजाः, पोतजाः, सम्मूर्छिमाः । एवं जीवाभिगमे जाव नो चेव णं ते विमाणे यथा जीवाभिगमे यावन् नो चैव तानि विमानानि वीतीवएज्जा, एमहालया णं गोयमा! ते व्यतिव्रजेयुः, इयन्महन्ति गौतम! तानि विमाविमाणा पण्णत्ता॥
नानि प्रज्ञप्तानि।
योनिसंग्रह-पद ६६. 'राजगृह नगर में महावीर का समवसरण यावत् गौतम ने कहा-भन्ते ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों का योनि-संग्रह कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम ! तीन प्रकार का योनि-संग्रह प्रज्ञप्त है, जैसे--- अण्डज, पोतज, सम्मूर्छिम। इस प्रकार यह प्रकरण जीवाभिगम की भाति वक्तव्य है यावत् वे उन विमानों का अतिक्रमण नहीं करते । गौतम! वे विमान इतने महान् प्रज्ञप्त हैं।
भाष्य १. सूत्र ६६
संक्षेप है। इसके अन्तिम सूत्र में अनुत्तरविमान के विमानों की विशालता का प्रस्तुत सूत्र जीवाजीवाभिगमे के ३६ (३/१४७-१८२) सूत्रों का
. प्रतिपादन किया गया है।
१००. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।।
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ।
१००. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है।
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