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श.६: उ.९:सू.१६८-१६९
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भगवई
देवे समोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं अविशुद्धलेश्य: देवः समवहतेन आत्मना ४. अविसुद्धलेसे देवे समोहएणं अप्पाणेणं अविशुद्धलेश्यं देवम् ४.अविशुद्धलेश्य: देवः विसुद्धलेसं देवं ५. अविसुद्धलेसे देवे समो- समवहतेन आत्मना विशुद्धलेश्यं देवम् हयासमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं ५.अविशुद्धलेश्य देवः समवहतासमवहतेन ६. अविसुद्धलेसे देवे समोहयासमोहएणं आत्मना अविशुद्धलेश्यं देवम् ६. विशुद्धअप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं ७. विसुद्धलेसे देवे लेश्य: देव: समवहतासमवहतेन आत्मना । असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं विशुद्धलेश्यं देवम् ७. विशुद्धलेश्य: देव: ८. विसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं असमवहतेन आत्मना अविशुद्धलेश्यं देवम् विसुद्धलेसं देवं ॥
८. विशुद्धलेश्य: देव: असमवहतेन आत्मना विशुद्धलेश्यं देवम्।
३. अविशुद्ध लेश्या वाला देव समवहत आत्मा के द्वारा अविशुद्ध लेश्या वाले देव को ४. अविशुद्ध लेश्या वाला देव समवहत आत्मा के द्वारा विशुद्ध लेश्या वाले देव को ५. अविशुद्ध लेश्या देव समवहत-असमवहत आत्मा के द्वारा अविशुद्ध लेश्या वाले देव को ६. अविशुद्ध लेश्या वाला देव समवहत-असमवहत आत्मा के द्वारा विशुद्ध लेश्या वाले देव को ७. विशुद्ध लेश्या वाला देव असमवहत आत्मा के द्वारा अविशुद्ध लेश्या वाले देव को ८. विशुद्ध लेश्या वाले देव असमवहत आत्मा के द्वारा विशुद्ध लेश्या वाले देव को नहीं जानता-देखता।
१६९. ९. विसुद्धलेसे णं भंते ! देवे समोहएणं ९. विशुद्धलेश्य: भदन्त ! देव: समवहतेन १६९. भन्ते ! ९. विशुद्धलेश्या वाला देव समवहत अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं जाणइ-पासइ? आत्मना अविशुद्धलेश्यं देवं जानाति आत्मा के द्वारा अविशुद्ध लेश्या वाले देव को पश्यति?
जानता-देखता है? हंता जाणइ-पासइ। हन्त जानाति-पश्यति।
हां, जानता-देखता है। एवं–१०.विसुद्धलेसे देवे समोहएणं एवम्-१०. विशुद्ध लेश्य: देव: समवहतेन इसी प्रकार-१०. विशुद्ध लेश्या वाला देव समवहत अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं ११. विसुद्धलेसे आत्मना विशुद्धलेश्यं देवम् ११. विशुद्ध- आत्मा के द्वारा विशुद्ध लेश्या वाले देव को ११. देवे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं अविसु- लेश्य: देव: समवहतासमवहतेन आत्मना विशुद्ध लेश्यावाला देव समवहत-असमवहत आत्मा द्धलेसं देवं १२. विसुद्धलेसे देवे समोह- अविशुद्धलेश्यं देवम् । १२. विशुद्धलेश्य: के द्वारा अविशुद्ध लेश्या वाले देव को १२. विशुद्ध यासमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं ॥ देवः समवहतासमवहतेन आत्मना विशुद्ध- लेश्या वाला देव समवहत-असमवहत आत्मा के लेश्यं देवम्।
द्वारा विशुद्ध लेश्या वाले देव को जानता-देखता है।
भाष्य
१. सूत्र १६८,१६९
अभयदेवसूरि ने 'समवहत' का अर्थ 'वैक्रिय शरीर का निर्माण किया हुआ _ वृत्तिकार ने 'अविशुद्ध लेश्य' का अर्थ 'विभंग ज्ञान वाला' किया किया है। मलयगिरि के अनुसार 'समवहत' का अर्थ 'वेदना आदि समुद्घात है। मलयगिरि ने 'अविशुद्ध लेश्या' का अर्थ 'कृष्ण आदि लेश्या वाला' में गया हुआ' और असमवहत का अर्थ 'वेदना आदि समुद्घात-रहित है।" किया है। ठाणं के अनुसार कृष्ण, नील और कापोत-ये तीन लेश्याएं जो व्यक्ति वेदना आदि समुद्घात की क्रिया में आविष्ट है, किन्तु उस क्रिया अविशुद्ध हैं। इस आधार पर मलयगिरि का अर्थ मूलस्पर्शी प्रतीत होता है। को पूर्ण नहीं कर पाया, वह 'समवहतासमवहत' हैं।
अभयदेवसूरि ने इस प्रकरण में 'समवहत' का अर्थ 'उपयुक्त ठाण में समवहत और विउव्वित दोनों पाठ संलग्न हैं। स्थानांग (उपयोग-सहित), असमवहत' का अर्थ अनुपयुक्त (उपयोग-रहित) तथा की वृत्ति में अभयदेवसूरि ने समवहत का अर्थ वैक्रिय अथवा अन्य समवहतासमवहत का अर्थ 'उपयुक्त अनुपयुक्त किया है। प्रस्तुत आगम में समुद्घात में प्रविष्ट तथा असमवहत का अर्थ समुद्घात-रहित किया है। वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहयं पाठांश मिलता है। उसकी वृत्ति में समवहतासमवहत को इनकी व्याख्या के रूप में प्रतिपादित किया है
१. भ.वृ. ६/१६८-अविशुद्धलेश्यो विभंगज्ञानो देवः। २. जीवा. वृ.प. १४२–अविशुद्धलेश्यः कृष्णादिलेश्यः। ३. ठाण, ३/५१७। ४. (क) भ.वृ. ६/१६८-'असमोहएणं अप्पाणेणं' ति अनुपयुक्तेनात्मना।
(ख) वही, ६/१६९-सम्यग्दृष्टित्वादुपयुक्तत्वानुपयुक्तत्वाच्च जानाति उपयोगानुपयोगपक्षे उपयोगांशस्य सम्यग्ज्ञानहेतुत्वादिति।
५. भ. ३/१५४-१५६। ६. भ. वृ. ३/१५४–'विउब्वियसमुग्घाएणं समोहयं' ति विहितोत्तरवैक्रियशरीरमित्यर्थः। ७. जीवा. वृ.प. १४२-असमवहतः वेदनादिसमुद्घातरहितः, समवहत: वेदनादिसमुद्घाते गतः। ८. वही, वृ. प. १४२ -समवहतासमवहतो नाम वेदनादि समुद्घातक्रियाविष्टो न तु परिपूर्णसमवहतो नाप्यसमवहतः सर्वथा। ९. ठाणं, २/१९३-२००।
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