________________
श.६:उ.८: सू.१५२-१५४
३०४
भगवई
जीवा णं भंते ! किं ५. जातिगोयनिहत्ता? जीवा: भदन्त ! किं ५. जातिगोत्रनिधत्ताः? ६. जातिगोयनिहत्ताउया?
६. जातिगोत्रनिधत्तायुष्का:? जीवा णं भंते ! किं ७. जातिगोयनिउत्ता? जीवा: भदन्त ! किं ७. जातिगोत्रनियुक्ता:? ८. जातिगोयनिउत्ताउया?
८. जातिगोत्रनियुक्तायुष्का:? जीवाणं भंते ! किं ९. जातिनामगोयनिहत्ता? जीवा: भदन्त ! किं ९. जातिनामगोत्रनि१०. जातिनामगोयनिहत्ताउया?
धत्ता:? १०. जातिनामगोत्रनिधत्तायुष्का:?
वेदन आरम्भ किए हुए हैं? भन्ते ! क्या जीव ५. जाति-गोत्र का निषिक्त किए हुए हैं? ६. जाति-गोत्र-निषिक्तायुष्क हैं? भन्ते ! क्या जीव ७. जाति-गोत्र-नियुक्त हैं? ८. जाति-गोत्र-नियुक्तायुष्क हैं? भन्ते ! क्या जीव ९. जाति-नाम-गोत्र का निषिक्त किए हुए हैं? १०. जाति-नाम-गोत्र-निषिक्तायुष्क
जीवा णं भंते ! किं ११. जातिनाम- जीवाः भदन्त ! किं ११. जातिनामगोत्र- भन्ते ! क्या जीव ११. जाति-नाम-गोत्र-नियुक्त हैं? गोयनिउत्ता? १२. जातिनामगोयनिउत्ताउया? नियुक्ता:? १२. जातिनामगोत्रनियुक्तायु- १२. जाति-नाम-गोत्र-नियुक्तायुष्क हैं? यावत् ७२. जाव ७२. अणुभागनामगोयनिउत्ताउया? का: ? यावद् ७२. अनुभागनामगोत्र- अनुभाग-नाम-गोत्र-नियुक्तायुष्क हैं?
नियुक्तायुष्का:? गोयमा ! जातिनामगोयनिउत्ताउया वि जाव गौतम ! जातिनामगोत्रनियुक्तायुष्काः अपि । गौतम ! जीव जाति-नाम-गोत्र-नियुक्तायुष्क भी हैं अणुभागनामगोयनिउत्ताउया वि। दंडको जाव यावद् अनुभागनामगोत्रनियुक्तायुष्का; अपि। यावत् अनुभाग-नाम-गोत्र-नियुक्तायुष्क भी हैं। नरक वेमाणियाण॥ दण्डक: यावद् वैमानिकानाम्।
से लेकर वैमानिक तक सभी दण्डकों में सभी भंग प्राप्त होते हैं।
भाष्य
१. सूत्र १५२-१५४
साथ निधत्ति अथवा निषेचन करने वाले जीव जाति-नाम-निधत्त, गतिकर्म के आठ करण होते हैं-बंधन, संक्रमण, उद्वर्तना, नाम-निधत्त कहलाते हैं। अपवर्तना, उदीरणा, उपशामना, निधत्ति और निकाचना। इनमें सातवां करण नियुक्त—अभयदेवसूरि ने इसका अर्थ निकाचित' किया है। यह निधत्ति है। इसका अर्थ है कर्म-स्कन्धों को उद्वर्तना और अपवर्तना के कर्म की गाढ़तम बन्धन वाली अवस्था है। जाति, गति, अवगाहना, गोत्र और
अतिरिक्त शेष करणों के अयोग्य कर देना। इस व्यवस्था में कर्म-स्कन्ध आयुष्य-ये जन्म-मरण के मुख्य घटक हैं। इसलिए इनके आधार पर जीवों संक्रमण आदि से प्रभावित नहीं होते। जाति, गति आदि कर्म-प्रकृतियों के के ७२ विकल्प किए गए हैं। १. कर्मप्रकृति, पृ. ४८, श्लोक २
२. भ.वृ. ६/१५४-नियुक्तं -नितरां युक्तं -संबद्ध निकाचितं वेदने वा नियुक्तं वैस्ते ___बंधणसंकमणुव्वट्टणा य अववट्टणा उदीरणया।
जातिनामनियुक्ताः। उवसामणा निहत्ती निकायणा चत्ति करणाई॥ ३. अंगसुत्ताणि, भाग २ (भगवई), पृ. २६३, सू. ६/१५४ का पादटिप्पण-एतत् पदं त्रयोदशभंगात् द्वासप्ततितमपर्यन्तानां भंगानां संग्राहकमस्तिजीवा णं भंते ! किं १३. गतिनामनिहत्ता?
१४. गतिनामनिहत्ताउया? जीवा ण भंते ! किं १५. गतिनामनिउत्ता?
१६. गतिनामनिउत्ताउया? जीवाणं भंते ! किं १७. गतिगोयनिहत्ता?
१८. गतिगोयनिहत्ताउया? जीवाणं भते! किं १९. गतिगोयनिउत्ता?
२०. गतिगोयनिउत्ताउया? जीवाणं भंते ! किं २१. गतिनामगोयनिहत्ता?
२२. गतिनामगोयनिहत्ताउया? जीवाणं भंते! किं २३. गतिनामगोयनिउत्ता?
२४. गतिनामगोयनिउत्ताउया? जीवा णं भंते ! किं २५. ठितिनामनिहत्ता?
२६. ठितिनामनिहत्ताउया? जीवाणं भंते ! किं २७. ठितिनामनिउत्ता?
२८. ठितिनामनिउत्ताउया? जीवा णं भंते ! किं २९. ठितिगोयनिहत्ता?
३०. ठितिगोयनिहत्ताउया? जीवाणंभंते ! किं ३१. ठितिगोयनिउत्ता?
३२. ठितिगोयनिउत्ताउया? जीवाण भंते ! कि ३३. ठितिनामगोयनिहत्ता?
३४. ठितिनामगोयनिहत्ताउया? जीवा ण भंते ! किं ३५. ठितिनामगोयनिउत्ता?
३६. ठितिनामगोयनिउत्ताउया? जीवा ण भंते ! किं ३७. ओगाहणानामनिहत्ता?
३८. ओगाहणानामनिहत्ताउया? जीवा णभंते ! किं ३९. ओगाहणानामनिउत्ता?
४०, ओगाहणानामनिउत्ताउया? जीवा णं भंते ! किं ४१. ओगाहणागोयनिहता?
४२. ओगाहणागोयनिहत्ताउया? जीवा णं भंते ! किं ४३. ओगाहणागोयनिउत्ता?
४४. ओगाहणागोयनिउत्ताउया? जीवाणंभंते ! किं
४५. ओगाहणानामगोयनिहत्ता? ४६. ओगाहणानामगोयनिहत्ताउया?
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org