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भगवई
देव
भवनपति
व्यन्तर
ज्योतिष्क
प्रथम, द्वितीय कल्प
तृतीय, चतुर्थ, पंचम कल्प षष्ठ स्वर्ग से ग्रैवेयक अनुतर विमान
लेश्या
प्रथम चार
"
तेजस
पद्म
शुक्ल
परम शुक्ल
लेश्या और कर्म का परस्पर संबंध है। महाकर्म की अवस्था में
श्या अविशुद्ध होती है और अल्पकर्म की अवस्था में लेश्या विशुद्ध होती है।
गो इगड़े समझे ॥
७५. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जा वेदणा न सा निज्जरा ? जा निज्जरा न सा वेदणा ?
गोमा ! कम्मं वेदणा, नोकम्मं निज्जरा । से तेगद्वेणं गोवमा ! एवं बुच्चइजा वेदणा न सा निम्नरा जा निम्नरा न सा वेदणा ॥
१. पण्ण. १७/५१-५३।
वेदणा - निज्जरा-पदं
वेदना-निर्जरा-पदम्
७४. से नूणं भन्ते ! जा वेदणा सा निज्जरा ? तन्नूनं भदन्त ! या वेदना सा निर्जरा ? या जा निज्जरा सा वेदणा ?
निर्जरा सा वेदना ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः ।
गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ॥
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७७. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ - नेरइयाणं जा वेदणा न सा निज्जरा ? जा निज्जरा न सा वेदना ?
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श. ७: उ. ३ : सू. ६७-७६
कृष्ण लेश्या वाला नैरयिक महाकर्म और नीललेश्या वाला नैरयिक अल्पकर्म होता है। प्रस्तुत आलापक में इस नियम के अपवाद बतलाएं गए हैं। कृष्ण वाला नैरयिक बहुत पुराना है वह अपनी आयु अवधि को बहुत पार कर चुका है। नील लेश्या वाला नैरयिक अभी-अभी उत्पन्न हुआ है।
आयुष्य की स्थिति - कालमान की अपेक्षा कृष्ण लेश्या वाला नैरयिक अल्पकर्म वाला और नील लेश्या वाला नैरयिक महाकर्म वाला होता है। यह स्थिति सापेक्ष नियम सब पर लागू होता है।
प्रस्तुत प्रकरण में महाकर्म और अल्पकर्म का प्रयोग सापेक्ष है। इनका संबंध मुख्यतः आयुष्य और वेदनीय कर्म तथा आयुष्य के सहवर्ती गति, जाति आदि से है।
७६. नेरइयाणं भंते ! जा वेदना सा निज्जरा ? नैरविकाणां भवन्त ! या वेदना सा निर्जरा ?
जा निज्जरा सा वेदणा ?
या निर्जरा सा वेदना ?
गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ॥
गौतम ! नायमर्थः समर्थः ।
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते -या वेदना न सा निर्जरा ? या निर्जरा न सा वेदना ?
गौतम ! कर्म वेदना, नोकर्म निर्जरा ! तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते या वेदना न सा निर्जरा, या निर्जरा न सा वेदना ।
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - नैरयिकाणां या वेदना न सा निर्जरा ? या निर्जरा न सा वेदना ?
गौतम नैरयिकाणां कर्म वेदना, नोकर्म निर्जरा । तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यतेनैरयिकाणां या वेदना न सा निर्जरा, या निर्जरा न सा वेदना ।
वेदना - निर्जरा-पद
७४. भन्ते ! क्या जो वेदना है, वह निर्जरा है, जो निर्जरा
है वह वेदना है ?
गीतम! यह अर्थ संगत नहीं है।
गोयमा ! नेरयाणं कम्मं वेदना, नोकम्मं निज्जरा | से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइनेरझ्याणं जा वेदणा न सा निज्जरा, जा निज्जरा न सा वेदणा ॥
गौतम ! नैरयिकों के वेदना कर्म की होती है, निर्जरा नोकर्म की होती है। गौतम इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है— नैरयिकों के जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं है, जो निर्जरा है वह वेदना नहीं है।
७८. एवं जाव वैमाणियाणं ॥
एवं यावद् वैमानिकानाम् ।
७८. इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता ।
७६. से नूणं भंते ! जं वेदेंसु तं निज्जरेंसु ? जं तन्नूनं भदन्त ! यद् अवेदिषुः तन्निरजारिषुः ? ७६ भन्ते ! क्या जिसकी वेदना की, उसकी निर्जरा की ? निज्जरेंसु तं वेदेंसु ? जिसकी निर्जरा की, उसकी वेदना की ? ऐस हो सकता
यन्निरजारिषुः तद् अवेदिषुः ?
है ?
नायमर्थः समर्थः ।
यह अर्थ संगत नहीं है।
७५. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं है ? जो निर्जरा है वह वेदना नहीं है?
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गौतम ! वेदना कर्म की होती है, निर्जरा नो-कर्म की होती है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - जो वेदना है वह निर्जरा नहीं है, जो निर्जरा है वह वेदना नहीं है।
७६. भन्ते ! क्या नैरयिकों के जो वेदना है, वह निर्जरा है? जो निर्जरा है, वह वेदना है ?
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है।
७७. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैनैरयिकों के जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं है ? जो निर्जरा है वह वेदना नहीं है ?
२. जीवा. ३/११०१-११०४ ।
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