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भगवई
निधत्त अथवा निषिक्त होता है, इसलिए आयुष्य का एक प्रकार बन गयाजातिनामनिषिक्त आयुष्य। दूसरा प्रकार — गतिनामनिषिक्त आयुष्य, तीसरा प्रकार — अवगाहनानामनिषिक्त आयुष्या स्थिति, प्रदेश और अनुभागबंध के अंश हैं। इनका सम्बन्ध प्रत्येक कर्म के बन्ध के साथ है।
कर्म के उदय की एक विशेष व्यवस्था है। सभी कर्म - पुद्गल एक साथ उदय में नहीं आते। यदि सब कर्म - पुद्गल एक साथ उदय में आ दूसरा क्षण कर्मविपाक से शून्य हो सकता है। इस अवस्था में स्थितिबन्ध की व्यर्थता हो जाएगी। कर्म के उदय की प्राकृतिक व्यवस्था यह है— विपाक में आने वाले पुद्गलों के निषेक बन जाते हैं, प्रतिसमय अनुभव में आने योग्य कर्म - पुद्गलों की विशिष्ट रचना होती है। उसकी संज्ञा " निषेक" है। विपाक की पूर्ववर्ती अवस्था में निषेक की द्रव्यराशि अधिक होती है,
१५२. जीवा णं भंते! किं जातिनामनिहत्ता ? गतिनामनिहत्ता? ठितिनामनिहता? ओ गाणानामनिहत्ता? परसनामनिहता? अणुभावनामनिहता?
गोयमा ! जातिनामनिहत्ता वि जाव अणुभागनामनिहता वि दंडओ जाव वेगाणि याणं ।।
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१५३. जीवा णं भंते! किं जातिनामनिहत्ता उया? जाव अणुभागनामनिहत्ताउया ? गोवमा ! जातिनामनिहत्ताउया वि जाव अणुभागनामनिहत्ताउया वि । दंडओ जाव वैमानियाणं ॥
१५४. एवं एए दुवालस दंडगा भाणियव्वाजीवा णं भंते! किं १. जातिनामनिहत्ता ? २. जातिनामनिहत्ताउवा ?
जीवा णं भंते! किं ३ जातिनामनिउता? ४. जातिनामनिउत्ताउया?
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श. ६ : उ. ८ : सू. १५१-१५४
उत्तर अवस्था में वह कम होती जाती है। कर्म की स्थिति की समाप्ति के क्षण तक निषेक-व्यवस्था सक्रिय रहती है ।
आयुष्य के उक्त छह प्रकारों में जाति और गति दे दो नामकर्म की उत्तर प्रकृतियां हैं । अवगाहना का नाम कर्म की उत्तर प्रकृतियों में उल्लेख नहीं है। अभयदेवसूरि ने अवगाहना का अर्थ 'शरीर' किया है। इस प्रकार अवगाहना नाम कर्म की उत्तरप्रकृति शरीर नाम कर्म है। जाति आदि छहों वाक्यों में 'नाम' शब्द का प्रयोग है। अभयदेवसूरि ने 'नाम' पद के दो अर्थ किए हैं—१. परिणाम, २. नाम कर्म । यद्यपि स्थिति, प्रदेश और अनुभाग का नाम कर्म की उत्तर प्रकृतियों में उल्लेख नहीं है। किन्तु नाम कर्म की निर्दिष्ट उत्तर प्रकृतियों के अतिरिक्त अन्य अनेक उत्तर प्रकृतियां हो सकती हैं।
जीवाः भदन्त ! किं जातिनामनिधत्ता: ? गतिनामनिधत्ताः ? स्थितिनामनिधताः ? अवगाहनानामनिधता ? प्रदेशनामनिधताः ? अनुभागनामनिधता ?
