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भगवई
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श.७ : उ.१ : सू.२२-२४
भाष्य १. सूत्र २२, २३ ।
मनोज्ञ भोजन पर राग और अमनोज्ञ भोजन पर द्वेष नहीं करना चाहिए।
३. संयोजना-भोजन को सरस बनाने के लिए द्रव्यों का मिश्रण शरीर धारण करने के लिए आहार आवश्यक है; इसीलिए छह
करना । यह अस्वाद की साधना का विधान है। कारणों से आहार करने का निर्देश हैं ।' मुनि के लिए आहार संबंधी तीन एषणाएं बतलाई गई हैं-गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगेषणा। परिभोगैषणा के पांच दोष हैं-१. अंगार, २. धूम, ३. संयोजना, ४. प्रमाणातिक्रान्त ५. का
शब्द-विमर्श रण।
क्रोध जनित क्लेश (कोहकिलाम)-क्रोध से होने वाला शारीरिक १. सअंगार-मूर्छासहित आहार करना। प्रस्तुत आलापक में श्रम । इसकी व्याख्या की गई है। सू० २२, २३ में प्रथम तीन बिंदु की चर्चा है।
अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए (गुणुप्पायण)-विशेष रसों २. सधूम-क्रोध करते हुए आहार करना।
को उत्पन्न करना। इन दोनों का फलितार्थ यह है कि आहार करते समय मुनि को
२४. अह भंते! खेत्तातिक्केतस्स, कालातिक्कं- अथ भदन्त! क्षेत्रातिक्रान्तस्य कालातिक्रान्तस्य २४. 'भन्ते ! क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, माईतिक्रान्त तस्स, मग्गातिक्कंतस्स,पमाणातिक्कंतस्स मार्गातिक्रान्तस्य प्रमाणातिक्रान्तस्य पान- और प्रमाणातिक्रान्त पान-भोजन का क्या अर्थ है। पाण-भोयणस्स के अटे पण्णते?
-भोजनस्य कः अर्थः प्रज्ञप्तः? गोयमा ! जे ण निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु- गौतम ! यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा प्रासु- गौतम ! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और -एसणिज्जं असण-पाण-खाइम-साइमं अणु- ___ -एषणीयम् अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यम् अनुद्- एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का सूर्योदय से ग्गए सूरिए पडिग्गाहेत्ता उग्गए सूरिए आहार- गते सूर्ये प्रतिगृह्य उद्गते सूर्ये आहारमाहरति, पहले प्रतिग्रहण कर सूरज के उगने पर आहार करता माहारेइ, एस णं गोयमा! खेत्तातिक्कंते एतद् गौतम ! क्षेत्रातिक्रान्तं पान-भोजनम्। है, गौतम ! यह क्षेत्रातिक्रान्त पान-भोजन है। पाण-भोयणे । जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा प्रासु-एषणीयम् जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय असणं-पाणं-खाइम-साइमं पढमाए पोरिसीए अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यं प्रथमायां पौरुष्यां अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रथम प्रहर में पडिग्गाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवाइणावेत्ता प्रतिगृह्य पश्चिमां पौरुषीम् उपादाय आहार- प्रतिग्रहण कर अन्तिम प्रहर आने पर आहार करता आहारमाहारेइएस णं गोयमा! कालातिक्कते माहरति, एतद् गौतम ! कालातिक्रान्तं पान- है, गौतम ! यह कालातिक्रान्त पान-भोजन है। पाण-भोयणे ।
भोजनम्। जे णं निग्गथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा प्रासु-एषणीयम् जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय असण-पाण-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता परं अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यं प्रतिगृह्य पराम् अर्द्ध- अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर आधे अद्धजोयणमेराए वीइक्कमावेत्ता आहार- योजनमर्यादां व्यतिक्रम्य आहारमाहरति, योजन (दो कोश) की मर्यादा का अतिक्रमण कर आहार माहारेइ, एस णं गोयमा ! मग्गातिक्कते पाण- एतद् गौतम ! मार्गातिक्रान्तं पान-भोजनम्। करता है, गौतम ! यह मार्गातिक्रान्त पान-भोजन है। भोयणे । जे ण निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा प्रासु-एषणीयम् जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय असण-पाण-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता परं अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यं प्रतिगृह्य परं द्वात्रिं- अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर मुर्गी बत्तीसाए कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ताणं कवला- शत् कुक्कुट्यण्डकप्रमाणमात्राणां कवलानां के अंडे के प्रमाण जितने बत्तीस कवल से अधिक णं आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! पमाणा- आहारमाहरति, एतद् गौतम! प्रमाणातिक्रान्तं आहार करता है, गौतम ! यह प्रमाणातिक्रान्त पानतिक्कते पाण-भोयणे । पान-भोजनम्।
भोजन है। अट्ठ कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहार- अष्ट कुक्कुट्यण्डकप्रमाणमात्रान् कवलान् मुर्गी के अण्डे जितने आठ कवल का आहार करने माहारेमाणे अप्पाहारे, दुवालस कुक्कुडि- आहारमाहरन् अल्पाहारः, द्वादश कुक्कुटु- वाला अल्पाहारी कहलाता है, मुर्गी के अण्डे जितने अंडगपमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे यण्डकप्रमाणमात्रान् कवलान् आहारमाहरन् बारह कवल का आहार करने वाला अपार्द्ध-अवअवड्ढोमोयरिए, सोलस कुक्कुडिअंडगपमाण अपार्द्धवमोदरिकः, षोडश कुक्कुट्यण्डक- मोदरिक कहलाता है, मुर्गी के अण्डे जितने सोलह मेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे दुभागप्पत्ते, प्रमाणमात्रान् कवलान् आहारमाहरन् द्विभाग- कवल का आहार करने वाला द्विभाग-प्राप्त कहलाता चउव्वीसं कुक्कुडिअंडगपमाण मेत्ते कवले प्राप्तः, चतुर्विंशतिं कुक्कुट्यण्डक-प्रमाण- है। मुर्गी के अण्डे जितने चौबीस कवल का आहार
१. उत्तर. २६/३१,३२।
२. वही, २४/११, १२।
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