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________________ श.७: उ.३ : सू.८०-८६ ३५६ भगवई १०. से केणटेण मंते ! एवं वुच्चइ-जं वेदेंसु तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-यद् ८०. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैनो तं निज्जरेंसु ? जं निज्जरेंसु नो तं वेदें? अवेदिषुः नो तन् निरजारिषुः? यन् निरजारिषुः जिसकी वेदना की, उसकी निर्जरा नहीं की ? जिसकी नो तद् अवेदिषुः। निर्जरा की, उसकी वेदना नहीं की? गोयमा ! कम्मं वेदेंसु, नोकम्मं निज्जरेंसु । गौतम ! कर्म अवेदिषुः, नोकर्म निरजारिषुः । गौतम ! वेदना कर्म की की और निर्जरा नोकर्म की से तेणटेणं गोयमा । जाव नो तं वेदेंसु ॥ तत् तेनार्थेन गौतम! यावत्नो तद् अवेदिषुः । की। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् जिसकी निर्जरा की, उसकी वेदना नहीं की। १. एवं नेरइया वि, एवं जाव वेमाणिया॥ एवं नैरयिकाः अपि, एवं यावद् वैमानिकाः। ८१. इसी प्रकार नैरयिक यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। १२. से नूणं भंते । जं वेदेति तं निज्जरेंति? तन्नूनं भन्दत ! यवेदयन्ति तन् निर्जरयन्ति? जं निज्जरेंति तं वेदेति? यन् निर्जरयन्ति तद् वेदयन्ति? २. भन्ते ! क्या जिसकी वेदना करते हैं, उसकी निर्जरा करते हैं, जिसकी निर्जरा करते हैं, उसकी वेदना करते गोयमा ! णो इणढे समढे ॥ गौतम ! नायमर्थः समर्थः । गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ६३. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जाव नो तं तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-यावन् नो वेदेति? तद् वेदयन्ति? गोयमा ! कम्मं वेदेति, नोकम्मं निज्जरेंति। गौतम ! कर्म वेदयन्ति, नोकर्म निर्जरयन्ति। से तेणद्वेणं गोयमा ! जाव नो तं वेदेति ॥ तत् तेनार्थेन गौतम ! यावन् नो तद् वेदयन्ति। ८३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-यावत् जिसकी निर्जरा करते हैं उसकी वेदना नहीं करते? गौतम ! वेदना कर्म की करते हैं, निर्जरा नोकर्म की करते हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा हैयावत् जिसकी निर्जरा करते हैं, उसकी वेदना नहीं करते। ८४. एवं नेरइया वि जाव वेमाणिया ॥ एवं नैरयिकाः अपि यावद् वैमानिकाः। ८४. इसी प्रकार नैरयिकों यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। ८५. से नूणं भंते ! जं वेदिस्संति तं निज्ज- तन्नूनं भदन्त ! यद् वेदिष्यन्ति तन् निर्जरिष्य- ८५. भन्ते! क्या जिसकी वेदना करेंगे, उसकी निर्जरा रिस्संति? जं निजरिस्संति तं वेदिस्संति? न्ति ? यन् निर्जरिष्यन्ति तद् वेदिष्यन्ति ? करेंगे, जिसकी निर्जरा करेंगे, उसकी वेदना करेंगे? गोयमा ! णो इणढे समढे ॥ गौतम ! नायमर्थः समर्थः । गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। १६. से केणटेणं जाव नो तं वेदिस्संति? तत् केनार्थेन यावन् नो तद् वेदिष्यन्ति? गोयमा ! कम्मं वेदिस्संति, नोकम्म निज्ज- गौतम ! कर्म वेदिष्यन्ति, नोकर्म निर्जरि- रिस्संति । से तेणटेणं जाव नो तं निज्ज- ष्यन्ति। तत् तेनार्थेन यावन् नो तन् निर्जरि- रिस्संति ॥ ष्यन्ति । ८६. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है--यावत् जिसकी निर्जरा करेंगे, उसकी वेदना नहीं करेंगे? गौतम ! वेदना कर्म की करेंगे, निर्जरा नोकर्म की करेंगे। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् जिसकी वेदना करेंगे, उसकी निर्जरा नहीं करेंगे। १७. एवं नेरइया वि जाव वेमाणिया ॥ एवं नैरयिकाः अपि यावद् वैमानिकाः। ८७. इसी प्रकार नैरयिक यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। ५८. से नूणं भंते ! जे वेदणासमए से निज्ज- तन् नूनं भदन्त ! यः वेदनासमयः सः निर्जरा- १८. भन्ते ! क्या जो वेदना का समय है, वही निर्जरा का रासमए ? जे निज्जरासमए से वेदणासमए? समयः? यः निर्जरासमयः सः वेदनासमयः? समय है ? जो निर्जरा का समय है, वही वेदना का समय है? णो इण्टे समढे ॥ नायमर्थः समर्थः । यह अर्थ संगत नहीं है। ८६.से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जे वेदणा- तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-यः वेदना- ८६. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जो समए न से निज्जरासमए ? जे निज्जरासमए समयः न सः निर्जरासमयः ? यः निर्जरा- वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय नहीं है ? जो न से वेदणासमए? समयः न सः वेदनासमयः? निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है ? गोयमा ! जं समयं वेदेति नो तं समयं गौतम ! यं समयं वेदयन्ति नो तं समय गौतम ! जिस समय वेदना करते हैं, उस समय निर्जरा निज्जरेंति, जं समयं निज्जरेंति नो तं समयं निर्जरयन्ति, यं समयं निर्जरयन्ति नो तं समयं नहीं करते । जिस समय निर्जरा करते हैं, उस समय Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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