गौतम ! जातिनामनिधत्ता: अपि, यावद् अनुभागनामनिधताः अपि दण्डकः यावद् वैमानिकानाम् ।
१. ठाण, ६ / ११६ का टिप्पण
२. भ. वृ. ६ / १५१ - निषेकश्च कर्मपुद्गलानां प्रतिसमयमनुभवनार्थं रचनेति।
३. प.सं. दि. शतक, गा. ३९५ की संस्कृत टीका, पृ. २४६—
परत: परत: स्तोक: पूर्वतः पूर्वतो बहुः ।
समये समये ज्ञेयो यावत् स्थितिसमापनम् ॥
जीवाः भदन्त ! किं जातिनामनिधत्तायुष्काः ? यावद् अनुभागनाम निघतायुष्काः ? गौतम ! जातिनामनिधत्तायुष्काः अपि यावद् अनुभागनामनिधत्तायुष्काः अपि । दण्डकः यावद्वैमानिकानाम्।
एवं ऐते द्वादश दण्डकाः भणितव्या:जीवा भदन्त ! किं १. जातिनामनिधत्ता: ? २. जातिनामनिधानुष्का?
जीवा भदन्त किं ३. जातिनामनियुक्ताः ? ४. जातिनामनियुक्तायुष्काः ?
४. पण्ण. २३/३८ ।
५. भ. बृ. ६ / १५१ - अवगाहते यस्यां जीवः साऽवगाहना— शरीरं औदारिकादि, तस्या
१५२. 'भन्ते ! क्या जीव जाति नाम का निषिक्त (विशिष्ट बंध) किए हुए हैं? गति नाम का निषिक्त किए हुए हैं? स्थिति नाम का निषिक्त किए हुए हैं? अवगाहना नाम का निषिक्त किए हुए हैं? प्रदेशनाम का निषिक्त भी किए हुए हैं? अनुभाग नाम निषिक्त किए हुए हैं?
गौतम ! जीव जाति-नाम का निषिक्त भी किए हुए हैं। यावत् अनुभाग- नाम का निषिक्त भी किए हुए हैं। नरक से लेकर वैमानिक तक सभी दण्डकों में छह प्रकार का निषिक्त (विशिष्ट बंध) होता है।
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१५३. भन्ते ! क्या जीव जाति - नाम - निषिक्तायुष्क है ? यावत् अनुभाग-नाम निषिक्तायुष्क हैं ? गौतम ! जीव जाति-नाम- निषिक्तायुष्क भी यावत् अनुभाग- नाम निषिक्तायुक्तायुष्क भी हैं। नरक से लेकर वैमानिक तक सभी दण्डक जाति-नाम-निषिक्तायुष्क यावत् अनुभाग-नाम- निषिक्तायुष्क हैं।
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१५४. इसी प्रकार ये बारह दण्डक वक्तव्य हैंभन्ते! क्या जीव १. जाति-नाम का निषिक्त (विशिष्ट बन्ध) किए हुए हैं ? २. जाति - नाम - निषिक्तायुष्क हैं ? भन्ते ! क्या जीव ३. जाति नाम नियुक्त-जातिनाम के वेदन में नियुक्त हैं? ४. जाति-नामनियुक्तायुष्क-जाति- नाम के साथ आयुष्य का
नाम
— औदारिकादिशरीरनामकर्मेत्यवगाहनानाम अवगाहनारूपो वा नाम- परिणामोऽवगाहनानाम तेन सह यत्रिधत्तमायुस्तदवगाहनानामनिधत्तायुः ।
अथवेह ६. वही, ६ / ९५१ - नामेति नामकर्मण उत्तरप्रकृतिविशेषो जीवपरिणामो वा । . सूत्रे जातिनामगतिनामावगाहनानामग्रहणाज्जातिगत्यवगाहनानां प्रकृतिमात्रमुक्तं, स्थितिप्रदेशानुभागनामग्रहणात्तु तासामेवं स्थित्यादय उक्तास्ते च जात्यादिनामसम्बन्धित्वान्नामकर्मरूपा एवेति नामशब्दः सर्वत्र कर्मार्थो घटत इति स्थितिरूपं नाम नामक स्थितिनाम |
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