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श. ७ : आमुख
भगवई
चालित होती है। नाडीतंत्र के दो भाग हैं इच्छा-चालित और स्वतःचालित कर्मभोग भी स्वतःचालित किया है। कालोदायी के प्रश्न पर भगवान् महावीर ने उदाहरण के द्वारा इस विषय को स्पष्ट किया। भगवान् ने कहा- कालोदायी ! कोई पुरुष अठारह व्यंजनों से युक्त विषमिश्रित भोजन करता है। वह प्रारंभ में अच्छा लगता है किंतु जैसे-जैसे विष का परिणमन होता है वैसे-वैसे मारक बनता है। कालोदायी! हिंसा आदि जितने पाप कर्म हैं वे प्रारंभ में अच्छे लगते है-किंतु परिणमन में अनिष्ट फल में बदल जाते हैं।
कोई पुरुष अठारह व्यंजनयुक्त औषधिमिश्रित भोजन करता है। वह प्रारंभ में अच्छा लगता है और परिणाम में भी अच्छा होता है। जैसे विषमिश्रित और औषिधिमिश्रित भोजन का फल स्वतः प्राप्त होता है, वैसे ही बुरे और अच्छे कर्म का फल स्वतः होता है। इसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की अपेक्षा नहीं होती।' इस प्रकार प्रस्तुत शतक में अनेक सिद्धांत प्रतिपादित हैं। उनसे तत्त्वविद्या के रहस्य अनावृत होते हैं।
१. भ. ७/२२३-२२६ ।
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