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भगवई
श.७: उ.३ :सू.६३-६५ ६३. जइणं भंते ! गिम्हासु वणस्सइकाइया सव- यदि भदन्त! ग्रीष्मेषु वनस्पतिकायिकाः सर्वा- ६३. ' भन्ते ! यदि वनस्पतिकायिक जीव ग्रीष्म ऋतु में प्पाहारगा भवंति, कम्हा णं भंते ! गिम्हासु ल्पाहारकाः भवन्ति, कस्मात् भगवन्! ग्रीष्मेषु सबसे अल्प आहार करते हैं, तो भन्ते ! क्या कारण बहवे वणस्सइकाइया पत्तिया, पुफिया, बहवः वनस्पतिकायिकाः पत्रिताः, पुष्पिताः, है-ग्रीष्म ऋतु में अनेक वनस्पतिकायिक जीव पत्रों फलिया, हरियगरेरिज्जमाणा, सिरीए अतीव- फलिताः, हरितकरेरीज्यमाणाः, श्रिया अतीव- और पुष्पों से आकीर्ण, फलों से लदे हुए, हरितिमा से अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिटुंति? अतीव उपशोभमानाः-उपशोभमानाः तिष्ठ- दीप्यमान और वनश्री से अतीव-अतीव उपशोभमान
उपशोभमान होते हैं ? गोयमा ! गिम्हासु णं बहवे उसिणजोणिया गौतम! ग्रीष्मेषु बहवः उष्णयोनिकाः जीवाश्च गौतम! ग्रीष्म ऋतु में अनेक उष्णयोनिक जीव और जीवा य, पोग्गला यवणस्सइकाइयत्ताए वक्क- पुद्गलाश्च वनस्पतिकायिकतया अवक्रामन्ति, पुद्गल वनस्पतिकायिक जीव के रूप में उत्पन्न होते हैं मंति, विउक्कमंति, चयंति, उववज्जति। एवं व्युत्क्रान्ति, च्यवन्ति, उपपद्यन्ते । एवं खलु और विनष्ट होते हैं, च्युत होते हैं और उत्पन्न होते खलु गोयमा! गिम्हासु बहवे वणस्सइकाइया गौतम! ग्रीष्मेषु बहवः वनस्पतिकायिकाः हैं। गौतम ! इस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में अनेक पत्तिया, पुफिया, फलिया, हरियगरेरिज्ज- पत्रिताः, पुष्पिताः, फलिताः, हरितकरेरीज्य- वनस्पतिकायिक जीव पत्रों और पुष्पों से आकीर्ण, फलों माणा, सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा- माणाः श्रिया अतीव-अतीव उपशोभमानाः- से लदे हुए, हरितिमा से दीप्यमान और वनश्री से उवसोभेमाणा चिट्ठति॥ उपशोभमानाः तिष्ठन्ति।
अतीव-अतीव उपशोभमान-उपशोभमान होते हैं।
भाष्य
१. सूत्र ६३
नहीं है। उत्पत्ति की दृष्टि से वनस्पति अनेक प्रकार की होती है। कुछ पौधे । उष्णयोनिक होते हैं, वे ग्रीष्म प्रदेश में जल न मिलने पर भी फलते-फूलते हैं। राम इसलिए सबसे अल्प आहार मिलने पर भी उनका फलना-फूलना अस्वाभाविक
रेरिज्जमाण-दीप्यमान । रेज धातु का अर्थ 'दीपना' है।'
६४. से नूणं भंते ! मूला मूलजीवफुडा, कंदा तन्नूनं भदन्त ! मूलानि मूलजीवस्फुटानि, ६४. 'भन्ते ! क्या मूल मूल के जीव से स्पृष्ट, कंद कंद के कंदजीवफुडा, खंधाखंधजीवफुडा, तया तया- कन्दाः, कन्दजीवस्फुटाः, स्कन्धाः स्कन्ध- जीव से स्पृष्ट, स्कन्ध (तना) स्कन्ध के जीव से स्पृष्ट, जीवफुडा, साला सालजीवफुडा, पवाला जीवस्फुटाः, त्वचः त्वग्जीवस्फुटाः सालाः, त्वचा (छाल) त्वचा के जीव से स्पृष्ट, शाखा शाखा के पवालजीवफुडा, पत्ता पत्तजीवफुडा, पुष्फा सालाजीवस्फुटाः, प्रवालाःप्रवालजीवस्फुटाः, जीव से स्पृष्ट, प्रवाल (कोंपल) प्रवाल के जीव से पुष्फजीवफुडा, फला फलजीवफुडा, बीया पत्राणि पत्रजीवस्फुटाानि, पुष्पाणि पुष्पजीव- स्पृष्ट, पत्र पत्र के जीव से स्पृष्ट, पुष्प पुष्प के जीव से बीयजीवफुडा?
स्फुटानि, फलानि, फलजीवस्फुटानि, बीजानि स्पृष्ट, फल फल के जीव से स्पृष्ट और बीज बीज के बीजजीवस्फुटानि?
जीव से स्पृष्ट है ? हंता गोयमा! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया हन्त गौतम! मूलानि मूलजीवस्फुटानि यावत् हां, गौतम ! मूल मूल के जीव स्पृष्ट यावत् बीज बीज बीयजीवफुडा॥ बीजानि बीजजीवस्फुटानि।
के जीव स्पृष्ट है।
६५. जइ णं भंते ! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया यदि भदन्त ! मूलानि मूलजीवस्फुटानि यावत् ६५. भन्ते! यदि मूल मूल के जीव से स्पृष्ट यावत् बीज बीयजीवफुडा, कम्हा णं मंते ! वणस्सइकाइया बीजानि बीजजीवस्फुटानि, कस्माद् भदन्त ! बीज के जीव से स्पृष्ट है तो भन्ते! वनस्पतिकायिक आहारेंति ? कम्हा परिणामेंति? वनस्पतिकायिकाः आहरन्ति ? कस्मात् जीव कैसे आहार करते हैं और कैसे उसे परिणत परिणमयन्ति?
करते हैं ? गोयमा! मूला मूलजीवफुडा पुढवीजीवपडि- गौतम! मूलानि मूलजीवस्फुटानि पृथ्वीजीव- गौतम! मूल मूल के जीव से स्पृष्ट और पृथ्वी के जीव बद्धा, तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति। प्रतिबद्धानि, तस्माद् आहरन्ति तस्मात् परि- से प्रतिबद्ध होते हैं। इस हेतु से वे आहार करते हैं कंदा कंदजीवफुडा मूलजीवपडिबद्वा, तम्हा णमयन्ति। कन्दाः कन्दजीवस्फुटाः मूलजीव- और उसे परिणत करते हैं। कंद कंद के जीव से स्पृष्ट आहारेंति, तम्हा परिणामेंति। एवं जाव बीया प्रतिबद्धाः, तस्माद् आहरन्ति, तस्मात् परिण- और मूल के जीव से प्रतिबद्ध होते हैं । इस हेतु से वे बीयजीवफुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा आ- मयन्ति। एवं यावत् बीजानि बीजजीवस्फुटानि, आहार करते हैं और उसे परिणत करते हैं। इस प्रकार हारेति तम्हा परिणामेंति ॥
फलजीवप्रतिबद्धानि तस्माद् आहारन्ति, यावत् बीज बीज के जीव से स्पृष्ट और फल के जीव तस्मात् परिणमयन्ति।
से प्रतिबद्ध होते हैं। इस हेतु से वे आहार करते हैं
और उसे परिणत करते हैं। १. आप्टे०रेज-Toshine
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