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श.७ उ. १ सू.२२-२३
सईगालादिदोसदुद्ध पाणगोयण-पदं
२२. अह भंते! सईगालस्स, सधूमस्स, संजोयणा- दोसदुस्स पाण- भोयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते?
गोयमा ! जेणं निग्गंथे वा निगगंथी वा फासु- एस णिज्जं असण- पाण- खाइम साइमं पडि माता मुछिए गिद्धे गढिए अन्झोवबन्ने आहारमाहारेड, एस णं गोवमा सइंगाले पाण- भोयणे ।
जेणं निग्थे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असण- पाण- खाइम - साइमं पडिग्यात्ता महया अप्पत्तियं कोहकिलामं करेमाणे आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा ! सधूमे पाण - भोयणे । जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असण-पाण-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता गुणुप्पायणहेउं अण्णदव्वेणं सद्धिं संजोएता आ हारमाहारेइ, एस णं गोयमा ! संजोयणादोस दुद्वे पाण-भोषणे।
एस णं गोयमा ! सइंगालस्स, सधूमस्स, संजोयणादोसदुस्स पाण- भोयणस्स अहे पण्णतेव
२३. अह भंते ! वीतिंगालस्स, वीयधूमस्स, संजोयणादोसविप्पमुक्कस्स पाण- भोयणस्स के अद्रे पष्णते ?
गोयमा ! जेणं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु- एसणिज्जं असण- पाण खाइम साइमं पडिग्गाहेत्ता अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने आहारमाहारेड़, एस गं गोयमा। वीलिंगाले पाण- भोयणे । जेणं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असण- पाण- खाइम - साइमं पडिग्गाहेत्ता णो महया अप्पत्तियं कोहकिलामं करेमाणे आहारमाहारेइ एस णं गोयमा ! वीयधूमे पाण। भोयणे।
जेणं निग्गंचे वा निग्गंधी वा फासु-एसणिज्जं असण- पाण- खाइम - साइमं पडिग्गाहेत्ता जहा लखं तहा आहारमाहारेइ, एस नं नोयमा ! संजोयणादीसविणमुक्के पाण-भोयगे । एस गं गोयमा । वीलिंगालस्स, बीयधूमस्स संजोयणादोसविप्पमुक्कस्स पाण- भोयणस्स अट्टे पण्णत्ते ।
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साङ्गरादिदोषदुष्ट- पानभोजन-पदम् अथ भदन्त ! साङ्गारस्य, सधूमस्य, संयोजनादोषदुष्टस्य पान- भोजनस्य को ऽर्थः प्रज्ञप्तः ?
गौतम ! यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा प्रासुएषणीयम् अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यं प्रतिगृह्य मूर्च्छितः गृद्धः प्रथितः अभ्युपपन्नः आहारमाहरति एतद् गौतम साझार पान- भोजनम्।
यः निर्मन्थः वा निर्मन्धी वा प्रासु एषणीयम् अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यं प्रतिगृह्य महदप्रत्ययिकं क्रोधक्लमं कुर्वन् आहारमाहरति, एतद् गीतम! सधूमं पान- भोजनम्।
यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा प्रासु - एषणीम् अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यं प्रतिगृह्य गुणोत्पादनहेतुम् अन्यद्रव्येण सार्धं संयोज्य आहारमाहरति, एतद् गौतम ! संयोजनादोषदुष्टं पान-भोजनम्।
एष गौतम ! साङ्गारस्य, सधूमस्य, संयोजनादोषतुष्टस्य पान भोजनस्य अर्थः प्रज्ञप्तः ।
अथ भदन्त ! वीताङ्गारस्य, वीतधूमस्य, संयोजनादोषविप्रमुक्तस्य पान - भोजनस्य को ऽर्थः प्रज्ञप्तः ?
गौतम ! यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा प्रासु- एषणीयम् अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यं प्रतिगृह्य अमूर्च्छितः अगृद्धः अग्रथितः अनध्युपपन्नः आहारमाहरति एतद् गौतम बीताक्षर पान- भोजनम्।
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यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा प्रासु एषणीयम् अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यं प्रतिगृह्य नो महदप्रत्ययिकं क्रोध क्लामं कुर्वन् आहारमाहरति, एतद् गौतम! वीतधूमं पान भोजनम् ।
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यः निर्ग्रन्थः वा निर्ग्रन्थी वा प्रासु एषणीयं अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य प्रतिगृह्य यथा लब्धं तथा आहारमाहरति । एतद् गौतम ! संयोजनादोषविप्रयुक्तं पान भोजनम् । एष गौतम वीताङ्गारस्य वीतधूगस्य संयो जना दोषविप्रमुक्तस्य पान - भोजनस्य अर्थः
प्रज्ञप्तः ।
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भगवई
स- अंगार आदि दोष से दूषित पान - भोजन-पद २२. भन्ते ! अंगार, सधूम और संयोजन दोष से दूषित पान- भोजन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त है ?
गौतम जो निर्बंध अथवा निर्बन्धी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर उसमें मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त हो कर आहार करता है, गौतम ! वह पान - भोजन स-अंगार है।
जो निर्मन्थ अथवा निर्मन्धी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर महती अप्रीति और क्रोध-जनित क्लेश करता हुआ आहार करता है, गौतम! वह पान- भोजन सधूम है। जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषनीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर उसे अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए दूसरे पदार्थ के साथ मिला कर आहार करता है, गौतम ! वह पान - भोजन संयोजना- दोष से दूषित है।
गीतम! स-अंगार, सधूम और संयोजना- दोष से दूषित पान - भोजन का यह अर्थ प्रज्ञप्त है।
२३. भन्ते ! अङ्गारमुक्त, धूममुक्त और संयोजना दोष-विप्रमुक्त पान- भोजन का क्या अर्थ प्राप्त है ?
गौतम ! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर उसमें अमूर्च्छित, अमृद्ध, अग्रथित और अनासक्त हो कर आहार करता है, गौतम ! यह अङ्गारमुक्त पान- भोजन है।
जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर महती अप्रीति तथा क्रोध-जनित कलेश न करता हुआ आहार करता है, गीतम। वह धूममुक्त पान भोजन है।
जो निर्वन्ध अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एक
अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर जैसा मिला है उसे उसी रूप में खाता है, गौतम ! वह संयोजना- दोष - विप्रमुक्त पान-भोजन है। गौतम ! अङ्गारमुक्त, धूममुक्त और संयोजना दोषविप्रमुक्त पान - भोजन का यह अर्थ प्रज्ञप्त है।
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