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________________ भगवई गोयमे अग्निभूई अणगारे मम एवमाइक्खड़ भास पण्णवेइ पसवेइ – एवं खलु गोवमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया महिड्ढीए जाव महाभागे । सेणं तत्थ चोत्तीसाए भवणावाससयसहस्साणं तं चैव सव्वं अपरिसेसं भाणि यव्वं जाव अग्गमहिसीणं वत्तव्वया समत्ता ॥ १०. से कहमेयं भंते ! एवं? गोयगादि ! समणे भगवं महावीरे तच्च गोयमं वायुभूतिं अणगारं एवं वयासी - जं गं गोयमा ! तब दोच्चे गोयमे अग्निभूई अणगारे एवमाइक्खर भासइ पण्णवेइ प वेइ - एवं खलु गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया महिड्ढीए तं चैव सव्वं जाव अग्गमहिसीओ सच्चे गं एसम अहं पिगं गोयगा! एवमाइक्खामि भासामि पण्णवेमि परूवेगि — एवं खलु गोवमा चमरे असुरिंदे असुरराया महिद्दीए तं चैव जाव अग्गमहि सीओ। सच्चे णं एसमट्टे ॥ - ११. सेवं भंते! सेवं भंते! ति तच्चे गोयमे वायुभूई अणगारे समणं भगवं महावीरं बंद नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव दोच्चे गोवमे अग्गिभूई अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोच्चं गोयमं अग्गिमूई अणगारं बंद नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता एयमहं सम्म विण एणं भुज्जो - भुज्जो खामेइ ॥ १२. तए णं से तच्चे गोयमे वायुभूति अणगारे दोच्चे णं गोदमेणं अग्गिभूतिना अणगारेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद् जाव पन्जुवासमागे एवं क्यासीजइ णं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरराया महिढी जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, बली णं भंते ! वइरोयणिंदे वइरोयणराया केमहिड्ढीए ? जाव केवइयं च णं पभू विकुबित्तए ? गोयमा ! बली णं वइरोयणिंदे वइरोयणराया माहिड्दीए जाव महाणुभागे। जहां चमरस्स तहा बलिस्स वि नेयव्वं नवरं सातिरेगं केवलकणं जंबुद्दीपं दीवं भाणियव्वं, सेसं तं " Jain Education International 99 द्वितीयः गीतमः अग्निभूतिः अनगारः मम एवमाख्याति भाषते प्रज्ञापयति प्ररूपयतिएवं खलु गौतम! चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः महर्द्धिकः यावन् महानुभागः । तत्तत्र चतुस्त्रिंशद् भवनावासशतसहस्राणां तच्चैव सर्वम् अपरिशेषं भणितव्यं पायद् अग्रगतित्रीणां वक्तव्यता समाप्ता । - तत् कथमेतद् भवन्तः एवम् गोतम ! अनि ! श्रमणः भगवान् महावीरः तृतीयं गौतमं वायुभूतिं अनगारं एवमवादीद्यद् गौतम ! तव द्वितीयः गौतमः अग्निभूतिः अनगारः एवमाख्याति भाषते प्रज्ञापयति प्ररूपयति — एवं खलु गौतम ! चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः महर्द्धिकः तच्चैव सर्वं यावद् अग्रमहिष्यः सत्यः एष अर्थः अहमपि गौतम! एवमाख्यामि भाषे प्रज्ञापयामि प्ररूपयामि-एवं खलु गौतम! चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः महर्दिक तच्चेव यावद् अग्रमहिष्यः सत्यः एष अर्थः । तदेवं भदन्त तदेवं भदन्त इति तृतीयः गौतम वायुमृतिः अनगारः श्रमण भगवन्तं महावीर वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्त्विा यत्रैव द्वितीयः गौतमः अग्निभूतिः अनगारः तत्रैव उपागच्छति उपागम्य द्वितीयं गीतगं अग्निभूतिम् अनगारं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा एतदर्थं सम्यक विनयेन भूयो भूयः क्षमयति। ततः सः तृतीय गौतमः वायुभूतिः अनगारः द्वितीयेन गौतमेन अग्निभूतिना अनगारेण सार्थ यत्रैव श्रमणः भगवान् महावीरः तत्रैव उपा गच्छति यावत् पर्युपासीनः एवमादीद् – यदि भदन्त ! चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः इयन्महर्द्धिकः यावद् एतावच्च प्रभुः विकर्तुं बलिः भदन्त ! वैरोचनेन्द्रः वैरोचनराजः कियन्महर्द्धिकः यावत् कियच् च प्रभुः विकर्तुम्? गौतम ! बलिः वैरोचनेन्द्रः वैरोचनराजः महजिंकः यावन् महानुभागः। यथा चमरस्य तथा क्लेरपि नेतव्यम्, नवरसातिरेक केवलकम्पं जम्बूद्वीपं द्वीपं भणितव्यम् शेषं तच्चैव For Private & Personal Use Only श. ३ : उ. १ : सू. ६-१२ अख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैंगौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला है यावत् महान् सामर्थ्य वाला है। वह वहां पर चौंतीस लाख भवनावासों का आधिपत्य करता है। पटरानियों की वक्तव्यता समाप्त होती है, वहां तक का समग्र वक्तव्य यहां जानना चाहिए। १०. भन्ते ! यह कैसे है ? गौतम ! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर श्रमण भगवान् महावीर ने तृतीय गीतम वायुभूति अणगार से इस प्रकार कहा - गौतम! द्वितीय गौतम अग्निभूि अनगार तुम्हारे सामने इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता है - गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर महान ऋद्धि वाला है। यहां पटरानियों तक का समग्र वक्तव्य पुनरावर्तनीय है । यह अर्थ सत्य है। गौतम ! मैं भी इसी प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता हूं - गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला है। भगवान् ने पटरानियों तक की समग्र वक्तव्यता दोहरा दी और अन्त में फिर कहा-यह अर्थ सत्य है । ११. “ भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है" इस प्रकार तृतीय गीतम वायुभूति अनगार श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करते हैं, वन्दन- नमस्कार कर वे जहां द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार हैं, वहां आते हैं, आकर द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार से वन्दन - नमस्कार करते हैं, वन्दन - नमस्कार कर वे इस अर्थ (उनकी पदार्थ वाणी पर विश्वास किया) के लिए सम्यक प्रकार से विनयपूर्वक बार-बार क्षमा याचना करते हैं। १२. वे तृतीय गीतम वायुभूति अनगार द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार के साथ जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहां आये यावत् पर्युपासना करते हुए • इस प्रकार बोले - भन्ते ! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी महान ऋद्धि वाला है यावत इतनी विक्रिया करने में समर्थ है तो भन्ते ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि कितनी महान् ऋद्धि वाला है यावत् कितनी विक्रिया करने में समर्थ है ? गीतम। वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि महान ऋद्धि वाल है यावत् महान् सामर्थ्य वाला है। जैसी चमर की वक्तव्यता है वैसी ही बलि की है। केवल इतना अन्तर है कि यहां कुछ अधिक जम्बूद्वीप द्वीप वक्तव्य है। www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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