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________________ भगवई २५. अह भंते ! सत्यातीतस्स, सत्यपरिणामियस्स, एसियस्स, वेसियस्स, सामुदाणिवस्स पाण- भोयणस्स के अड़े पण्णले ? गोयमा ! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा निक्खित्तसत्थमुसले ववगयमालावण्णगविलेवणे ववगयय-चय- चत्तदेहं जीव - विप्पजढं, अकयं, अकारियं, असंकप्पियं, अणाहूयं, अकीकडं, अणुद्दिट्ठ, नवकोडीपरिसुद्धं, दसदोसविप्यमुक्कं उग्गमुप्पायणेसनासु परिसुद्धं, वीलिंगाल, वीतधूमं संजोयणादोसविप्पमुक्कं, असुरसुरं, अचवचवं, अदुयं अविलंबियं, अपरिसाडिं, अक्खोवंजणवणाणुलेवणभूयं, संजमजायामायावत्तियं, सं " भारवहण या बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा ! सत्यातीतस्स, सत्यपरिणामियस्स एसियस्स, वेसियस्स, सामुदाणियस्स पाण- भोयणस्स अरे पण्णते । ३३७ अथ भदन्त ! शस्त्रातीतस्य, शस्त्रपरिणामितस्य, एषितस्य, वैशिकस्य, सामुदानिकस्य पान - भोजनस्य कः अर्थः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा निक्षिप्तशस्त्रसतः व्यपगतमालावर्णकवलेपन: व्यप गत-च्युत-च्यावित- त्यक्तदेहं, जीव- विप्रत्यक्तं, अकृतम्, अकारितम्, असंकल्पितम्, अनाहूतम् अक्रीतकृतम्, अनुद्दिष्टं, नवकोटिपरिशुद्धं दशदोषविप्रमुक्तं उद्गमोत्पादनेपणाभ्यः परिशुद्धं, बीताङ्गार, बीतधूमं संयो जनादोषविप्रमुक्तम्, असुरसुरम्, अचपचपम्, अद्भुतम् अविलम्बितम्, अपरिशाटितम्, अक्षोपाज्जन व्रणानुलेपनभूतं संयमयात्रामात्रावृत्तिकं, संयमभारवहनार्थाय बिलमिव पन्नगभूतेन आत्मना आहारमाहरति, एष गौतम ! शस्त्रातीतस्य, शस्त्रपरिणामितस्य, एषितस्य, वैशिकस्य, सामुदानिकस्य, पान- भोजनस्य अर्थः प्रज्ञप्तः । भाष्य १. सूत्र २५ प्रस्तुत सूत्र में आहार करने वाला, आहार का प्रकार, आहार करने की विधि, आहार की मात्रा और आहार का लक्ष्य इस पञ्चक का प्रतिपादन किया गया है। १. आहार करने वाला - आहार करने वाले निर्ग्रन्थ की दो विशेषताएं बतलाई गई हैं - १. वह अपने लिए भोजन नहीं पकाता। प्राचीन काल में रसोई के दो मुख्य घटक थे- अग्नि और मूसल मुनि इनका प्रयोग नहीं करता। २. वह पुष्पमाला, सुगन्धी चूर्ण-प्रयोग और चन्दन के विलेपन से रहित होता है। २. आहार के प्रकार-निर्ग्रन्थ के लिए वही आहार वांछनीय होता है जो जीव-रहित हो । अन्न आदि स्वयं जीव-रहित हो गया हो अथवा पाक-क्रिया द्वारा जीव-रहित किया गया हो। निर्ग्रन्थ के लिए निष्पन्न न किया गया हो और न कराया गया हो । गृहस्थ द्वारा अपने लिए भोजन पकाते समय निर्ग्रन्थ के लिए बनाने का संकल्प न किया गया हो। आहूत न हो- आप सदा मेरे घर से आहार ले, इस प्रकार का आमन्त्रण न दिया गया हो। Jain Education International निर्ग्रन्थ के लिए खरीदा हुआ न हो। निर्ग्रन्थ के उद्देश्य से बनाया गया न हो। नवकोटि परिशुद्ध हो दस दोष-विप्रमुक्त, उद्गम, उत्पादन और उद्गम 19. आधाकर्म २. औद्देशिक एषणा से परिशुद्ध हो उद्गम के सोलह, उत्पादन के सोलह और एषणा के दस दोषों की तालिका इस प्रकार है ३. पूतिकर्म ४. मिश्रजात ५. स्थापना ६. प्राकृतिक ७. प्रादुष्करण ८. क्रीत ६. प्रामित्य १०. परिवर्त ११. अभिहत १२. उदभिन्न १३. मालापहृत १४. आच्छेद्य १५. अनिसृष्ट १६. अध्यवतरक श. ७ : उ.१ : सू. २५ २५. 'भन्ते ! शस्त्रातीत, शस्त्र परिणामित एषणा से प्राप्त, साधुवेश से लब्ध और सामुदानिक पान - भोजन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त है ? For Private & Personal Use Only गौतम! शस्त्र (चाकु आदि) और मूसल का प्रयोग न करने वाला, पुष्पमाला और चन्दन के विलेपन से रहित निर्मन्थ अथवा निर्मन्थी जो आहार च्युत-व्यक्ति और त्यक्त जीव- शरीर वाला, जीव-रहित, साधु के निमित्त न किया गया, न कराया गया, न संकल्पित किया गया, आमन्त्रण - रहित, साधु के निमित्त न खरीदा गया, साधु को उद्दिष्ट कर न बनाया गया, नवकोटि से परिशुद्ध, दस दोष से विप्रमुक्त, उद्गम, उत्पादन और एषणा से परिशुद्ध, अंगार, धूम और संयोजनादोष से विप्रमुक्त है। वैसा आहार करता है तथा 'सुरसुर' और 'बदचव' शब्द न करते हुए, न अधिक शीघ्रता से और न अधिक विलम्ब से भूमि पर नहीं गिराते हुए, गाड़ी के पहिए की धूरी पर किए जाने वाले प्रक्षण और व्रण पर किए जाने वाले अनुलेप की भांति संयम यात्रा के लिए अपेक्षित मात्रा वाला, संयम का भार वहन करने के लिए जैसे सर्प बिल में प्रवेश करते समय सीधा होता है वैसे ही स्वाद लिए बिना सीधा खाने वाला - जो इस विधि से आहार करता है, गौतम! यह शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित, एषित, वैशिक और समुदानिक पान- भोजन का अर्थ प्रज्ञन्त है। उत्पादन १. धात्री २. दूती ३. निमित्त ४. आजीव ५. वनीपक ६. चिकित्सा ७. क्रोध ८. मान माया ६. १०. लोभ ११. पूर्व-पश्चात् संस्तव १२. विद्या १३. मंत्र १४. चूर्ण १५. योग १६. मूलकर्म एषणा १. शंकित २. प्रक्षित २. निक्षिप्त ४. पिहित ५. संहत ६. दायक ७. उन्मिश्र C. अपरिणत ६. लिप्त १०. छर्दित www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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