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भगवई
श.७ : उ.३ : सू.६७-७३
३५४ नेरइए अप्पकम्मतराए? नीललेसे नेरइए महा- लेश्यः नैरयिकः अल्पकर्मतरकः? नीललेश्यः कम्मतराए?
नैरयिकः महाकर्मतरकः? गोयमा ! ठितिं पडुच्च । से तेणद्वेणं गोयमा! गौतम ! स्थितिं प्रतीत्य । तत् तेनार्थेन गौतम! जाव महाकम्मतराए॥
यावन् महाकर्मतरकः।
लेश्या वाला नैरयिक अल्पतर कर्म वाला और नीललेश्या वाला नैरयिक महत्तर कर्म वाला हो सकता है ? गौतम ! स्थिति की अपेक्षा से। गौतम ! इसलिए यह कहा जा रहा है यावत् नील लेश्या वाला नैरयिक महत्तर कर्म वाला हो सकता है।
६६. सिय भंते! नीललेसे नेरइए अप्पकम्मतराए? स्याद् भदन्त ! नीललेश्यः नैरयिकः अल्पकर्म- ६६. भन्ते ! स्यात् नीललेश्या वाला नैरयिक अल्पतर कर्म काउलेसे नेरइए महाकम्मतराए? तरकः? कापोतलेश्यः नैरयिकः महाकर्म- वाला और कापोत लेश्या वाला नैरयिक महत्तर कर्म तरकः?
वाला हो सकता है? हंता सिय॥ हन्त स्यात् ।
हाँ, स्यात् हो सकता है।
७०. से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-नीललेसे तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नीललेश्यः ७०. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- नील
नेरइए अप्पकम्मतराए ? काउलेसे नेरइए महा- नैरयिकः अल्पकर्मतरकः ? कापोतलेश्यः लेश्या वाला नैरविक अल्पतर कर्म वाला और कापोत कम्मतराए ? नैरयिकः महाकर्मतरकः?
लेश्या वाला नैरयिक महत्तर कर्म वाला हो सकता है ? गोयमा ! ठितिं पडुच्च। से तेणटेणं गोयमा ! गौतम ! स्थितिं प्रतीत्य । तत् तेनार्थेन गौतम! गौतम ! स्थिति की अपेक्षा से। गौतम ! इसलिए यह जाव महाकम्मतराए ॥ यावन् महाकर्मतरकः।
कहा जा रहा है यावत् कापोतलेश्या वाला नैरयिक महत्तर कर्म वाला हो सकता है।
७१. एवं असुरकुमारे वि, नवरं-तेउलेसा अ- एवंअसुरकुमारेऽपि, नवरं-तेजोलेश्या अभ्य- ७१. असुरकुमार की वक्तव्यता भी इसी प्रकार है। विशेष
महिया। एवं जाव वेमाणिया। जस्स जइ धिका। एवं यावद् वैमानिकाः। यस्य यावत्यः यह है कि असुरकुमार में तेजोलेश्या वक्तव्य है। इस लेस्साओ तस्स तत्तिया भाणियवाओ। जोइ- लेश्याः तस्य तावत्यः भणितव्याः। ज्योति- प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। जिसमें जितनी सियस्स न भण्णइ जावषिकस्य न भण्यते यावत्
लेश्याएं हैं, उतनी वक्तव्य हैं। ज्योतिष्क देवों में केवल तेजोलेश्या होती है, इसलिए वह इस प्रकरण में वक्तव्य नहीं है। यावत्
७२. सिय भंते ! पम्हलेस्से वेमाणिए अप्प- स्याद् भदन्त ! पद्मलेश्यः वैमानिकः अल्प- ७२. भन्ते ! स्यात् पद्मलेश्या वाला वैमानिक अल्पतर कम्मतराए ? सुक्कलेस्से वेमाणिए महा- कर्मतरकः? शुक्ललेश्यः वैमानिकः महाकर्म- कर्म वाला और शुक्ल लेश्या वाला वैमानिक महत्तर कम्मतराए? तरकः?
कर्म वाला हो सकता है? हंता सिय॥ हन्त स्याद् ।
हां, स्यात् हो सकता है।
७३. से केणद्वेणं? गोयमा ! ठितिं पडुच्च। से तेणद्वेणं गोयमा ! जाव महाकम्मतराए॥
तत् केनार्थेन? गौतम ! स्थितिं प्रतीत्य । तत् तेनार्थेन गौतम! यावन् महाकर्मतरकः ।
७३. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से? गौतम ! स्थिति की अपेक्षा से । गौतम ! इसलिए यह कहा जा रहा है। यावत् शुक्ललेश्या वाला वैमानिक महत्तर कर्म वाला हो सकता है।
भाष्य
तृतीय
कापोत वाले अधिक और नील वाले अल्प
चतुर्थ
नील
१. सूत्र ६७-७३
लेश्या के दो प्रकार हैं--द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या ।' द्रव्य लेश्या पौद्गलिक है; अतः वह वर्ण, गंध, रस और स्पर्शयुक्त होती है। प्रस्तुत आलापक में द्रव्य लेश्या विवक्षित है। नरक में लेश्या-प्राप्ति का क्रम इस प्रकार है
पंचम
नील वाले अधिक, कृष्ण वाले अल्प कृष्ण परम कृष्ण
सप्तम
नरक
लेश्या
प्रथम,द्वितीय
कापोत
देवों में लेश्या-प्राप्ति का क्रम इस प्रकार है
१. भग, १/३७-३८, १/६०-१००, १/१०२ का भाष्य द्रष्टव्य है।
२. जीवा. ३/६८-१०२॥
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