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________________ भगवई श.७ : उ.२ : सू.४६-५२ ३४६ ४६. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा। गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो सव्व- गौतम! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः नो सर्व- मूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी, मूलगुणप्रत्याख्यानिनः, देशमूलगुणप्रत्याख्याअपच्चक्खाणी वि॥ निनः, अप्रत्याख्यानिनः अपि। ४६. पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीवों की पृच्छा। गौतम! पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीव सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी नहीं है, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं। ४७. मणुस्सा णं भंते! किं सव्वमूलगुणपच्च- मनुष्याः भदन्त! किं सर्वमूलगुणप्रत्याख्या- ४७. भन्ते! मनुष्य क्या सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं? क्खाणी? देसमूलगुणपच्चक्खाणी? अपच्च- निनः? देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनः ? अप्रत्या- देशमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं? अप्रत्याख्यानी हैं? क्खाणी? ख्यानिनः? गोयमा! मणुस्सा सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी वि, गौतम! मनुष्याः सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानिनः गौतम! मनुष्य सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान भी हैं, देशमूलगुणदेसमूलगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी अपि, देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनः अपि, अप्रत्या- प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं। ख्यानिनः अपि। वि॥ ४८. वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा नेरइया। वानमन्तर-ज्यौतिष-वैमानिकाः यथा नैर- ४८. वानमन्तर, ज्योतिष्त और वैमानिक देव नैरयिक यिकाः। जीवों की भांति वक्तक ४६. एएसि णं भंते! जीवाणं सव्वमूलगुण- एतेषां भदन्त! जीवानां सर्वमूलगुणप्रत्याख्या- ४६. भन्ते! इन सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी, देशमूलगुणप्रत्यापच्चक्खाणीणं, देसमूलगुणपच्चक्खाणीणं, निनां, देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनाम्, अप्रत्या- ख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किनसे अल्प, अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहितो अप्पा ख्यानिनां च कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा? अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? बहुकाः वा? तुल्याः वा? विशेषाधिकाः वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सव्वमूलगुणपच्च- गौतम! सर्वस्तोकाः जीवाः सर्वमूलगुणप्रत्या- गौतम! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी जीव सबसे अल्प हैं, क्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी असंखे- ख्यानिनः, देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनः असंख्ये- देशमूलगुणप्रत्याख्यानी उनसे असंख्येयगुना अधिक हैं, ज्जगुणा, अपच्चक्खाणी अणंतगुणा ॥ यगुणाः, अप्रत्याख्यानिनः अनन्तगुणाः। अप्रत्याख्यानी उनसे अनन्तगुना अधिक हैं। ५०. एएसिणं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं एतेषां भदन्त! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां ५०. भन्ते! इन पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीवों में पृच्छा । पुच्छा। पृच्छा। गोयमा! सव्वत्थोवा पंचिदियतिरिक्खजोणिया गौतम! सर्वस्तोकाः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः गौतम! देशमूलगुणप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी अ- देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनः, अप्रत्याख्यानिनः, जीव सबसे अल्प हैं, अप्रत्याख्यानी उनसे असंख्येयसंखेज्जगुणा ॥ असंख्येयगुणाः । गुना अधिक है। ५१. एएसि णं भंते! मणुस्साणं सव्वमूलगुण- एतेषां भदन्त! मनुष्याणां सर्वमूलगुणप्रत्या- ५१.भन्ते! इन सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी मनुष्यों की पृच्छा। पच्चक्खाणीणं पुच्छा। ख्यानिनां पृच्छा। गोयमा! सव्वत्थोवा मणुस्सा सव्वमूलगुण- गौतम! सर्वस्तोकाः मनुष्याः सर्वमूलगुण- गौतम! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे अल्प पच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी संखे- प्रत्याख्यानिनः, देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनः हैं, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी मनुष्य उनसे संख्येयगुना ज्जगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा ॥ संख्येयगुणाः, अप्रत्याख्यानिनः असंख्येय- अधिक हैं, अप्रत्याख्यानी मनुष्य उनसे असंख्येयगुना अधिक हैं। गुणाः। ५२. जीवाणं भंते! किं सबुत्तरगुणपच्चक्खाणी? जीवाः भदन्त! किं सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानिनः? ५२. भन्ते! जीव क्या सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं ? देशो देसुत्तरगुणपच्चखाणी? अपच्चक्खाणी? देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानिनः? अप्रत्याख्यानिनः? तरगुणप्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं ? गोयमा! जीवा सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणी वि, गौतम! जीवाः सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानिनः गौतम! जीव सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, देशोत्तरदेसुत्तरगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी अपि, देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानिनः अपि, अ- गुण प्रत्याख्यानी भी है, अप्रत्याख्यानी भी हैं। वि। प्रत्याख्यानिनः अपि। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य एवं चेव। पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः मनुष्याश्च एवं चैव। पंचेन्द्रियतिर्यगयोनिक जीव और मनुष्य इसी प्रकार सेसा अपच्चक्खाणी जाव वेमाणिया ॥ शेषाः अप्रत्याख्यानिनः यावद् वैमानिकाः। वक्तव्य हैं। वैमानिक देवों तक शेष सभी जीव अ प्रत्याख्यानी हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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