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भगवई
३५७ वेदेति--अण्णम्मि समए वेदेति, अण्णम्मि वेदयन्ति-अन्यस्मिन् समये वेदयन्ति, अन्यसमए निज्जरेंति । अण्णे से वेदणासमसए, स्मिन् समये निर्जरयन्ति । अन्यः तस्य वेदनाअण्णे से निज्जरासमए । से तेणद्वेणं जाव न समयः, अन्य तस्य निर्जरासमयः। तत् से वेदणासमए, न से निज्जरासमए । तेनार्थेन यावन् न सः वेदनासमयः, न सः
निर्जरासमयः ।
श.७: उ.३ :सू.७४-६४ वेदना नहीं करते-अन्य समय में वेदना करते हैं, अन्य समय में निर्जरा करते हैं। वेदना का समय अन्य है, निर्जरा का समय अन्य है। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् जो निर्जरा का समय है; वह वेदना का समय नहीं है। जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय नहीं है।
६०. नेरइयाणं भंते ! जे वेदणासमए से निज्ज- नैरयिकाणां भदन्त ! यः वेदनासमयः सः १०. भन्ते ! क्या नैरयिकों के जो वेदना का समय है वही रासमए ? जे निज्जरासमए से वेदणासमए ? निर्जरासमयः? यः निर्जरासमयः सः वेदना- निर्जरा का समय है, जो निर्जरा का समय है वही समयः?
वेदना का समय है। गोयमा ! णो इणढे समढे ॥ गौतम ! नायमर्थः समर्थः ॥
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है।
६१. से केणटेणं भंते ! एव वुच्चइ-नेरइया णं
जे वेदणासमए न से निज्जरासमए ? जे निज्जरासमए न से वेदणासमए?
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नैरयिकाणां ६१. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- नैरयिकों यः वेदनासमयः न स निर्जरासमयः ? यः के जो वेदना का समय है वह निर्जरा का समय नहीं निर्जरासमयः न स वेदनासमयः ?
है? जो निर्जरा का समय है वह वेदना का समय नहीं
गोयमा ! नेरइया णं जं समयं वेदेति नो तं गौतम ! नैरयिकाः यं समयं वेदयन्ति नो तं समयं निज्जरेंति, जं समयं निज्जरेंति नो तं समयं निर्जरयन्ति, यं समयं निर्जरयन्ति नो समयं वेदेति-अण्णम्मि समए वेदेति, अण्ण- तं समयं वेदयन्ति । अन्यस्मिन् समये वेदम्मि समए निज्जरेंति। अण्णे से वेदणासमए, यन्ति, अन्यस्मिन् समये निर्जरयन्ति । अन्यः अण्णे से निज्जरासमए। से तेणटेणं जाव न स वेदनासमयः, अन्यः स निर्जरासमयः । तत् से वेदणासमए॥
तेनार्थेन यावन् न स वेदनासमयः।
गौतम ! नैरयिक जिस समय वेदना करते हैं उस समय निर्जरा नहीं करते, जिस समय निर्जरा करते हैं उस समय वेदना नहीं करते है-अन्य समय में वेदना करते हैं, अन्य समय में निर्जरा करते हैं। वेदना का समय अन्य है, निर्जरा का समय अन्य है। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है।
६२. एवं जाव वेमाणियाणं ॥
एवं यावद् वैमानिकानाम्।
६२. इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता।
भाष्य १. सूत्र ७४-६२
पश्चात् कर्म नोकर्म बन जाता है। प्रस्तुत आलापक में वेदना और नोकर्म का
अन्तर बतलाया गया है। वेदना कर्म की होती है, निर्जरा कर्म की नहीं होती। वेदना और निर्जरा
फल-विपाक के पश्चात् कर्म की फलदान-शक्ति समाप्त हो जाती है। वह फिर कर्म की अनेक अवस्थाएं हैं। उनमें प्रथम अवस्था है बंध और
कर्म नहीं रहता, नोकर्म बन जाता है। उसकी निर्जरा होती है, इसलिए वेदना अन्तिम अवस्था है उदय। उदयकाल में कर्म का वेदन होता है।' वेदन के ।
का समय पृथक् होता है और निर्जरा का समय पृथक् ।
सासय-असासय-पदं
शाश्वत-अशाश्वत-पदम्
शाश्वत-अशाश्वत-पद ६३. नेरइया णं भंते ! किं सासया? असासया? नैरयिकाः भदन्त ! किं शाश्वताः? अशाश्वताः? ६३.' भन्ते ! क्या नैरयिक शाश्वत है ? अशाश्वत है ? गोयमा ! सिय सासया, सिय असासया ॥ गौतम ! स्यात् शाश्वताः, स्याद् अशाश्वताः। गौतम ! स्यात् (किसी अपेक्षा से) शाश्वत हैं, स्यात्
अशाश्वत हैं।
६४. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-नेरइया तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नैरयिकाः ६४. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैसिय सासया ? सिय असासया? स्यात् शाश्वताः? स्याद् अशाश्वताः? नैरयिक स्यात् शाश्वत हैं ? स्यात् अशाश्वत् हैं ? गोयमा ! अब्दोच्छित्तिनयट्ठयाए सासया, गौतम! अव्युच्छित्तिनयार्थतया शाश्वताः व्यु- गौतम ! अव्युच्छित्ति-नय की अपेक्षा शाश्वत हैं,
वोच्छित्तिनयट्ठयाए असासया। से तेणटेणं जाव च्छित्तिनयार्थतया अशाश्वताः । तत् तेनार्थेन व्युच्छित्ति-नय की अपेक्षा अशाश्वत हैं, इस अपेक्षा से १. भ. वृ.७/७५-उदयप्राप्तं कर्म वेदना धर्मधर्मिणोरभेदविवक्षणात् । २. वही, ७/७५-वेदितरसं कर्म नोकर्म ।
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