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चउत्थो उद्देसो : चौथा उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
संसारत्थजीव-पदं
संसारस्थजीव-पदम्
संसारस्थ-जीव-पद ६७. रायगिहे नयरे जाव एवं वयासि-कतिविहा राजगृहे नगरे यावत् एवमावादीत्-कति- ६७. ' राजगृह नगर में महावीर का समवसरण यावत् णं भंते ! संसारसमावन्नगा जीवा पण्णत्ता? विधाः भदन्त! संसारसमापन्नकाः जीवाः गौतम ने कहा-भन्ते ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रज्ञप्ताः ?
प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ? गोयमा ! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा गौतम ! षड्विधाः संसारसमापन्नकाः जीवाः गौतम ! संसारसमापन्नक जीव छह प्रकार के प्रज्ञप्त पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया जाव तस- प्रज्ञप्ताः, तद् यथा-पृथ्वीकायिकाः यावत् हैं, जैसे-पृथ्वीकायिक यावत् त्रसकायिक। इस काइया। एवं जहा जीवाभिगमे जाव एगे जीवे त्रसकायिकाः । एवं यथा जीवाभिगमे यावद् प्रकार यह प्रकरण जीवाभिगम की भांति वक्तव्य एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेइ, तं जहा- एकः जीवः, एकेन समयेन एकां क्रियां प्र- है यावत् एक जीव एक समय में एक क्रिया करता सम्मत्तकिरियं वा, मिच्छत्तकिरियं वा॥ करोति, तद्यथा-सम्यक्त्वक्रियां वा, मिथ्या- है, जैसे- सम्यक्त्व-क्रिया अथवा मिथ्यात्व-क्रिया।
त्वक्रियां वा।
भाष्य
१. सूत्र ६७
प्रस्तुत सूत्र जीवाजीवाभिगमे के २६ (३/१८३-२११) सूत्रों का संक्षेप है। अविशुद्ध लेश्या और विशुद्ध लेश्या के बारह सूत्र भगवई, ६/१६८,१६६ में आ चुके हैं। अन्तिम सूत्र सम्यक्त्व-क्रिया और मिथ्यात्व क्रिया
से संबंधित है-अन्यतीर्थिकों के अनुसार एक जीव एक समय में दो क्रियाएंसम्यक्त्व-क्रिया और मिथ्यात्व-क्रिया करता है। भगवान महावीर ने इसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने प्रतिपादन किया-एक समय में एक जीव सम्यक्त्व और मिथ्यात्व दोनों क्रियाएं नहीं करता।
६५. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।
८. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है।
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