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श.६: उ.९: सू.१६५-१६७
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भगवई
गोयमा! नो इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउ- गौतम ! नो इहगतान् पुद्गलान् पर्यादाय व्वति, तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति, विकरोति, तत्रगतान् पुद्गलान् पर्यादाय नो अण्णत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति। विकरोति, नो अन्यत्रगतान पुद्गलान् पर्यादाय
विकरोति।
दोनों से भिन्न किसी अन्य स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का निर्माण करता है? गौतम ! वह प्रज्ञापक-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का निर्माण नहीं करता, स्वस्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का निर्माण करता है, इन दोनों से भिन्न किसी अन्य स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का निर्माण नहीं करता। इस प्रकार इस गमक से अन्य विकल्प भी ज्ञातव्य हैं यावत् १. एक वर्ण और एक रूप का निर्माण २. एक वर्ण और अनेक रूप का निर्माण ३. अनेक वर्ण और एक रूप का निर्माण तथा ४. अनेक वर्ण और अनेक रूप का निर्माण-यह चौभंगी है।
एवं एएणं गमेणं जाव १. एगवण्णं एगरूवं एवम् अनेन गमेन यावद् १. एकवर्णम् एक- २. एगवण्णं अणेगरूवं ३. अणेगवण्णं एग- रूपम् २. एकवर्णम् अनेकरूपम् ३. अनेकरूवं ४. अणेगवणं अणेगरूवं-चउभंगो॥ वर्णम् एकरूपम् ४. अनेकवर्णम् अनेकरूपम्
--चतुर्भङ्गः।
१६६. देवेणं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे देव: भदन्त ! महर्द्धिक: यावन् महानुभाग: १६६, भन्ते ! क्या महान् ऋद्धि यावत् महान् शक्ति से बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू कालगं बाह्यकान् पुद्गलान् अपर्यादाय प्रभुः कालकं सम्पन्न देव बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण किए बिना पोग्गलं नीलगपोगलत्ताए परिणामेत्तए? नी- पुद्गलं नीलकपुद्गलतया परिणमयितुम्? कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल को नील वर्ण वाले पुद्गल लगं पोग्गलं वा कालगपोग्गलत्ताए परिणा- नीलकं पुद्गलं वा कालकपुद्गलतया परि- के रूप में परिणत करने में समर्थ हैं? अथवा नील मेत्तए? णमयितुम्?
वर्ण वाले पुद्गल को कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल के
रूप में परिणत करने में समर्थ हैं? गोयमा ! नो इणढे समढे। परियाइत्ता पभू॥ गौतम ! नायमर्थ: समर्थः। पर्यादाय प्रभुः। गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। वह बहिर्वर्ती पुद्
गलों का ग्रहण कर वैसा करने में समर्थ है।
१६७. से ण भंते! किं इहगए पोग्गले परि- स: भदन्त ! किम् इहगतान् पुद्गलान् पर्यादाय १६७. भन्ते ! क्या वह प्रज्ञापक-स्थानवर्ती पुद्गलों याइत्ता परिणामेति? तत्थगए पोग्गले परि- परिणमयति? तत्रगतान् पुद्गलान् पर्यादाय का ग्रहण कर परिणत करता है? अथवा स्वस्थानयाइत्ता परिणामेति? अण्णत्थगए पोग्गले परिणमयति? अन्यत्रगतान् पुद्गलान् पर्यादाय वर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर परिणत करता है? परियाइत्ता परिणामेति? परिणमयति?
अथवा इन दोनों से भिन्न किसी अन्य स्थानवर्ती
पुद्गलों का ग्रहण कर परिणत करता है? गोयमा! नो इहगए पोग्गले परियाइत्ता गौतम ! नो इहगतान् पुद्गलान् पर्यादाय परि- गौतम ! वह प्रज्ञापक-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण परिणामेति, तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता णमयति, तत्रगतान पुद्गलान् पर्यादाय परिण- कर परिणत नहीं करता, स्वस्थानवर्ती पुद्गलों का परिणामेति, नो अण्णत्थगए पोग्गले परि- मयति, नो अन्यत्रगतान् पुद्गलान् पर्यादाय ग्रहण कर परिणत करता है, इन दोनों से भिन्न याइत्ता परिणामेति। परिणमयति।
किसी अन्य स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर
परिणत नहीं करता। एवं कालगपोग्गलं लोहियपोग्गलत्ताए। एवं एवं कालकपुद्गलं लोहितपुद्गलतया। एवं इसी प्रकार कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल को लाल वर्ण कालएणं जाव सुक्किलं। एवं नीलएणं जाव कालकेण यावत् शुक्लम्। एवं नीलकेन वाले पुद्गल के रूप में परिणत करता है। इसी सुक्किलोएवं लोहिएणं जाव सुक्किलं। एवं यावत् शुक्लम्। एवं लोहितेन यावत् शुक्लम्।। प्रकार कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल से यावत् शुक्ल वर्ण हालिद्दएणं जाव सुक्किली एवं एयाए परि- एवं हारिद्रेण यावत् शुक्लम्। एवं अनया वाले पुद्गल तक के परिणमन की वक्तव्यता। इसी वाडीए गंध-रस-फासा। परिपाट्या गन्ध-रस-स्पर्शाः।
प्रकार नील वर्ण वाले पुद्गल से यावत् शुक्ल वर्ण वाले पुद्गल के परिणमन की वक्तव्यता। इसी प्रकार लोहित वर्ण वाले पुद्गल से यावत् शुक्ल वर्ण वाले
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