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भगवई
सम्यक्-दर्शन के अभाव में भी तीन योग, तीन करण से सब जीवों के वध का प्रत्याख्यान करते थे, उन्हीं को लक्ष्य में रखकर इस सूत्र की रचना की गईयह संभावना की जा सकती है।
दुष्प्रत्याख्यान
मिथ्या दर्शन
तीन करण तीन योग से प्रत्याख्यान इसका फलित है - मिथ्या प्रत्याख्यान
पच्चक्खाण-पदं
२६. कतिविहे णं भंते! पच्चक्खाणे पण्णत्ते? गोयमा ! दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा मूलगुणपच्चक्खाणेय, उत्तरगुणपच्चक्खाणे
य ॥
मिथ्या प्रत्याख्यान करने वाला साधु कहलाने पर भी वास्तव में साधु नहीं होता। वह असंयत, अविरत, अप्रतिहत-पाप-कर्म तथा अप्रत्याख्यात-पाप
सुप्रत्याख्यान
सम्यग् दर्शन
तीन करण तीन योग से प्रत्याख्यान इसका फलित है -- सम्यग् प्रत्याख्यान
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श.७ : उ.२ : सू.२७-३३
- कर्म वाला, सक्रिय, असंवृत - एकान्तदण्ड और एकान्त बाल होता है। वह वास्तव में साधु नहीं है और अपने आपको साधु कहता है । इसीलिए उसके वचन को असत्य वचन कहा गया है। सम्यक् प्रत्याख्यान करने वाला वास्तव में साधु होता है, इसलिए उसके सर्व जीवों के वध के प्रत्याख्यान का वचन सत्य होता है। वह संयत, विरत, प्रतिहत पाप कर्म तथा प्रत्याख्यात पाप-कर्म वाला, अक्रिय, संवृत्त और एकान्त पण्डित होता है।
शब्द-विमर्श
३२. देसमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पणते ?
गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - थूलाओ पाणावायाओ वेरमणं, धूलाओ मुसावायाओ वेरगणं, धूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमण, धूलाओ मेहुणाओ वेरमणं, धूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥
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३०. मूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे मूलगुत्याख्यानं भदन्त! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? पण्णत्ते ?
गोयमा दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सच्च- गतम! द्विविधं प्रज्ञप्तम् तद् यथा-सर्वमूलगुणपच्चक्खाणे य, देसमूलगुणपच्चक्खाणे मूलगुणप्रत्याख्यानं च, देशमूलगुणप्रत्याख्यानं
य ॥
च।
प्रत्याख्यान पदम्
कतिविधं भदन्त ! प्रत्याख्यानं प्रज्ञप्तम् ? गौतम! द्विविधं प्रत्याख्यानं प्रज्ञाप्तम्, तद् यथा - मूलगुणप्रत्याख्यानं च, उत्तरगुणप्रत्याख्यानं
च।
एकान्तदण्ड--सर्वथा दूसरे जीवों का वध करने वाला एकान्तबाल-सर्वथा विरति-शून्य एकान्तपण्डित सर्वथा विरति सम्पन्न महाती
३१. सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे सर्वगुणमूलप्रत्याख्यानं भदन्त ! कतिविधं पण्णत्ते ? प्रज्ञप्तम?
गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा सब्बाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओं वेरमणं, सब्बाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥
गौतम पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-सर्वस्मात् प्राणातिपाताद् विरमणम्, सर्वस्मान् गृपावादाद् विरमणम्, सर्वस्माद् अदत्तादानाद् विरमणम्, सर्वस्मान् मैथुनाद् विरमणम्, सर्वस्मात् परिग्रहाद् विरमणम् ।
च।
देशमूलगुणप्रत्याख्यानं भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ?
गौतम ! पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्, तद् यथास्थूलात् प्राणातिपाताद् विरमणम्, स्थूलान् मृषावादाद् विरमणम्, स्थूलाद् अदत्तादानाद् विरमगम्, स्थूलान् मैथुनाद् विरमगम्, स्थूलात् परिग्रहात् विरमणम्।
३३. उत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे उत्तरगुणप्रत्याख्यानं भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञपुष्णते?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सब्बुत्तरगुणपच्चक्खाणे व देसुत्तरगुणपव्यवधाने
प्तम् ? गौतम! द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद् यथा - सर्वोतरगुणप्रत्याख्यानं च, देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानं
य ॥
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प्रत्याख्यान-पद
२६. ' भन्ते ! प्रत्याख्यान के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ? गौतम! प्रत्याख्यान के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-मूलगुणप्रत्याख्यान, उत्तरगुणप्रत्याख्यान ।
३०. भन्ते! मूलगुण प्रत्याख्यान के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान, देशमूलगुणप्रत्याख्यान ।
३१. भन्ते! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम! पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे---सर्वप्राणातिपातविरमण, सर्वमृषावादविरमण, सर्वअदत्तादानविरमण, सर्वमैथुनविरमण, सर्वपरिग्रहविरमण ।
३२. भन्ते! देशमूलगुणप्रत्याख्यान के कितने प्रकार प्रज्ञप्त है ?
गौतम! पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- स्थूलप्राणातिपातविरमण, स्थूलमृषावादविरमण, स्थूलअदत्तादानविरमण, स्थूलमेथुनविरमण, स्थूलपरिग्रहविरमण
३३. भन्ते! उत्तरगुणप्रत्याख्यान के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं?
गीतम! दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- सर्वउत्तरगुणप्रत्या ख्यान, देशउत्तरगुणप्रत्याख्यान ।
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