SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्तमं सयं : सातवां शतक पढमो उद्देसो : प्रथम उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद संगहणी गाहा १. आहार २. विरति ३. थावर, ४. जीवा ५. पक्खी य ६.आउ७. अणगारे। ८. छउमत्थ ६. असंवुड, १०. अण्णउत्थि दस सत्तमंमि सए ॥१॥ संग्रहणी गाथा १. आहारो २. विरतिः ३. स्थावरः, ४. जीवाः ५. पक्षी च ६. आयुः ७.अनगारः। ८. छद्मस्थः ६. असंवृतः, १०. अन्ययूथिकः दश सप्तमे शते ॥ संग्रहणी गाथा सप्तम शतक के दस उद्देशक हैं-१. आहार-आहारक और अनाहारक की वक्तव्यता, २. विरतिप्रत्याख्यान की वक्तव्यता, ३. स्थावर-वनस्पति की वक्तव्यता, ४. जीव-संसारी जीवों की वक्तव्यता, ५.पक्षी-पक्षी की वक्तव्यता, ६.आयुष्य-आयुष्य की वक्तव्यता, ७. अनगार--अनगार की वक्तव्यता, ८. छद्मस्थ-छद्मस्थ मनुष्य की वक्तव्यता, ६.असंवृत-असंवृत अनगार की वक्तव्यता, १०. अन्ययूथिक-कालोदायी आदि अन्यतीर्थिकों की वक्त व्यता। अनाहारक-पद अणाहारग-पदं अनाहारक-पदम् १. तेणं कालेणं तेण समएणं जाव एवं वदासी- तस्मिन् काले तस्मिन् समये यावद् एवम- जीवे णं भंते! के समयमणाहारए भवइ? वादीत्—जीवः भदन्त! कं समयम् अनाहारकः भवति? गोयमा ! पढमे समए सिय आहारए सिय गौतम! प्रथमे समये स्याद् आहारकः स्याद् अणाहारए, बितिए समए सिय आहारए सिय अनाहारकः, द्वितीये समये स्याद् आहारकः अणाहारए, ततिए समए सिय आहारए सिय स्याद् अनाहारकः, तृतीय समये स्याद् आअणाहारए, चउत्थे समए नियमा आहारए। हारकः स्याद् अनाहारकः, चतुर्थे समये एवं दंडओ-जीवा य एंगिदिया य चउत्थे नियमाद् आहारकः। एवं दण्डकः-जीवाश्च समए, सेसा ततिए समए ॥ एकेन्द्रियाश्च चतुर्थे समये, शेषास्तृतीये समये। १. 'उस काल और उस समय गणधर गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार कहा-भन्ते! जीव किस समय अनाहारक होता है? गौतम! जीव प्रथम समय में स्यात् आहारक होता है, स्यात् अनाहारक, दूसरे समय में स्यात् आहारक होता है, स्यात् अनाहारक, तीसरे समय में स्यात् आहारक होता है, स्यात् अनाहारक, चौथे समय में नियमतः आहारक होता है। इस प्रकार चौबीस दण्डक वक्तव्य हैं। जीव और एकेन्द्रिय ये दोनों चौथे समय में नियमतः आहारक होते हैं, शेष सब तीसरे समय में नियमतः आहारक होते हैं। भाष्य १. सूत्र १ आहार के चार प्रकार हैं-ओज आहार, लोम आहार, प्रक्षेप आहार और मनोभक्ष्य आहार।' आहार का ग्रहण करने वाला आहारक और उसको १. द्रष्टव्य भ. १/२० का भाष्य । ग्रहण न करने वाला अनाहारक कहलाता है। ओज आहार का ग्रहण जन्म के प्रारम्भ में अन्तर्मुहूर्त तक किया जाता है। उसके पश्चात् लोम आहार का ग्रहण जीवन के अंतिम क्षण तक किया जाता है। प्रक्षेप आहार का ग्रहण भोजन-काल Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy